Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 104] [वशाश्रुतस्कन्ध जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, अहमवि प्रागमेस्साए, जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया तेसि णं अन्नयरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चायामि, तत्थ णं समणोवासए भविस्सामि--- अभिगयजीवाजीवे जाव' अहापरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे विहरिस्सामिसे तं साहु / __ एवं खलु समणाउसो ! निरगंथो वा निग्गंथी वा णिदाणं किच्चा जाव' देवे भवइ महिड्डिए जाव दिवाइं भोगाई भुजमाणे विहरइ जाव' से णं तारो देवलोगाओ पाउक्खएणं जाव' पुमत्ताए पच्चायाति जाव तस्स णं एगमवि प्राणवेमाणस जाव चत्तारि-पंच अवुत्ता चेव अभुति "भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव' किं ते आसगस्स सयइ ?" प० तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूबे समणे वा माहणे वा उमओ कालं केवलिपणत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ? उ-हंता! प्राइक्खेज्जा। ५०–से णं पडिसुज्जा ? उ०–हता! पडिसुज्जा / प०-से णं सहज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा? उ.-हंता ! सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा। ५०-से णं सीलध्वय जाव पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा? उ०--हंता! पडिवज्जेज्जा। 50 से णं मुंडे भवित्ता आगारानो अणगारियं पव्वएज्जा? उ०-णो तिणठे समठे। से णं समणोवासए भवति अभिगयजीवाजीवे जाव' पडिलामेमाणे विहरइ / से णं एयारूबेणं विहारेणं विहरमाणे बहूणि वासाणि समणोवासगपरियागं पाउणइ पाउणित्ता आवाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुष्पन्नंसि वा भत्तं पच्चक्खाएइ, भत्तं पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाई छेदेइ, बहूई भत्ताइं अणसणाई छेदित्ता पालोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति / एवं खलु समणाउसो ! तस्स नियाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे-जं नो संचाएति सव्वानो सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता प्रागाराओ अणगारियं पवइत्तए। 1. भगवती श. 2, उ.५, सू. 11 2-8. सातवें निदान में देखें। 9. भगवती श. 2, उ. 5, सू. 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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