Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 166
________________ दसवीं वशा] [89 तेसिं णं अण्णयरस्स प्रतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दास-किंकरकम्मकर-पुरिसा छत्तं भिगारं गहाय निग्गच्छति / तयाणंतरं च णं पुरओ महापासा आसवरा, उभओ तेसिं नागा नागवरा, पिट्ठओ रहा रहवरा, रहसंगल्लिपुरिस पदाति परिक्खित्तं। से य उद्धरिय-सेय-छत्ते, अन्भुगये भिंगारे, पग्गहिय तालियंटे, पवीयमाण-सेय-चामरबालवीयणीए। अभिक्खणं-अभिक्खणं अतिजाइ य निज्जाइ य सप्पभा। सपुवावरं च णं ण्हाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए, महति महालियाए कूडागारसालाए, महति महालयंसि सयणिज्जसि दुहनो उण्णते मज्झे पतगंभीरे यण्णओ सवरातिणिएणं जोइणा झियायमाणेणं, इत्थिगुम्मपरिवुडे महयाहत-नट्ट-गीय-वाइय-तंतो-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-मुद्दल-पडप्पवाइयरवेणं उरालाई माणुस्सगाई कामभोगाई भुजमाणे विहरति / तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अन्भुट्ठति "भण देवाणुप्पिया! किं करेमो ? कि उवणेमो ? कि आहरेमो? कि प्राचिट्ठामो ? किं भे हियइच्छियं ? कि ते पासगस्स सदति ?" जं पासित्ता जिग्गथे णिदाणं करेइ "जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तं अहमवि आगमिस्साए इमाइं एयारूवाई उरालाई माणुस्सगाई कामभोगाइं भुजमाणे विहरामि से तं साहू।" ___ एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथे णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स प्रणालोइय-अप्पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति महड्डिएसु महज्जुइएसु महब्बलेसु महायसेसु महासुक्खेसु महाणुभागेसु दूरगईसु चिरहितिएसु / से णं तत्थ देवे भवइ महड्डिए जाव' दिव्वाई भोगाई भुजमाणे विहरइ जाव से णं तओ देवलोगाओ पाउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया, तेसि णं अन्नयरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति / से णं तत्थ दारए भवइ, सुकुमालपाणिपाए, अहोणपडिपुण्णपंचिदियसरीरे, लक्खण-वंजण. गुणोववेए, ससिसोमागारे, कंते, पियदसणे, सुरूवे / तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे, विण्णाणपरिणयमित्ते, जोव्वणगमणुष्पत्ते सयमेव पेइयं दायं पडिवज्जति। 1. ज्ञाता. अ. 1, सु. 47, पृ. 20 (अंगसुत्ताणि) 2. ठाणं. अ. 8, सु. 10 3. ठाणं. अ. 8, सु. 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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