Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 147
________________ [दशाभूतस्कन्ध पर्युषणाकल्पसूत्र में स्थविरावली के बाद समाचारी के प्रारम्भ का सूत्र भी मौलिक और शुद्ध नहीं है, उस सूत्र का भावार्थ देखने से यह अच्छी तरह समझ में आ सकता है। समाचारी-प्रकरण के प्रथम सूत्र में यह कहा गया है कि "श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने वर्षावास के एक महीना बीस दिन बीतने पर वर्षावास किया। उसी प्रकार गणधरों ने किया, उसी प्रकार उनके शिष्यों ने एवं स्थविरों ने किया है और उसी प्रकार आजकल विचरने वाले श्रमण निर्ग्रन्थ करते हैं तथा हमारे प्राचार्य उपाध्याय भी उसी प्रकार वर्षावास करते हैं और हम भी वर्षावास का एक मास और बीस दिन बीतने पर (भादवासुदी पंचमी को) चातुर्मास करते हैं। उसके पहले भी अर्थात् चतुर्थी को करना कल्पता है किन्तु उसके बाद में करना नहीं कल्पता है / " ____दशाश्रुतस्कन्ध से हटाये गये पर्युषणाकल्प अध्ययन की साधु-समाचारी वर्णन के पाठ का यह प्रथम सूत्र है। चौदहपूर्वी भद्रबाहु द्वारा नियूंढ बृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र भी हैं। इनके सूत्रों से मिलान करने पर समाचारी का यह सूत्र उनकी रचनाशैली के समकक्ष प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि इस सूत्र के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न उद्भूत होते हैं / यथा-- 1. भगवान् ने कौनसा वर्षावास किस नाम या नगर में एक मास और बीस दिन बाद किया ? क्योंकि भगवान् ने तो सभी चातुर्मास प्राषाढ़ी चौमासी के पूर्व ही स्थिर किये, ऐसे उल्लेख आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। वर्षावास के लिए ठहरने के स्थान की चार मास पर्यन्त प्राज्ञा लेकर ही संत-सतियों के रहने की परम्परा प्राचीनकाल से आज तक अविच्छिन्नरूप से प्रचलित है। इतिहास में एक भी उल्लेख ऐसा उपलब्ध नहीं है कि किसी भी अमुक साधु ने एक मास और बीस दिन बाद भादवा की शुक्ला पंचमी को चौमासा बिठाया हो।। भगवान् के नाम से किसी प्रकार का विधान करना, यह भी छेदसूत्र की पद्धति नहीं है। नियुक्तिकार ने भी प्रथम सूत्र की ब्याख्या 23 गाथाओं में की है, उनमें कहीं भगवान् महावीरस्वामी के वर्षावास के निर्णय का कथन नहीं है। 2. "भगवान् ने किया वैसा गणधरों ने किया, वैसा ही उनके शिष्यों ने एवं स्थविरों ने किया, वैसे ही आजकल के श्रमण तथा हमारे प्राचार्य और हम करते हैं। पहले दिन पर्युषण कर सकते हैं किन्तु बाद में नहीं कर सकते हैं।" ऐसी क्रमबद्ध रचना को चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामी की रचना कहना भी असंगत है। 3. उक्त सूत्र में "हम" शब्द का प्रयोग करने वाला कौन है ? भद्रबाहु जैसे महान् श्रुतधर इस प्रकार कहें, यह कल्पना करना भी उचित प्रतीत नहीं होता। इस प्रकार पूर्वापर के तथ्यों पर चिन्तन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान में उपलब्ध पर्युषणाकल्पसूत्र के समाचारी प्रकरण का यह प्रथम सूत्र और अन्य अनेक सूत्र परिवर्तित और परिवधित हैं, अतः यह समाचारी भी भद्रबाहु की रचना प्रतीत नहीं होती है। इस दशा का जो स्वरूप नियुक्तिकार के सामने था वह उपलब्ध कल्पसूत्र में दिखाई नहीं देता है। अतः इस आठवीं दशा को संक्षिप्त पाठ वाली कहने की अपेक्षा आचारांग के सातवें अध्ययन के समान विलुप्त कहना ही उचित प्रतीत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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