Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 310
________________ परिहारकप्पट्टिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गज्छेज्जा, थेरा य से सरेज्जा वा नो सरेज्जा वा कप्पइ से निविसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए ज गंजणं दिसं अन्ने साहम्निया विहरंति तं गं तं गं दिसं उवलित्तए, नो से कप्पई तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए, तसि च ण कारणंसि निहियंसि परो वएज्जा वसाहि अज्जो ! एगरायं का दुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थइ, नो से कप्पइ परं एगरायाो वा दुरायाओ वा वत्थए, जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥२४॥ __भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उपसंपज्जित्ता णं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दीच्चपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ता णं विह रित्तए अत्थि या इत्य सेसे पुणो आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवढाएज्जा ॥२५॥ गणावच्छेयए य गणाओ अवकम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्उित्ता णं विरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उवसंपज्जिता णं विहरित्तए पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवठ्ठावेज्जा ॥२६॥ आयरियउवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता गं घिहरेज्जा, से य इच्छेज्चा दोच्चपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवहाएज्जा ॥२७॥ . भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म पासत्थविहारपडिमं उपसंपज्जित्ता णं विहरेजा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं वबसंपज्जित्ता णं विहरित्तए, अत्थि या इत्थ सेसे पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयस्स वा परिहारस्स वा उवट्ठावेज्जा ॥२८॥ भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म जहाछंदविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अस्थि या इत्थ सेसे पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयस्स वा परिहारस्स वा उवट्ठावेज्जा ॥२९॥ भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म कुसीलविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चपि तमेव गणं उपसंपज्जित्ता णं विहरित्तए अस्थि या इत्थ सेसे पुणों आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयस्स वा परिहारस्स वा उवट्ठावेज्जा ॥३०॥ - भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओसन्नविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेजा. से य इच्छेज्जा दोच्चपि तमेव गणं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए अस्थि या इत्थ सेसे पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयस्स वा परिहारस्स वा उपहावेज्जा ॥३॥

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