Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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अपभ्रष्ट होने से संरक्षण भी दिया है। आखिर 'जीवन्नरो भद्रशतानि पश्येत्' के यथार्थवादी सिद्धान्त को कोई कैसे सहसा अपदस्थ कर सकता है ? साधना और जीवन का प्रामाणिक विश्लेषण करने की दिशा में, चूणि, एक महत्त्वपूर्ण उपादेय सामग्री प्रस्तुत करती है । कुछेक प्रतिकूल बातों को छोड़कर शेष समस्त ग्रन्थ सूत्रार्थ की गंभीर एवं उच्चतर विपुल सामग्री से अटा पड़ा है। आखिर, २० x ३० उपेजी १६७३ पृष्टों के महाग्रन्थ की अमूल्य चिन्तन सामग्री से, कुछेक प्रतिकूल बातों की कल्पित भीति से वंचित रहना, विचारमूढ़ता नहीं तो और क्या है ? 'अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्, विचार - मूढ़ः प्रतिभासि मे त्वम् ।' अस्तु, आशा है आज का चिन्तनशील तटस्थ साधक, अपनी तत्त्वसंग्राहिणी प्रतिभा के उज्ज्वल प्रकाश में, सारासार का ठीक मूल्यांकन करके, स्वपर की संयम साधना को निरन्तर उज्ज्वल से उज्ज्वलतर बनायेगा |
मुनि श्री अखिलेशचन्द्र जी का प्रस्तुत सम्पादन कार्य में, प्रारंभ से ही उत्साहवर्द्धक सहयोग रहा है । उनकी व्यवस्था-बुद्धि के द्वारा, समय-समय पर काफी सुविधाएँ उपलब्ध हुई हैं । अस्तु, उनकी मधुर स्मृति का समुल्लेख यहां हमारे लिए आनन्दे की वस्तु है ।
महावीर-दीक्षा कल्याणक, मार्गशिर कृ० दशमी, वीराब्द २४८६
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- उपाध्याय अमरमुनि - मुनि कन्हैयालाल
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