Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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पृष्ठा
२८२-२८३ २८३-२८४ २८४-२८६ २८६-३०० ३००-३०२ ३०३ ३०३-३०४
३०४-३०५
३०५-३०७
३०५-३०७
[ १५ ] सूत्रसंख्या विषय
गाथाङ्क प्रतिसेवना के भेद-प्रभेद और तद्विषयक शङ्का-समाधान । ६३०३-६३०८ शल्योदरण के लिए आलोचना भोर उसके तीन प्रकार ६३०६-६३११ विहारालोचना
६३१२-६३२२ उपसम्पदालोचना
६३२३-६३७६ अपराधालोचना
६३७७-६३६० माया-मद मुक्त मालोचना के गुण
६३६१-६३६२ मालोचनाहं के दो प्रकार-मागम व्यवहारी और श्रुत-व्यवहारी ६३६३-६३६५ मायावी मालोचक को अश्व प्रौर दण्डिक के दृष्टान्तों द्वारा उद्बोधनादि
६३६६-६३१८ २-६ द्विमासिक प्रादि परिहार-स्थान के दोषी को परिकुञ्चित
तथा अपरिकुञ्चित पालोचना के भेद से प्रायश्चित्त दिमामादि परिकुञ्चित मालोचना के विषय में यथाक्रम कुचित तापस, शल्य,मालाकार प्रादि के उदाहरण तथा छः मास से अधिक तपः प्रायश्चित्त न देने का हेतु
६३६६ ७-१२ अनेक बार मासिक आदि परिहार-स्थान सेवन करने
वाले को परिकुचित एवं अपरिकुचित आलोचना के भेद से प्रायश्चित्त एक बार और अनेक गर के दोषी को समान प्रायश्चित्त देने के सम्बन्ध में शड्डा-समाधार तथा रासम-मूल्य, कोष्ठागार एवं खल्वाट के उदाहरण
६४००-६४२७ १३ मासिक आदि परिहार स्थानों के प्रायश्चित्त का संयोगसूत्र संयोग-सूत्र के सम्बन्ध में शङ्का-समाधान
६४१८-६४१६ १४ बहुशः मासिक आदि परिहार-स्थानों के प्रायश्चित्त
का संयोग-सूत्र संयोग-सूत्रों के . अन्य प्रकार, उनकी रचना-विधि, पौर तत्सम्बन्धी शङ्का-समाधान
६४२०-६४२६ १. स्थापना-संचय द्वार
६४२७-६४६२ स्थापना तथा प्रारोपणा की व्याख्या और उनके प्रकार प्रादि २. राशि द्वार
६४६३-६४६५ प्रायश्चित्त-राशि की उत्पत्ति के असंयम स्थान
३. मान द्वार विभिन्न तीर्थङ्करों की अपेक्षा से प्रायश्चित्त के मान (प्रमाण) की विविधता ४. प्रभु द्वार
६४६७-६४६८
३०८-३१३
३०८-३१३ ३१३-३१४ ३१३-३१४
३१४-३६०
३१४-३१८ ३१८-३३०
३३०
३३०-३३१
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