Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Amar PublicationsPage 19
________________ विषय पृष्ठाङ्क ६७-७२ ७२-७३ १५ ७३-१०० ७३ ७५-८७ ७५-७७ [ ५ ] सूत्रसंख्या गाथाङ्क मूलसूत्रगत वसुराति या सिराति शब्द की विभिन्न नियुक्तियाँ, वसुराति के प्रति असद्गुणोद्भावन के कारण, संविग्नों की असंविग्नों द्वारा की जाने वाली अवहेलना और उसका प्रतिवाद, तथा प्रस्तुत निषेध का अपवाद ५४२०-५४४१ अवसुरातिक को वसुरातिक कहने का निषेध ५४४२-५४४६ वसुरातिक गण से अवसुरातिक गण में संक्रमण का निषेध काल की दृष्टि से उपसम्पदा के तीन प्रकार ५४५१-५४५३ गच्छवास के गुण और उनकी व्याख्या ज्ञान-दर्शनादि की अभिवृद्धि के लिए गणान्तरोपसम्पदा की स्वीकृति ज्ञानार्थ उपसम्पदा ५४५६-५५२२ सूत्र, अर्थ आदि के ज्ञानार्थ को जाने वाली उपसम्पदा और उसके भीत आदि पाठ अतिचार, उनका स्वरूप एवं तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त ५४५६-५४७२ निष्कारण प्रतिषेधक प्रादि के निकट उपसम्पदा स्वीकार करने की विधि ५४७३-५४७४ अप्रतिषेधक आदि से सम्बन्धित अपवाद ५४७५-५४८० व्यक्त तथा अव्यक्त शिष्यों का स्वरूप, उन्हें उपसम्पदा लेने के लिए साथ में अन्य साधु को भेजने के सम्बन्ध में प्रतीच्छनीय प्राचार्य एवं मूलाचार्य-सम्बन्धी प्राभाव्य एवं अनाभाव्य का विभाग ५४८१-५४८९ प्राचार्य-उपाध्याय आदि की आज्ञा के विना उपसम्पदा स्वीकार करने वाले शिष्य एवं प्रतीच्छक प्राचार्य को प्रायश्चित्त और आज्ञा न देने के कारण ५४६०-५४६१ ज्ञानार्थ उपसम्पदा की विधि ५४६२-५५२२ दर्शनार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५२३-५५३८ चारित्रार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५३६-५५५० निर्ग्रन्थी-विषयक ज्ञानादि उपसम्पदा ५५५१-५५५२ संभोगार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि ५५५३-५५७० प्राचार्य-उपाध्यायार्थ उपसम्पदा और उसकी विधि। ५५७१-५५६३ १७-२५ कलह के कारण संघ से निष्क्रान्त भिक्षुओं के साथ अशनादि, वस्त्रादि, वमति एवं स्वाध्याय के दानादान का निषेध ७७-७४ ७६-८० ८०-८१ ८१-८७ ८७-८९ ८९-१२ १२ ६२-६६ ६६-१०० १००-१०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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