Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 20
________________ सूत्रसंख्या विषय गाथाङ्क पृष्ठाङ्क १०१-१०५ १०५-५२४ १०६-१०७ १८८-१८४ १८-११० अपक्रमण के प्रकार, बहुग्तादि सात निह्नवों का परिचय, निह्नवों के साथ अशनादि-दानादान सम्बन्धी प्रायश्चित और अपवाद ५५६४-५६३३ पाहारादि की दृष्टि से सुलभ जनपदों के रहते अनेक दिन-गमनीय अध्वा के विहार का निषेध मूलसूत्रगत 'विह' शब्द का अर्थ और अध्वा के प्रकार ५६३४-५६:५ दिन अथवा रात्रि में गमन और रात्रि-विषयक मान्यता के सम्बन्ध में दो आदेश ५६३६ रात्रि में मार्गरूप अध्वगमन से होने वाले दोषों का वर्णन और तत्सम्बन्धी अपवाद ५६३७-५६४४ पन्य के छिन्नादि दो प्रकार और तदगमन की विधि ५६४५-५६४६ रात्रि में पंथरूप प्रध्वगमन से लगने वाले प्रात्मविराधना प्रादि दोषों का स्वरूप तथा अध्योपयोगी उपकरण न रखने से होने वाले दोप ५६४७-५६५२ अध्वगमन-सम्बन्धी अपवाद के कारण, अध्वोपयोगी उपकरणों का संग्रह तथा योग्य सार्थवाह की शोध ५६५३-५६५७ भण्डी, वहिलक आदि पाँच प्रकार के सार्थ और उनके साथ जाने की विधि ५६५८-५६६० सार्थ और सार्थवाह ग्रादि कैसे है ? सार्थ की खाद्य-सामग्री और पडाव डालने प्रादि की क्या व्यवस्था है ? इत्यादि बातों के सम्बन्ध में उचित जानकारी प्राप्त करने की विधि ५६६१-५६७० आठ प्रकार के सार्थवाह और पाठ ही प्रकार के प्रति प्रात्रिकसार्थ-व्यवस्थापक ५६७१ अध्वगमन-विषयक ५१२० भङ्ग ५६७२-५६७६ सार्थवाह से सहयात्रा की आज्ञा प्राप्त करने की विधि, और भिक्षा आदि से सम्बन्धित यतना ५६७७-५६८२ अध्वगमनोपयोगी अध्व-कल्प का स्वरूप ५६८३-५६८८ अध्वकल्प और आधार्मिक की सदोषता-निर्दोषता के सम्बन्ध में शंका-समाधानादि ५६८४-५६६४ अध्वगमन-विषयक श्वापद, स्तेन, अशिव, दुर्भिक्ष आदि व्याघात और तत्सम्बन्धी यतनायों की सविस्तर विवेचना ५६६५-५७२६ सुलभ जनपदों के रहते विरूप, दस्यु और अनार्य आदि प्रदेशों में विहार करने का निषेध विरूप, प्रत्यंत, अनार्य आदि की व्याख्या ५७२७-५७२८ प्रार्य-पार्यसंक्रम प्रादि संक्रमण-सम्बन्धी चतुर्भङ्गी ५७२६-५७३१ १५०-११२ ११२ ११२-११३ ११३-११५ ११५-११६ ११६-११७ ११७-५२४ १२४-१३१ १२४ १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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