Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 18
________________ सूत्रसंख्या विषय जलाशय के निकट स्थान, निषीदन प्रादि दस स्थानों के सम्बन्ध में सामान्य प्रायश्चित्त निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला का स्वरूप दकतीर के संपातिम तथा असंपातिम नामक दो भेद, उक्त दकतीर द्वय पर स्थान एवं निषीदन प्रादि दस स्थानों को सेवन करने वाले प्राचार्य, उपाध्याय आदि पाँच निर्ग्रन्थों तथैव प्रवर्तिनी, अभिषेका आदि पाँच निर्ग्रन्थियों के लिए प्रायश्चित्तविषयक विभिन्न प्रदेश [ ४ ] १४ यूपक स्वरूप और तद्विषयक प्रायश्चित्त दकतीर पर श्रातापना लेने से लगने वाले दोष दकतीर, यूपक तथा प्रतापना विषयक अपवाद एवं यतना साग्नि (अग्निसहित) शय्या का निषेध साग्नि शय्या के भेद-प्रभेद उत्सर्ग और अपवाद-विषयक विस्तृत चर्चा अनुज्ञापना आदि त्रिविध यतना ज्योतियुक्त उपाश्रय में निवास करने से लगने वाले दोषों का प्रतिलेखनादि पतनान्त पदों द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्त, अनवाद एवं तत्सम्बन्धी यतना [प्रसङ्गवश पणितशाला आदि छह शालाओं का निरूपण, गाथा ५३६०-६१] दीपक के प्रकार, तयुक्त उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोषों का प्रतिमादहनादि पदों द्वारा निरूपण, तद्विषयक प्रायश्चित्त, अपवाद और यतना ४-७ सचित्त तथा सचित्त प्रतिष्ठित इभु के भोजन एवं विदशन का निषेध ८- ९१ इक्षु के सचित्त तथा सचित्त प्रतिष्ठित विभिन्न विभागों के भोजन एवं विदशन का निषेध इक्षु के अन्तरिक्षु आदि विभिन्न विभागों की व्याख्या १२ - १३ अरण्य आदि में जाते- प्राते लोगों से प्रशनादि लेने का निषेध वन-यात्रा के हेतु जाते- प्राते यात्रियों से प्रशनादि लेने से दोष तथा अशिवादि अपवाद वसुरातिक (संयमी ) को अवसुरातिक (असंयमी ) कहने का निषेध Jain Education International गाथाङ्क ५३२५ ५३२६ ५३२७-५३३७ ५३३८-५३४१ ५३४२-५३४५ ५३४६-५३५१ ५३५२-५३५३ ५३५४-५३७३ ५३७४ ५३७५-५४०३ ५४०४- ५४०६ ५४१० ५४११-५४१२ For Private & Personal Use Only ५४१३-५४१६ पृष्ठाङ्क ५० ५१ ५१-५३ ५४ ५५ ५६-५७ ५७-६५ ५७ ५७-५६ ५६ ५६-६४ ६१ ६४-६५ ६५ ६५ ६५-६६ ६६ ६६-६७ ६७-७२ www.jainelibrary.org

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