Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 16
________________ सूत्र संख्या विषय देवतादि के सानिध्यवाली दिव्य प्रतिमानों से युक्त उपाश्रय में रहने से देवता की ओर से की जाने वाली परीक्षा, प्रत्यनीकता तथा भोगेच्छा के निमित्त से होने वाली चेष्टाए और तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त देवता के सान्निध्यवाली प्रतिमानों के प्रकार प्रतिमाओं के सान्निध्यकारी देवता के सुखविज्ञप्य, सुखमोच्य आदि चार प्रकार और तत्सम्बन्धी प्रकरनंगम, रत्नदेवता आदि के उदाहरण [ २ ] जनसाधारण, कौटुम्बिक तथा दण्डिक के स्वामित्व वाली दिव्य स्त्री-प्रतिमानों, प्रतिमा ही नहीं उनकी स्त्रियों, और तत्सम्बन्धी प्रायश्चितों की गुरुता, लघुता और उसके कारण मनुष्य - प्रतिमा का स्वरूप जनसाधारण आदि के स्वामित्ववाली मनुष्य-प्रतिमाषों के जघन्य, मध्यम प्रादि प्रकार और उक्त प्रतिमाओं वाले उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोष और तद्विषयक प्रायश्चित मनुष्य- स्त्री के सुखविज्ञप्य सुखमोच्य श्रादि चार प्रकार, उनके उदाहरण, दोष, प्रायश्चित और तत्सम्बन्धी गुरुतालघुता श्रादि तिर्यञ्च प्रतिमा का स्वरूप जनसाधारण, कौटुम्बिक तथा दण्डिक के स्वामित्ववाली तिर्यञ्च प्रतिमानों के जघन्य, मध्यम आदि प्रकार और उक्त प्रतिमा वाले उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोष एवं उनके प्रायश्चित्त तिर्यञ्च स्त्री के सुखविज्ञप्य सुखमोच्य प्रादि चार प्रकार और तत्सम्बन्धी उदाहरण निर्ग्रन्थियों के लिए द्विव्यादि स्त्री-प्रतिमा के स्थान में पुरुषप्रतिमा की सूचना और कुक्कुरसेवी स्त्री का दृष्टान्त सागारिक शय्या सम्बन्धी श्रपवाद और तद्विषयक चिलिमिलिका, निशिजागरण आदि यतना सागारिक शय्या का सामान्य वर्णन करने के अनन्तर श्रमणश्रमणी के विभाग से विशेष वर्णन की प्रतिज्ञा श्रमणों को स्त्री उपाश्रय में तथा श्रमणियों को पुरुष - उपाश्रय में रहने का निषेध एवं सजातीय उपाश्रय में रहने का विधान सूत्र- रचना-विषयक शङ्का और उसका समाधान निर्ग्रन्थ-विषयक सागारिक सूत्र की विस्तृत व्याख्या Jain Education International गाथाङ्क ५१४४-५१५३ ५४५४ ५१५५-५१५८ ५१५६-५१६५ ५१६६-५१७६ ५१६६-५१७६ ५१-५१७६ ५१८०- ५१६२ ५१८०- ५१८६ ५१६०- ५१६२ ५१६३ ५५६४ - ५१६६ ५१६७ ५१६८ ५१६६-५२०२ ५२०३-५२२२ For Private & Personal Use Only पृष्ठाङ्क ११-१३ १३ १३-१४ १५-१६ १६-१६ १६-१८ १६ १६-२२ १६-२१ २१-२२ २२ २२-२३ २३ २३ २३-२४ २४-२८ www.jainelibrary.org

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