Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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सूत्रसंख्या
विषय
मात्रक के ग्रहरण का विधान
मात्रक न लेने से होने वाले दोषों की द्वार-गाथा
[१०]
१. अग्रहरणे वारत्रक द्वार
मात्रक न रखने से लगने वाले दोष धीर वारत्रक का दृष्टान्त
२. प्रमाण-द्वार
मात्रक का प्रमाण और इस सम्बन्ध में तीन प्रादेश
सूत्रोक्त विशेषरण - विशिष्ट पृथ्वी प्रादि पर उच्चार- प्रस्रवण करने के दोष भौर अपवाद
छोटे-बड़े भ्राताओं के उल्लेख के साथ चूर्णिकार का अपना परिचय
सप्तदश उद्ददेशक
षोडश और सप्तदश उद्देशक का सम्बन्ध
१ - २ कौतूहल से त्रस प्राणियों को बांधने तथा छोड़ने का निषेध
३ - ५ कौतूहल से तृणमाला, मुजमाला आदि मालाओं के निर्माण, एवं धारण आदि का निषेध ६-८ कौतूहल से लौह आदि धातुओं के निर्माण एवं धारण प्रादि का निषेध
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गाथाङ्क
३-४ हीनद्वार - अधिकद्वार
शास्त्र - विहित प्रमाण से छोटा या बड़ा मात्रक रखने से दोष ५-६ शोधि, अपवाद, परिभोग, ग्रहण तथा द्वितीय पद द्वार
श्राचार्य, बाल, वृद्ध, तपस्वी एवं रोगी प्रादि के लिए मात्रक का ग्रहण, तथा निष्कारण स्वयं मात्रक का उपयोग करने पर प्रायश्चित्त आदि ।
मात्रक के लेप की विधि
५६००
पाणि-प्रतिग्रही यादि जिन कल्पिक, परिहार- विशुद्धि,
माहालन्दिक, स्थविर कल्पिक तथा निग्रन्थियों का उपधि-विभाग ५६०१ ४१-४५ सचित्त, सस्निग्ध तथा जीव-प्रतिष्ठित प्रादि पृथ्वी पर उच्चार-प्रस्रवरण करने का निषेध
४६-४८ जीव- प्रतिष्ठित शिला आदि पर उच्चार-प्रस्रवण करने का निषेध
४६-५१ थूणा श्रादि, कुण्ड आदि, प्राकार आदि पर उच्चारप्रस्रवण करने का निषेध
५८६६-५८८७ १५७
१५.७
५८८६-५८६० १५८
५८
५८६१-५८६३
५८६४ -५८६६
५८६७-५८६६
५६०२-५६०३
५६०४
५६०५-५६०६
५६१०-५६११
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पृष्ठाङ्क
१५८-१५६
१५६
१५६ - १६०
१६०
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१६१-१६२
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१६२-१६३
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१६५-१६६
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५६१२-५६१३ १६६-१६७
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