Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 5
________________ ११ षष्टांग-जाताधर्म कथांन सूत्र ज्ञाताधर्मकथांग की प्रस्तावना प्रणम्य श्रीमहावीरं, स्मृत्वा चैव सरस्वति ॥वदे सद्गुरुगदांबुजं, स्तंबुककिंचिंदुच्यते॥३॥ ज्ञाताधर्मकथांगस्य. सुभबोधहेतवे ॥ स्वात्मापरोपकाराय संतष्ठानुभवात् ॥ २ ॥ इष्टार्थ की सिद्धि के लिये प्रथम अन्तिम तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामीजी को नमस्कार कर के जिनवाणी सरस्वति का हृदय में स्मरण कर के और सद्गुरु को नमस्कार कर के षडमांग हाता धर्म कथा जो मानधी भाषामय श्रीजिनेश्वर मणित है उस का भव्य गणों को मुखरूप शीघ्र दोष होने इस हेतु से निश्चय से स्वास्मा के औरव्यवहार सेंपरात्मा के उपकारार्थ हिन्दी भाषामय अनुवाद करता हूं. कथानकानां पवार्धचतस्रः कोटयः स्थिताः । सोत्क्षिप्तादिज्ञातहृदय, ज्ञाताधर्मकथा:श्रये ॥ ३ ॥ इस हाती धर्म-कथांग में पहिले साडी तीन कोटी धर्म कथाओं थी. अब इस के दो श्रुत्स्कन्ध में। सब २३५ अध्ययन रहगये हैं. प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम न्याय है, अर्थात् इस के उनीस अध्याय में 2 उनीस क्याओं दया रूप काकर फिर उस का न्याय भावार्थ साधु के आचार पर व्यवहार सुधारेपर + उतारा है. दूसरे प्रस्किन्ध का नाम धर्मकया है. उस के २१६ अध्ययन में पार्षनाथ स्वामी की mmmmwww प्रस्तावना 4848 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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