Book Title: Agam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 449
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० भगवई - २५/-1४/८८३ विएवं एगिदिय-सिद्धवजा सव्वे वि सिद्धा एगिंदिया य जहा जीवा जीवे णं भंते किं कडजुम्मसमयद्वितिए-पुच्छा गोयमा कडजुम्मसमयद्वितीए नो तेयोगसमयट्टितीए नो दावरजुम्मसमयद्वितीए नो कलियोगसमयहितीए नेरइयए णं मंते - पुच्छा गोयमा सिय कडजुम्मसमयडितीए जाव सिच कलियोगसमयद्वितिए एवं जाव देमाणिए सिद्धे जहा जीवे जीवाणं भंते-पच्छा गोयमा ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मसमयद्वितीया नो तेयोगसमयद्वितीया नो दावरजम्म- सवद्वितीया नो कलियोगसमद्वितीया नेरइयाण-पुच्चा गोयमा ओधादेसेणं सिय कडजुम्मसमयद्वितीया जाव सिय कलियोगसमयद्वितीया वि एवं जाव वेगाणिया सिद्धा जहा जीवा जीवे णं मंते कालावण्णपजवेहिं किं कडजुम्मे-पच्छा गोयपाजीवपदेसे पइच्च नोकडजम्मेजाव नो कलियोगे सरीरपदेसे पच्छ सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे एवं जाव वेमाणिए सिद्धो ण चेव पुच्छिज्जति [सिद्धा जहा जीवा ७३७/-736 (८८४) जीवा णं भंते कालवनपनवेहिं-पुच्छा गोयमा जीवपदेसे पइन्च ओघादेसेणं वि विहाणादेसेण विनो कडजुम्मा जाव नो कलियोगा सरीरपदेसे पडुछ ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिव कलियोगा विहाणादेसेणं कडजम्पावि जाव कलियोगा वि एवं जाव वेमाणिया एवं नीलावण्णपजवेहि दंडओ भाणियच्चो एगत्तपहत्तेणं एवं जाव लुक्खफासपञ्जवेहिं जीये णं भंते आभिणिबोहियनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मे-पुच्छा गोयपा सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे एवं एगिदियवनं जाव वेमाणिए जीवाणं भंते आभिणिबोहियनाणपतयेहि-पुच्छा गोयमा ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि एवं एगिदियवा जाव वेमाणिया एवं सुयनाणपञ्जवेहि वि ओहिनाणपञ्जवेहिं वि एवं चेव नवरंविगलिंदियाणं नस्थि ओहिनाणं मणपजवनाणं पि एवं चेव नवरं-जीचाणं पणुस्साणं य सेसाणं नत्यि जीवे णं भंते केवलनाणपनवेहिं किं कडजुम्मे पुच्छा गोयमा कडजुम्मे नो तेयोगे नो दावरजुम्मे नो कलियोगे एवं मणुस्सा वि एवं सिद्धा वि जीवे णं भंते मइअन्नाणपज्जवेहं किं कडजुम्मे जहा आभिणिबोहियनाणपनवेहिं तहेव दो दंडा एवं सुयन्नअण्णाणपज्जवेहिं वि एवं विभंगनाणपञ्जवेहिं वि चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण-ओहिदंसणपनवेहि वि एवं चेव नवरं-जस्स जं अस्थि तं भाणियव्यं केवलदसणपज्जवेहिं जहा केवलनाण पज्जवेहि ७३८1-737 (८८५) कति णं भंते सरीरगा पत्रत्ता गोयपर पंच सरीरगा पत्रत्ता तं जहा-ओरालिए जाव कम्मए एत्य सरीरंगपदं निरवसेसं भाणियब्बंजहा पन्त्रवणाए।७३९।-738 (८८६) जीवा णं भंते कि सेया निरेया गोयमा जीवा सेया वि निरेया वि से केणटेणं भंते एवं वुचइ-जीवा सेया वि निरेवा वि गोयपा जीया दुविहा पन्नत्ता तं जहा-संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य तत्थ णं जे ते असंसारसमावष्णगाते णं सिद्धा सिद्धा णं दुविहा पन्नता तं जहा-अनंतरसिद्धा य परंपरसिद्धा य तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया तत्थ णं जे ते अनंतरसिद्धा ते णं सेया ते णं भंते किं देसेया सज्वेया गोयमा नो देसाय सब्वेया तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पत्रत्ता तं जहा सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगाय तस्य णं जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं निरेया तत्थ णं जे ते असेलेसीपडिवण्णगा ते णं सेया ते णं भंते किं देसेया सव्वेया गोयमा देसेया वि सव्येया वि से तेणटेणं जाव निरेया वि नेरइयाणं भंते किं देसेया सब्वेया गोयमा देसेया वि सव्वेया वि से केणटेणं जाव सव्येया वि गोयमा नेरइया दुविहा पन्नत्तातं For Private And Personal Use Only

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