Book Title: Agam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૪૬૨
भगवई - २५/-/७/९५३
पुच्छा गोयमा नत्थि अंतरं छेदोवडावणियाणं पुच्छा गोयमा जहण्णेणं तेवद्धिं वाससहस्साई उक्कोसेणं अट्टारस सागरोवमकोडाकोडीओ परिहारविसुद्धियाणं पुच्छा गोयमा जहण्णेणं चउरासीइं वाससहस्साई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ सुहुमसंपरायाणं जहा नियंठाणं अहक्खायणं जहा सामाइयसजयाणं सामाइयसंजयस्स णं भंते कति समुग्धाया पन्नत्ता गोयमा छ समुग्धाया पन्नत्ता जहा कसायकुसीलस्स एवं छेदोबट्टावणियस्स वि परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स सुहुमसंपरागस्स जहा नियंटम्स अहक्खायस्स जहा सिणायस्स सामाइयसंजए णं भंते लोगस्स किं संखे भागे होज्जा असंखेजड़भागे-पुच्छा गोयमा नो संखेज्जइभागे जहा पुलाए एवं जाय हुमपराए अक्खायसंजए जहा सिणाए सामाइयसंजए णं भंते लोगस्स किं संखेज्जइभागं एसइ जब होज्जा लहेब फुसइ सामाइयसंजए णं भंते कचरम्मि भावे होज्जा गोयमा खओवसमिए भावे होज्जा एवं जाव सुहुमंसपराए अहक्खयसंजए -पुच्छा गोयमा उवसमिए वा खइए वा भावे होज्जा सामाइयसंजया णं भंते एगसमएणं केवतिया होज्जा गोयमा पडिवज्रमाणए व पद्दुच्च जहा कसायकुसीला तहेव निरवसेसं छेदोवडावणिया- पुच्छा गोयमा पडिवज्रमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि जइ अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिष्णि वा उक्कोसेणं सयपुहत्तं पुव्वपडिवण्णए पद्दुच्च सिय अत्थि सिय नत्थि जइ अत्थि जहन्नेणं कोडिसयपुहत्तं उक्कोसेण वि कोडिसय- पुहत्तं परिहारविसुद्धिया जहा पुलागा सुहुमसंपराया जहा नियंठा अहक्खायसंजया णं पुच्छा गोयमा पडिबजमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि जइ अस्थि जहणेणं एक्को वा दो वा तिणि वा उक्कोसेणं बावट्टं सयं अट्ठत्तरस्यं खवगाणं चउप्पण्णं उवदासामगाणं पुब्वपडिवण्णए पहुच जहणणं कोडिपुहत्तं उक्कोसेणं वि कोडिपुहत्तं एएसि णं भंते सामाइय-छे ओवट्ठावणियपरिहारविसुद्धिया- सुहुमसंपराय - अहखायसंजवाणं कयरे कयरेहिंतो जाय विसेसाहिया वा गोचमा सव्वत्थोवा हुमसंपरायसंजया परिहारविसुद्धियसंजया संखेज्जगुणा अहक्खायसंजया संखेजगुणा छे ओवट्ठायणियसंजया संखेज्जगुणा लामाइयसंजया संखेज्जगुणा । ७९९।-798 (९५४) पडिसेवण दोसालोयणा य आलोयणारिहे चेव
तत्तो सामायारी पायच्छित्ते तवे चेय
1190311-3
(९५५) कइविहाणं भंते पडिसेवणापन्नत्तागोयमा दसविहा पडिसेवणाप. १८००-१/-800-1 (९५६ ) दप्पप्पमादणाभोगे आउरे आवतीति व
संकिण्णे सहसक्कारे भयप्पओसा य वीमंसा (९५७) दस आलोयणादोसा पन्नता ( तं जहा ) - १८००-२1-800-2
||१०४}}-1
( ९५८) आकंपइत्ता अनुमानइत्ता जं दिट्ठ बादरं व सुहुमं वा छन्नं सद्दाउलयं बहुजण अव्वत्त तस्सेवी
॥१०५॥-2
( ९५९) दसहिं ठाणेहिं संपणे अणगारे अरिहति अत्तदोसं आलोइयाए तं जहाजातिसंपणे कुलसंपणे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसणसंपण्णे चरितसंपण्णे खंते दंते अमाय अपच्छातावी अहिं ठाणेहि संपत्रे अणगारे अरिहति आलोयणं पड़िच्छित्तए तं जहा आयारवं आहारवं ववहारवं उच्चीलए पकुव्वए अपरिस्साबी निज्जवए अवायदंसी १८००-३-१८००/-799 (९६०) दसविहा सामायारी पत्रत्ता [तं जहा ] ८०१ । (९६१ ) इच्छा मिच्छा तहक्कारो आवलस्सिया य निसीहिया
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514