Book Title: Agam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 498
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-३४, पडसे सते, उदेसो-२ ४८९ बादरवणस्सइकाइया य कहि णं भंते अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पत्रत्ता गोयमा सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु तं जहा-रयणप्पभाए जहा ठाणपदे जाव दीवेसु समुद्देसु एत्य णं अनंतरोववनगाणं बादरपुढविकाइयाणं ठाणा पत्रत्ता उववाएणं सय्यलोए समुग्धाएणं सव्यतोए सहाणेणं लोगस्स असंखेजड़भागे अनंतरोवकनगसुहमपुढविककाइया एगविहा अविसेसमणाणता सबलोए परियावन्ना पन्नत्ता समणाउसो एवं एएणं कमेणं सव्वे एगिदिया भाणियब्बा सट्ठाणाई सब्वेसि जहा ठाणपदे तेसिं पजत्तगाणं बादराणं उरवाय-समुग्धायसवाणाणि जहा तेसिं चेव अपनत्तागाणं बादराणं सुहुभाणं सव्वेसिं जहा पुढविकाइयाणं भणिया तहेव भाणियब्वा जाव वणरसइइयत्ति अनंतरोववनगाणं सुहमपुढविककाइयाणं भंते कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ गोयमा अट्ट कम्मप्पगडीओ पत्रताओ एवं जहा एगिदियएस अनंतरोक्वनगउद्देसए तहेव पन्नताओ तहेव बंधंति तहेव वेदेति जाव अनंतरोववनगा बादरवणस्सइकाइया, अनंतरोववनगएगिदिया णं भंते कओ उववनंति जहेव ओहिए उद्देसओ भणिओ तहेव अनंतरोववनगएगिदियाणं भंते कति समुग्धाया पन्नत्ता गोयमा दोत्रि समुग्धाया पन्नत्ता तं जहा-वेदणासपुग्धाए य कसारसमुधाए य अनंतरोववनगएगिदिया णं भंते किं तुलद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेति-पुच्छा तहेव गोयमा अत्यंगइया तुलद्वितीया तुलविसेसाहियं कम्मं पकरेंति अस्थेगइया तुलद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति से केणडेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्भ पकरेंति गोयमा अनंतरोववत्रगा अत्थेगइया सपाउया विसपोववन्नगा तत्य णं जे ते समाउया समोववनगा ते णं तुलद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति तत्थ णं जे ते सपाउया विसमोववन्नगा ते णं तुलद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मंपकरेंति से तेणद्वेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति सेवं भंते सेवं भंते ति।८५३1852 • चोत्तीसहमे सत्ते पढपे सते बीमो उद्देलो समतो. -: तइओ-उद्दे सो :(१०३६) कइविहाणं मंते परंपरोवदन्नगा एगिदिया पन्नत्ता गोयमा पंवबिहा परंपरोववनगा एगिदिया पत्रत्ता तं जहा-पुढविक्काइया भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति परंपरोक्वन्नगअपज्जत्तासुहमपुढविककाइए णं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणिता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपजत्तासुहमपुढविकाइयत्ताए उववजितए एवंएएणंअभिलावेणंजहेब पढमो उद्देसओजावलोगचरिमंतोत्ति कहि गंभंतेपरंपरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणंठाणा पत्रत्ता गोयमा सट्ठाणेणं अट्ठसुपुढयीसुएवंएएणं अभिलावेणंजहापढउद्देसएजावतुलद्वितीयत्तिसेवं मंते सेवं भंतेत्ति।८५४-११-853-1 .चोत्तीसइमे सते-पढमे सते तइओ उद्देसो समतो. - उई सा-४-११ (१०३७) एवं सेसा वि अट्ठ उद्देसगा जाव अपरिमो ति नवरं-अनंतरा अनंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरिमाय अचरिमा य एवं चेव एवं एते एककारस उद्देसगा।८५४1-853 चोत्तीसइमे सते-पढये सते-४-११ उद्देसा समता. 卐 चोत्तीसइपे सत्ते-बिइयं सतंज - उ हे सा-१-११:(१०३८) कइविहा णं भंते कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता गोयपा पंचविहा कण्हलेस्सा 1532) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514