Book Title: Agam 01 Aayaro Padhamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 13
________________ सयक्खंधो-१, अज्झयणं-३, उद्देसो-१ [१११] से आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं, मनीति वच्चे धम्मविउ उज्जू आवदृसोए संगमभिजाणति । [११२] सीओसिणच्चाई से निग्गंथे अरइ-रइ-सहे फरुसियं नो वेदेति जागर-वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमोक्खसि जरामच्चवसोवणीए नरे सययं मूढे धम्मं नाभिजाणति । [११३] पासिय आउरे पाणे अप्पमत्तो परिव्वए, मंता य मइमं पास, आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा, माई पमाई पुणरेइ गब्भं, उवेहमाणो सद्द-रुवेस उज्जू माराभिसंकी मरणा पमच्चति अप्पमत्तो ___ कामेहिं उवरतो पावकम्मेहिं वीरे आयगुत्ते खेयण्णे, जे पज्जवजाय-सत्थस खेयण्णे से असत्थस्स खेयण्णे जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजायसत्थस्स खेयण्णं, अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ, कम्मणा उवाही जायइ कम्मं च पडिलेहाए | [११४] कम्ममूलं च जं छणं, पडिलेहिय सव्वं समायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिणाय मेहावी विदित्ता लोग वंता लोगसण्णं से मेहावी परक्कमेज्जासि- त्तिबेमि | तइए अज्झयणे पढमो उद्देसो समत्तो बीओ - उद्देसो. [११५] जातिं च वुद्धिं च इहज्ज! पासं भूतेहिं जाणे पडिलेह सातं । तम्हा तिविज्जं परमंति नच्चा समत्तदंसी न करेति पावं ।। [११६] उम्मुंच पास इह मच्चिएहिं आरंभजीवी उभयाणुपस्सी । कामेसु गिद्धा निचयं करेंति संसिच्चमाणा पुणति गब्भं ।। [११७] अवि से हासमासज्ज ता नंदीति मन्नति । अलं बालस्स संगेण वेरं वडढेति अप्पणो । [११८] तम्हा तिविज्जो परमंति नच्चा आयंकदंसी न करेति पावं । अग्गं च मूलं च विगिच धीरे पलिच्छिंदिया णं निक्कम्मदंसी ।। [११९] एस मरणा पमुच्चइ, से हु दिट्ठभए मुनी लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते समिते सहिते सया जए कालकंखी परिव्वए बहुं च खलु पावकम्म पगडं ।। [१२०] सच्चंसि धितिं कव्वहा एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावकम्मं झोसेति । [१२१] अनेगचित्ते खलु अयं परिसे, से केयणं अरिहए पूरित्तए से अन्नवहाए अन्नपरियावाए अन्नपरिग्गहाए जणवयवहाए जणवयपरियावाए जनवयपरिग्गहाए । एतमट्ठ इच्चेवेगे समुट्ठिया तम्हा तं बिइयं नो सेवए निस्सारं पासिय नाणी उववायं चवणं अनन्नं चर माहणे, से न छणे न छणावए छणंतं नानजाणइ निव्विंद नंदि अरते पयास अनोमदंसी निसन्ने पावेहिं कम्मेहिं । [१२३] कोहाइमानं हणिया य वीरे लोभस्स पासे निरयं महंतं । तम्हा हि वीरे विरते वहाओ छिंदेज्ज सोयं लहभूयगामी ।। [१२४] गंथं परिण्णाय इहेऽज्ज वीरे सोयं परिण्णाय चरेज्ज दंते । उम्मग्ग लघु इह माणवेहिं नो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि ।। त्तिबेमि [दीपरत्नसागर संशोधितः] [12] [१-आयारो

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