Book Title: Agam 01 Aayaro Padhamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ सुयक्खंधो-१, अज्झयणं-२, उद्देसो-४ दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग- तिरिक्खाए सततं मूढे धम्मं नाभिजाणइ उदाहु वीरे अप्पमादो महामोहे, अलं कुसलस्स पमाएणं, संतिमरणं संपेहाए भेउरधम्मं संपेहाए नालं पास अलं ते एएहिं । [८७] एयं पास मुनी ! महब्भयं नाइवाएज्ज कंचणं, एस वीरे पसंसिए जे न निविज्जति आदानाए, न मे देति न कुप्पिज्जा, थोवं लघुं न खिंसए पडिसेहिओ परिणमिज्जा, एयं मोनं समणुवासेज्जासि - तिबेमि । [८८] जमिणं विरुवरुवेहिं सत्थेहिं लोगस्स कम्म-समारंभा कज्जंति, तं जहा- अप्पणो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं नातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाए ढो पहेणाए सामासाए पायरासाए सन्निहि- सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए । [८९] समुट्ठिए अनगारे आरिए आरियपणे आरियदंसी अयंसंधिति अक्खु से नाइ नाइयाव न समणुजाणए सव्वामगंधं परिण्णाय निरामगंधो परिव्वए । बीए अज्झयणे चउत्थो उद्देसो समत्तो • पंचमो उद्देसो • [९०] अदिस्समाणे कय- विक्कएस से न किणे न किणावए किणंतं न समणुजाण, से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे ससमयण्णे परसमयण्णे भावण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालाणुट्ठाई अपडणे । [९१] दुहओ छेत्ता नियाइ वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं एते व जाणिज्जा । [९२] लद्धे आहारे अनगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं, लाभो त्ति न मज्जेज्जा, अलाभो त्ति न सोएज्जा, बहुं पि लघुं न निहे, परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा । [९३] अन्नहा णं पासए परिहरेज्जा, एस मग्गे आरिएहिं पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि । [९४] कामा दुरतिक्कमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं, कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयति जूरति तिप्पति परितप्पति । [९५] आयतचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरयं भागं जाणइ, गढिए लोए अनुपरियट्टमाणे संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं, एस वीरे पसंसिए जे बधे पडिमोयए, जहा अंतो तहा बाहिं जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि पासति पुढोवि सवंताई पंडि पडिलेहाए । [९६] से मइमं परिण्णाय मा य हु लालं पच्चासी, मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए, कासंकासे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई कडेण मूढे, पुणो तं करेइ लोभं वेरं वड्ढेति अप्पणो, जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिबूहणयाए, अमरायइ महासड्ढी, अट्टमेतं तु पेहाए अपरिण्णाए कंदति । [९७] से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिते पवयमाणे से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मन्नमाणे, जस्स वि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारेइ बाले, न एवं अनगारस्स जायति - तिबेमि । बीए अज्झयणे पंचमो उद्देसो समत्तो [10] [दीपरत्नसागर संशोधितः] [१-आयारो]

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