Book Title: Agam 01 Aayaro Padhamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[१५३] जे खल भो! वीरा समिता सहिता सदा जया संघडदंसिणो आतोवरया अहातहा लोयं उवेहमाणा पाईणं पड़ीणं दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिचिट्ठिस, साहिस्सामो नाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा जयाणं संघडदंसिणं आतोवरयाणं अहा-तहा लोगं उवेहमाणाणं किमत्थि उवाधी पासगस्स ? न विज्जति ? नत्थि, त्तिबेमि ।
चउत्थे..अज्झयणे चउत्थो उद्देसो. समस्तो मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च चउत्थं अज्झयणं समत्तं
सयक्खंधो-१, अज्झयणं-५, उद्देसो-१
0 पंचमं अज्झयणं - लोगसारो0
० पढमो - उद्देसो . [१५४] आवंती केआवंति लोयंसि विप्परामसंति अट्ठाए अणट्ठाए वा, एएस् चेव विप्परामसंति गुरु से कामा तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे, नेव से अंतो नेव से दूरे।
[१५५] से पासति फुसियमिव कुसग्गे पणन्नं निवतितं वातेरितं, एवं बालस्स जीवियं ।
मंदस्स अविजाणओ, कूराणि कम्माई बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ, मोहेण गब्भं मरणाति एति, एत्थ मोहे पणो-पणो ।
[१५६] संसयं परिजाणतो संसारे परिण्णाते भवति, संसयं अपरिजाणतो संसारे अपरिण्णाते भवति ।
[१५७] जे छेए से सागारियं न सेवए, कट्ट एवं अविजाणओ बितिया मंदस्स बालया [पा० जे खलु विसए सेवइ सेवित्ता वा नालोएइ, परेण वा पुट्ठो निण्हवइ, अहवा तं परं सएण वा दोसेण पाविट्ठयरेण वा दोसेणं उवलिंपिज्जत्ति] लद्धा हरत्था पडिलेहाए, आगमित्ता आणविज्जा अनासेवणयाए - त्तिबेमि ।
___[१५८] पासह एगे रुवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे एत्थ फासे पुणो-पुणो आवंती केआवंती से आरंभजीवी, एएस चेव आरंभजीवी, एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं असरणे सरणं ति मन्नमाणे, इहमेगेसिं एगचरिया भवति- से बहुकोहे बहुमाने बहुमाए बहुलोए बहुरए बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे आसवसत्ती पलिउच्छन्ने उट्ठियवायं पवयमाणे मा मे केइ अदक्खू, अन्नाण-पमायदोसेणं सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ, अट्टा पया माणव ! कम्मकोविया, जे अनवरया अविज्जाए पलिमोक्खमाहु आवढू एव अनुपरियटॅति, त्तिबेमि ।
पंचमे अज्झयणे पढ़मो उद्देसो समत्तो
बीओ - उद्देसो . [१५९] आवंती केआवंती लोयंसि अनारंभजीविणो तेस्, एत्थोवरए तं झोसमाणे, अयं संधीति अदक्ख, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति मन्नेसी, एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते, उठ्ठिए नो पमायए, जाणित्त दुक्खं पत्तेयं सायं, पुढोछंदा इह मानवा, पुढो दुक्खं पवेदितं, से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो फासे विप्पणोण्णए ।
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
[16]
[१-आयारो]

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103