Book Title: Agam 01 Aayaro Padhamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[१७९] अणाणाए एगे सोवट्ठाणा आणाए एगे निरुवट्ठाणा एतं ते मा होउ एयं कुसलस्स दंसणं तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरक्कारे तरसण्णी तन्निवेसणे ।
[१८०] अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए, जे महं अबहिमणे पवाएणं पवायं जाणेज्जा सहसंमइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा ।
[१८१] निद्देसं नातिवट्टेज्जा मेहावी सपडिलेहिया सव्वतो सव्वप्पणा सम्मं समभिण्णाय, इहारामं परिणाय अल्लीणगत्तो आरामो परिव्वए,निट्ठियट्ठी वीरे आगमेण सदा परक्कमेज्जासि, त्तिबेमि
[१८२] उड्ढं सोता अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया ।
सयक्खंधो-१, अज्झयणं-५, उद्देसो-६
एते सोया वियक्खाया, जेहिं संगति पासहा ।।। [१८३] आवट्टं तूं उवेहाए एत्थ विरमेज्ज, वेयवी, विणएत्तु सोयं, निक्खम्म एस महं अकम्मा जाणति पासति पडिलेहाए नावकंखति इह आगतिं गतिं परिण्णाय ।
[१८४] अच्चेइ जाई-मरणस्स वट्टमग्गं विक्खाय-रए, सव्वे सरा नियटुंति तक्का जत्थ न विज्जइ, मई तत्थ न गाहिया, ओए अप्पतिढाणस्स खेयन्ने, से न दीहे न हस्से न वट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले, न किण्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुक्किल्ले, न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे, न तित्ते न कड्ए न कसाए न अंबिले न महरे, न कक्खडे न मउए न गरुए न लहए न सीए न उण्हे न णिद्धे न लुक्खे न काऊ न रुहे, न संगे न इत्थी न परिसे न अन्नहा, परिण्णे सण्णे उवमा न विज्जए, अरुवी सत्ता, अपयस्स पयं नत्थि ।
[१८५] से न सद्दे न रुवे न गंधे न रसे न फासे इच्चेव, त्तिबेमि |
• पंचमे अज्झयणे छट्ठो उद्देसो समत्तो - पंचमं अज्झयणं समत्तं . मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च चउत्थं अज्झयणं समत्तं
छद्रं अज्झयणं - धुयं
• पढमो - उद्देसो . [१८६] ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे, जस्सिमाओ जाइओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, आघाइ से नाणमनेलिसं, से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मत्तिमग्गं एवं एगे महावीरा विप्परक्कमंति, पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपण्णे,
से बेमि- से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहइ भंजगा इव सन्निवेसं, नो चयंति एवं एगे अनेगरुवेहिं कुलेहिं जाया रुवेहिं सत्ता कलणं थणंति, नियाणाओ ते न लभंति मोक्खं, अह पास तेहिं- कुलेहिं आयत्ताए जाया ।
[१८७] गंडी अद्वा कोढी, रायसी अवमारियं ।
काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ।। [१८८] उदरिं पास मूयं च, सूणिअं च गिलासिणिं ।
वेवई पीढसप्पिं च, सिलिवयं महर्मोहणिं ।। [१८९] सोलस एते रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो ।
अह णं फुसंति आयंका, फासा य असमंजसा ।।
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
[19]
[१-आयारो]

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