Book Title: Agam 01 Aayaro Padhamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
तम्मोत्तीए तप्परक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे जयं विहारी चित्तनिवाती पंथनिज्झाती, पलीबाहरे पासिय पाणे गच्छेज्जा ।
[१७१] से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणिवट्टमाणे संपलिज्ज माणे एगया गणसमियस्स रीयतो कायसंफासं समचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति इहलोग-वेयण वेज्जावडियं, जं आउट्टिकयं कम्मं तं परिणाए विवेगमेति, एवं से अप्पमाएणं विवेगं किट्टति वेयवी ।
[१७२] से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिते सया जए दटुं विप्पडिवेदेति अप्पाणं, किमेस जणो करिस्सति ? एस से परमारामो जाओ लोगंमि इत्थीओ, मुणिणा हु एतं पवेदितं स्यक्खंधो-१, अज्झयणं-५, उद्देसो-४
उब्बाहिज्जमाणे गामधम्महिं- अवि निब्बलासए अवि ओमोयरियं कज्जा अवि उड्ढं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाण्गामं दूइज्जेज्जा अवि आहारं वोच्छिंदेज्जा, अवि चए इत्थीस मण्णं, पव्वं दंडा पच्छा फासा पव्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेते कलहा संगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अनासेवणाए । त्तिबेमि
से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए नो कयकिरिए वइगत्ते अज्झप्पसंवड़े परिवज्जए सदा पावं, एतं मोणं समणवासिज्जासि। - त्तिबेमि |
पंचमे अज्झयणे चउत्थो उद्देसो समत्तो
पंचमो-उद्देसो . [१७३] से बेमि - तं जहा अवि हरए पडिपण्णे चिट्ठइ समंसि भोमे उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमज्झगए, से पास सव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया, सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिव्वयंति, त्तिबेमि |
[१७४] वितिगिच्छ समावन्नेणं अप्पाणेणं नो लभति समाधिं, सिया वेगे अनुगच्छंति, असिया वेगे अनगच्छंति, अनुगच्छमाणेहिं अननगच्छमाणे कहं न निव्विज्जे ? |
[१७५] तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ।
[१७६] सढिस्स णं समणण्णस्स संपव्वयमाणस्स:- समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ, समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ, असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ, असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ, समियंति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए, असमियंति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उवेहाए, उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति, उट्ठियस्स ठियस्स गतिं समन्पासह, एत्थवि बालभावे अप्पाणं नो उवदंसेज्जा |
[१७७] तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं परितावेयव्वं ति मन्नसि, तमंसि नाम सच्चेव जं परिघेतव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं उद्दवेयव्वं ति मन्नसि, अंजू चेय पडिबुद्ध-जीवी तम्हा न हंता न वि घायए अणुसंवेयणमप्पाणेणं जं हंतव्वं ति नाभिपत्थए ।
[१७८] जे आया से विण्णाया जे विण्णाया से आया, जेण विजाणति से आया, तं पडुच्च पडिसंखाए एस आयावादी समियाए- परियाए वियाहिते, तिबेमि ।
पंचमे अज्झयणे पंचमो उद्देसो समत्तो
• छहो - उद्धेसो.
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
[18]
[१-आयारो]

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103