Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah Author(s): Saubhagyamal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय गोत्रीय पल्लीवाल जाति के थे। आपने बजाजी का व्यवसाय चुना और अलीगढ़ बस गये। आपका विवाह अलीगढ़ निवासी चिन्तामणि बजाज की सुपुत्री के साथ हुआ। आपके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़े टीकारामजी थे। दौलतरामजी की दो प्रमुख रचनाएँ हैं - एक तो 'छहढाला' और दूसरी 'दौलत-विलास' । छहढाला ने तो आपको अमरत्व प्रदान किया ही; साथ ही आपने १५० के लगभग आध्यात्मिक पदों की रचना की, जो दौलत-विलास में संग्रहित हैं। सभी पद भावपूर्ण हैं और देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। 'छहढाला' ग्रन्थ का निर्माण वि. सं. १८९१ में हुआ। यह कृति अत्यन्त लोकप्रिय है तथा जन-जन के कंठ का हार बनी हुई है। इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण जैनधर्म का मर्म छिपा हुआ है। वि. सं. १९२३ में मार्ग शीर्ष कृष्णा अमावस्या को पण्डित दौलतरामजी का देहली में स्वर्गवास हो गया। कविवर भागचन्दजी :- कविवर भागचन्दजी १९वीं शताब्दी के विद्वानों में अग्रणी रहे हैं। आपका जन्म ईसागढ़ जिला-अशोकनगर (म.प्र.) में हुआ। कविवर भागचन्दजी का संस्कृत और हिन्दी भाषा पर समान अधिकार था। दोनों ही भाषा में आपने अपनी काव्य प्रतिभा से सभी को आश्चर्यचकित किया है। आपके जन्म और निधन की सही तिथियों से समाज अभी तक अनभिज्ञ हैं जो खोज का विषय है। अभी तक आपकी छह रचनाएँ जिनका (प्रणयन सम्वत् १९०७ से १९१३ के मध्य हुआ है।) प्राप्त हुई हैं जो निम्न हैं - (१) महावीराष्टक (२) उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला वचनिका (३) प्रमाण परीक्षा वचनिका (४) नेमिनाथ पुराण (५) अमितगति श्रावकाचार वचनिका भाषा (६) ज्ञानसूर्योदय (नाटक) आपके द्वारा रचित ८७ भजन अब तक प्रकाश में आए हैं। आप प्रतापगढ़ (मालवा), लश्कर (ग्वालियर) तथा जयपुर (राज.) में भी आजीविका के निमित्त आकर रहे हैं। भजनों को पढ़ने से आपकी काव्य प्रतिभा का दिग्दर्शन होता है। पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर के माध्यम से आध्यात्मिक भजन संग्रह का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। भारतीय हिन्दी साहित्य के इतिहास में जैन कवियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने जैन साहित्य का समुचित मूल्यांकन किया तथा इसे आदिकाल में प्रमुखता दी। डॉ. हरीष ने तो आदिकाल या वीरगाथाकाल का नामकरण ही 'जैनकाल' उचित माना है। डॉ. जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल ने जैन भक्ति काव्य धारा का प्रथम बार निरूपण किया है तथा इसे भक्तिकाल की चार काव्यधाराओं - संत काव्य, सूफी काव्य, कृष्ण भक्ति काव्य और राम भक्ति काव्य के पश्चात् पाँचवी काव्यधारा माना है। राहुल सांस्कृत्यायन जी ने अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी मानते हुए महाकवि स्वयंभू को हिन्दी का प्रथम श्रेष्ठ कवि स्वीकार किया है। १५वीं से १७वीं शताब्दी के काल में प्रचुर मात्रा में जैन साहित्य का निर्माण हुआ। काल विभाजन की दृष्टि से यह भक्तिकाल का समय निरूपित किया गया। इस शताब्दी के प्रमुख कवियों में पं. बनारसीदास, जिनदास एवं पं. भगवतीदास मुख्य रहे हैं। १८वीं शताब्दी के बाद का काल रीति काल की श्रेणी में आता है। इस काल के प्रमुख कवियों में कविवर द्यानतराय, भूधरदास, दौलतराम, बुधजनजी, पं. भागचन्दजी, बुलाकीदास एवं आनन्दघन जैसे कवि प्रमुख हैं। भक्तिकाल एवं रीतिकाल में प्रमुख जैन कवियों ने हिन्दी को अपना माध्यम बनाकर काव्य रचना की है। आध्यात्मिक भजन संग्रह में इन कवियों की रचनाओं को प्रकाशित किया गया है। सभी कवियों की रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं। विज्ञ पाठक इन रचनाओं को पढ़कर अध्यात्म रस का रसास्वादन करेंगे। wak Kalah Data Antanjidain Bhajan Book pants (४) VI VIIPage Navigation
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