Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Author(s): Arvind K Mehta
Publisher: Arvind K Mehta

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Page 9
________________ * त्रीजु (कषाय चूर्ण) स्नात्र 119 || कषायचूर्णयुक्त पाणीना कलशो भरी 'नमोऽर्हत' कही - प्लक्षाश्वत्थोदशोक- आम्रच्छल्यादि - कल्कसंमिश्रम् । बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरोषोम्बरकः पुनः । वटादिकं महाछल्ली, स्नापयामि जिनेश्वरम् “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पिप्पल्यादिमहाछल्लैः स्नापयामीति स्वाहा " * चोथुं (मंगलमृतिका) स्नात्र आठ जातिनी माटीनुं चूर्ण करी कलश भरवाना पाणीमां नाखी चार कलश भरवा 'नमोऽर्हत्' कही परोपकारकारी च, प्रवरः परमोज्वलः । भावना - भव्यसंयुक्तैर्मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ||१|| पर्वतसरो - नदी - संगमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः । उद्वर्त्य जैनबिम्बं स्नापयाम्यधिवासना - समये ॥२॥ 9 Jain Education International IIRII “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते नदीनगतीर्थादिमृच्चूर्णे : स्नापयामीति स्वाहा” 5 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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