Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Author(s): Arvind K Mehta
Publisher: Arvind K Mehta

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Page 25
________________ (अभिषेककाव्यादि) - १. सुवर्णजल - 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं बिंबोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपूतम् ॥१॥ ___ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। २. पंचरत्न जल - ‘नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्य:' नानारत्नौघयुतं, सुगन्धपुष्पाधिवासितं नीरम्। पतताद् विचित्रवर्णं, मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ||२|| ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ३. कषायछाल जल - 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' प्लक्षाश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिक्ल्कसंमिश्रम्। बिंबे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ४. मंगलमृत्तिका जल- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' पर्वतसरोनदीसंग-मादिमृद्भिश्च मंत्रपूताभिः । उद्वत्ये जैनबिबं स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥ ____ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ५. पंचगव्यदर्भोदक - 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' जिनबिम्बोपरि निपतद्, घृतदधिदुग्धादिद्रव्यपरिपूतम्। दर्भोदकसंमिश्र, पंचगवं हरतु दुरितानि ॥५॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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