Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Author(s): Arvind K Mehta
Publisher: Arvind K Mehta
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इक्षुरसोदादुपह्त-इक्षुरस: सुरखरैस्त्वदभिषेके । भवदवसदवथु भविना, जनयतु नित्यं सदानन्दम् ||४||
सवौषधिषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेके । तत्सवौंषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्ध्यै ॥५॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । पंचामृतनो अभिषेक कर्या पछी कर्पूरना चूर्ण वडे घसी प्रतिमानी स्निग्धता दुर करवी, चीकाश वधारे होय तो साधारण उष्ण जलनो उपयोग करवो, पछी ८ कलशिया शुद्धजले भरी अभिमंत्रित करीने नीचेनुं काव्य बोलतां
आठ अभिषेक करवा - चक्रे देवेंद्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-र्नृत्यन्तीभिः
सुरीभिललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपर: स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥
आ काव्य प्रत्येक अभिषेके उच्च स्वरे बोलवू, पछी अंग लूंछी चन्दनादि विलेपन करवू । प्रतिमा आगे पान, सोपारी, फलादि ढोक, ते पछी
स्नात्रकारोए आरती, मंगल दीवो करवो अने प्रतिष्ठाचार्ये संघ सहित मूलनायकनां चैत्यवन्दन-स्तृतिथी देववन्दन करवू, मूलनायक, चैत्यवंदन
स्तुतिओ याद न होय तो नीचेनुं चैत्यवंदन कहेवू । जय श्रीजिन! कल्याण-वल्लीकन्दलनाम्बुद! । मुनीन्द्रह्दयाम्भोज- विलासवरषट्पद ॥१॥
तव नाथ! पदद्वन्द्व-सपर्यारसिका जना:। सर्वसंपत्सुखश्रीभि- विलसन्ति सदोदया : ॥२॥
नृलौके चक्रिताद्या याः, स्वलॊके चेन्द्रतादय : । शिवेऽनन्तसुखाद्यास्ता-स्तव भक्तिवशा: श्रिय : ||३||
सर्वश्रेय: श्रियां मलं, ददध्धर्म समग्रवित् । योगक्षेमकरो नाथ-स्त्मेव जगतामसि ||४||
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