Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Author(s): Arvind K Mehta
Publisher: Arvind K Mehta

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ त्यारबाद जुनी ध्वजा उतारी दंड तेमज कळशनो अभिषेक करवो. पक्षाल पूजा करी अंग लंछणा करी केसरना छांटणा करवाः फूल चढावी धूप-दीप करी खामणा उपर चोखानो साथीओ करी फूलनैवेद्य-रुपानाणुं मुकवू, पछी ध्वजादंडना ओक पर्व पर मीढळमरडाशींग-डाभनुं घास तेमज नागरवेलनां पांच पान बांधवा. त्यारबाद ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रियंताम् प्रियंताम् बोलवा पूर्वक ९ नवकार गणी ध्वजा चढाववी, पछी ध्वजा उपर केशरना छांटणा करवा. कळश अने दंडने फुलहार चढाववा, अबिल-गुलालकंकुदशे दिशामां उडाडवा, नीचे उतरी मोटी (बृहत्) शांति बोलवी. पूर्व दिशा सन्मुख सौओ ऊभा रही हाथ जोडी नीचेना श्लोको बोलवा : जिनेन्द्र भक्त्या जिन भक्तिभाजं, येषां च पूजा बलिपुष्पधूपैः । ग्रहा गता ये प्रतिकुलतां च, ते सानुकूला वरदा भवंतु ॥ ...१ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं । पूजाविधिं न जानामि, प्रसिद परमेश्वर! || ...२ आज्ञाहिनं क्रियाहिनं, मंत्रहिनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं कृपया देवाः, क्षमन्तु परमेश्वरा : ॥ ...३ खमासमण आपी अविधि आशातजा मिच्छामि दुक्कडं कहेवू. त्यारवर नीचे आवी बाकीजी पुजाओ भणाववी. पछी आरती-मंगळ दीवो-शांतीकळश करी चैत्यवंदन कर. पछी खमासमण आपी अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कही सौओ छुटा पडq. (उस दिन साधर्मिक वात्सल्य करना न हो सके तो संघ पूजा, प्रभावना आदि करना) 34 . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44