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श्री अटार अभिषेक Had श्री बजारीपन विधि
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*प्रकाशक* अरविंद के महेता, इचलकरंजी.
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अनंतलब्धिनिधान श्री गुरु गौतम स्वामी
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|| श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नम :॥
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___ एवम् ध्वजारोहण विधि
* संपादक * अरविंद के महेता गुजरीपेठ, इचलकरंजी. B: (२३०) २४२२३२३
* द्रव्य सहाय्यक * डॉ. सी. आर. शाह, डॉ. सौ. आशा सी. शाह M.B.B.S
M.B.B.S इचलकरंजी, जि. कोल्हापूर (महाराष्ट्र)
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संवत २०६१
अषाढसुदी ९ ता. १६-७-२००५
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प्रथम आवृत्ती
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पचना
अनुक्रमणिका
पू. उपाध्याय श्री सकलचन्द्रजी गणि संकलित
श्री अढार अभिषेक विधि १) अभिषेक प्रारंभ २) चन्द्र - सूर्य दर्शन ३) श्री अढार अभिषेक मां जोइता
सामान नी यादी ४) कल्याण कलिका संकलित
श्री अढार अभिषेक विधि
५) श्री जिन मंदिरनी वर्षगांठ प्रसंगे ध्वजारोपण विधि
31 ६) अढार अभिषेक अने ध्वजा रोपण विधि ।
प्रसंगे बोलवा लायक गीतो 35
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॥ जैनं जयति शासनम् ॥ पू. उपाध्याय श्री सकलचन्द्रजी गणि संकलित, [ श्री अढार अभिषेक विधि
* पंच परमेष्ठि वन्दना * अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिता : सिद्धाश्च, सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा: पूज्याउपाध्यायका: । श्री सिद्धान्तसुपाठ का मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका: पञ्चैतेपरमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ||१||(२७ डंका) मला नमो अरिहंताणं, ना नमो सिद्धाणं, नया नमो आयरियाणं, मी नमो उवज्झायाणं, नशा नमो लोए सव्वसाहूणं || (त्रण वार बोलवू) (२७ डंका) ।
||१||
[* वज्र पञ्जर स्तोत्र * परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम्
नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् | ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् '४ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षाऽतिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोदृढम्
||२||
||३||
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नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंच नमुक्कारो शिला वज्रमयी तले
||४|| सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः। मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गरखातिका
||५|| स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढंम हवइ मङ्गलम् | . वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे
||६|| महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभि :
||७|| यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदै: सदा। , तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ||८||
(२७ डंका) पछी अनुक्रमे नीचे प्रमाणेना मंत्रोथी पवित्र १ जलकलश, २ चन्दन, ३ पुष्प अने ४ स्नात्रपुटिका (धूप) नुं अभिमंत्रण कवू : - १. जल मंत्र :- ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते
__ अपो जलं गृहाण गृहाण स्वाहा । २. चंदन मंत्र :- ॐ नमो यःसर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु
गन्धान् गृहाण गृहाण स्वाहा । ३. पुष्प मंत्र :- ॐ नमो यःसर्वतो मेदिनी पुष्पवती पुष्पं
गृहाण गृहाण स्वाहा ।। ४. धूप मंत्र :- ॐ नमो यःसर्वतो बलिं दह दह महाभूते
तेजोधिपते धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
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पुष्पांजलि लइ नीचेनो श्लोक बोलवो नानासुगन्धि-पुष्पौघ-रजिता चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलि-र्बिम्बे ॥ म हाँ ही हूँ पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा । ए मंत्र बोली पुष्पांजलि थी पूजन करतूं ।
अभिषेक प्रारंभ
* पहेलु (हिरण्योदक) स्नात्र * सुवर्णना चूर्णथी (सोनाना वरख मिश्रित न्हवणथी) चार कलशो भरी 'नमोऽर्हत्' कही नीचेनो श्लोक बोलवो - पवित्रतीर्थनीरेण, गन्धपुष्पादिसंयुतैः । पतज्जलं बिम्बोपरि, हिरण्यं मन्त्रपूतनम् ||१|| सुवर्णद्रव्यसम्पूर्णं, चूर्णं कुर्यात्सुनिर्मलम् । ततः प्रक्षालनं चाभिः पुष्पचन्दनसंयुतै : ||२|| “ ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते गन्धपुष्पाक्षतधूपसम्पूर्णै: स्वर्णेन स्नापयामीति स्वाहा” ए मंत्रोच्चारपूर्वक स्नात्र करी बिंबने तिलक, पुष्प, वास, धूप विगेरेथी • पूजन करवू । ए रीते दरेक स्नात्र वरवते करता रहेवू ।।
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| * बीजु (पंच रत्न चूर्ण) स्नात्र * |
१. मोती, २. सोनु, ३. रु', ४. प्रवाल अने, ५ तांबु ‘ए पंचरत्ननु चूर्ण करी उपरनी जेमज कुंडिमां वास चंदन पुष्प वाला पाणीमां नाखी चार कलशो भर 'नमोऽर्हत्' नो पाठ कही नीचेना श्लोको अने मंत्र बोली न्हवण करवु । यन्नामस्मरणादपि श्रुतवशाद प्यक्षरोच्चारतो, यत्पुर्ण प्रतिमा प्रमाण करणात्संदर्शनात्स्पर्शनात् । भव्यानां भवपङ्क-हानिरसकृत्स्यात्तस्य किंसत्पयः, स्नात्रेणापि तथा स्वभक्तिवशतो रत्नोत्सवे तत्पुनः ||१|| नानारत्नौघसंयुतं, सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रचुर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥२|| “ॐ ह्रां ह्रीं परम अर्हते मुक्तास्वर्णरौप्य - प्रवालत्र्यम्बलपञ्चरत्नैः स्नापयामीति स्वाहा” आम दरेक स्नात्र काव्यो अने मंत्र बोलवापूर्वक ते ते स्नात्र करी तलक, पुष्प, वास, धूप विगेरेथी पूजन करवू ।
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* त्रीजु (कषाय चूर्ण) स्नात्र
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कषायचूर्णयुक्त पाणीना कलशो भरी 'नमोऽर्हत' कही - प्लक्षाश्वत्थोदशोक- आम्रच्छल्यादि - कल्कसंमिश्रम् । बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरोषोम्बरकः पुनः । वटादिकं महाछल्ली, स्नापयामि जिनेश्वरम् “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पिप्पल्यादिमहाछल्लैः स्नापयामीति स्वाहा "
* चोथुं (मंगलमृतिका) स्नात्र
आठ जातिनी माटीनुं चूर्ण करी कलश भरवाना पाणीमां नाखी चार कलश भरवा 'नमोऽर्हत्' कही
परोपकारकारी च, प्रवरः परमोज्वलः ।
भावना - भव्यसंयुक्तैर्मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ||१|| पर्वतसरो - नदी - संगमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः ।
उद्वर्त्य जैनबिम्बं स्नापयाम्यधिवासना - समये ॥२॥
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“ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते नदीनगतीर्थादिमृच्चूर्णे :
स्नापयामीति स्वाहा”
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* पांचमु (सदौषधि) स्नात्र
औषधिओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखयुं नमोऽर्हत् कहीसहदेवी शतमूली, शतावरी शंख पुष्पिका । कुमारी लक्ष्मणा चैव, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥१॥ सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्त्तितस्य बिम्बस्य | गन्धतन्मिश्रं बिम्बो - परिपतज्जलं हरतु दुरितानि ॥२॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम पर्हते सहदेव्यादिसदौषधिना सह स्नापयामीति स्वाहा "
* छठु (प्रथमाष्टकवर्ग) स्नात्र
उपलोट वि. आठ वस्तुओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवं 'नमोऽर्हत्' कही -
सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥ १ ॥ उपलोट - व्रचालोद्र - हीरवर्णी देवदारवः | ज्येष्ठीमधु - ऋद्धिदूर्वा, स्नापयमि जिनेश्वरम् ॥२॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते उपलोटद्यष्टकवर्गेण स्नापयामीति स्वाहा”
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* सातमु (द्वितीयाष्टकवर्ग) स्नात् * पतंजारी वि. आठ वस्तुओनुं चूर्ण करी कलश भरवाना पाणीमां नाखवु 'नमोऽर्हत्' कही - नानाकुष्ठाद्योषधि-सन्मिश्रे तद्युतं पतन्नीरम् । बिम्बे कृतसन्मिश्र, कर्मोघं हन्तु भव्यानाम् ॥१॥ पतञ्जारी विदारी च, कर्नूर: कच्चुरी नखः । कङ्कोडी क्षीरकन्दश्च, मुसलैः स्नापयाम्यहम् ॥२॥ "ॐ हाँ ही परम अर्हते पतजार्यष्टकवर्गेण स्नापयामीति स्वाहा”
(* आठमु (सर्वौषधि) स्नात् *) प्रियंगु वि.३३ औषधिओनुं चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवु. 'नमोऽर्हत्' कहीं - प्रियगुवच्छ-कंकेली, रसालादि-तरुद्भवैः। पल्लवैः पत्रभल्लात, एलची-तजसत्फलैः ॥१॥ विष्णुकान्ता हिमवाल-लवङ्गादिभि-रष्टभिः ।
मूलाष्टकस्तथाद्रव्यैः, सदौषधि-विमिश्रितैः ॥२॥ • सुगन्धद्रव्य-सन्दोहा,-मोदमत्तालि-संकुलैः। विदधेऽर्हन्महास्नात्रं, शुभ-सन्तति सूचकम् ||३||
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मेदाद्यौषधि-भेदोऽपरोऽष्टकवर्ग-सुमन्त्रपरिपूतः । निपतबिम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥४॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पियङ्गवादिभिः सवौषधैः स्नापयामीति स्वाहा”
त्यारपछी गुरु उभा थइ - परमेष्ठिमुद्रा, गरुडमुद्रा अने मुक्ताशुक्तिमुद्रा ए त्रण मुद्राथी जिनेश्वरनुं आह्वान करे । आह्वान करवानो मंत्र -
"30%
नमोऽर्हत्परमेश्वराय
त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवेन्द्रमहिताय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।”
* नवमु (पंचगव्य अथवा पंचामृत) स्नात्र पंचामृतनो कलश भरी 'नमोऽर्हत्' कही -
जिनबिम्बोपरि निपतत्, घृतदधि- दुग्धदि-द्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदक - सन्मिश्रं, पंचगव्यं हरतु दुरितानि
119 ||
वरपुष्प - चन्दनैश्च, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधिदुग्ध - घृतमिश्रः, स्नापयामि जिनेश्वरम् “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पञ्चामृतेन स्नापयामीति
॥२॥
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* दशमु (सुगंधौषधि) स्नात्र * अंबर वि. सुगंधी वस्तुओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवू. 'नमोऽर्हत्' कही - सर्वविघ्न-प्रशमनं, जिनस्नात्र-समुद्भवम् । वन्दे सम्पूर्णपुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेजिनम् ॥१॥ सकलौषधि-संयुक्त्या, सुगन्ध्या घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैन बिम्बं मन्त्रित तन्नीरनिवेहन ॥२॥ "ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते अम्बरउशीरादि सुगन्धद्रव्यै : स्नापयामीति स्वाहा”
| * अगीयारमुं (पुष्प) स्नात्र * सेवंत्रा चमेली मोगरा गुलाब जुई ए जातनां फुलो कलश भरवाना पाणीमां नाखवां 'नमोऽर्हत्' कही - अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमन: किजल्कराजितं तोयम्। तीर्थजलादि-सुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ||१|| सुगन्ध-परिपुष्पौधे-स्तीर्थोदकेन संयुतै : । भावना -भव्यसन्दोहै:, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ • "ॐ हाँ ह्रीं. परम अर्हते पुष्पौघैः स्नापयामीति स्वाहा” .
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|* बारमु (गन्ध) स्नात्र * १. केशर, २ कपुर, ३ कस्तुरी, ४ अगर, ५ चन्दन ए घसी जलमां नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - गन्धाङ्गस्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभि : । स्नपयामि जैनबिम्बं कौघच्छित्तये शिवदम् ॥9॥ कुंकुंमादिकप्र्पूरथ्य, मृगमदेन संयुत :। अगरश्चन्दनमित्रैः, स्नाययामि जिनेश्वरम् ||२|| "ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते गन्धेन स्नापयामीति स्वाहा
| * तेरk (वास) स्नात्र * १. चंदन, २ केशर अने ३. कपूरनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवू 'नमोऽर्हत्' कही - हृद्यै-राह्लादकरैः स्पृहणीयै-मन्त्रसंस्कृतै-जैनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-वसैिरधिवासितं बिम्बम् ॥१॥ शिशिरक र-क राभै - श्यन्दन श्यन्द्र मिश्र बहुल परिमलौघैः प्रीणितं प्राणगन्धै : । विनमदमर-मौलि: प्रोक्त-रत्नांशु-जालै :, जिनपतिवरश्रृङ्गेस्नापयेद्भावभक्त्या
॥२॥ "ॐ हाँ ही परम अर्हते सुगन्धवासचूर्णैः स्नापयामीति स्वाहा"
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| * चौदमुं (चन्दनदुग्ध) स्नात्र * चंदनने दुधना कलशमां नाखी ‘नमोऽर्हत्' कही - शीतलसरस-सुगन्धि-मनोमतश्चन्दनद्रु मसमुत्थ: । चन्दनकल्क: सजलो, मन्त्रयुत: पततु जिंनबिम्बे ||१|| क्षीरेणाक्षत-मन्मथस्य च महत् श्रीसिद्धि-कान्तापते:, सर्वज्ञस्य शरच्छशाङ्क-विशद-ज्योत्स्ना-रसस्पर्द्धिना | कुर्म: सर्वसमृद्धयत्रिजग दानन्दप्रदं भूयसा, स्नानं सद्विकसत्कुशेशय-पदन्यासस्य शस्याकृते:॥२॥ “ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते क्षीरचन्दनाभ्यां स्नापयामीति स्वाहा"
* पंदरमु (केशर साकर) स्नात्र * केशर अने साकरने जलमां नाखी कलश भरी ‘नमोऽर्हत्' कही - काश्मीरज-सुविलिप्तं, बिम्बंतच्छिरसि धारयाभिनवम्। सन्मन्त्र-युक्तयाशुचि-जैनं स्नपयामि सिध्ध्यर्थम् ॥१॥ वाचः स्फार-विचार-सारमपरैः स्याद्वाद-शुद्धामृतस्यन्दिन्या परमार्हतः कथमपि प्राप्यं न सिद्धात्मनः । मुक्तिश्री-रसिकस्य यस्य सुर-सस्नात्रेण किं तस्य च, श्रीपादद्वय-भक्ति-भावितधिया कुर्मः प्रभोस्तत्पुनः ||२|| "ॐ हाँ ही परम अर्हते काश्मीरजशर्कराभ्यां स्नाययामीति स्वाहा”
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(चन्द्र-सूर्य-दर्शन करावाय, न होय तो बिम्बों ने आरीसो देखाडवो) १. चन्द्र दर्शन :
ॐ अर्ह चन्द्रोऽसि निशाकरोऽसि सुधाकरोऽसि चन्द्रमाअसि ग्रहपतिरसि कौमुदीपतिरसि मदनमित्रमसि जगज्जीवनमसि जैवातकोऽसि क्षीरसागरोद्भवोऽसि श्वेतवाहनोऽसि राजासि राजराजोऽसि औषधिगभौऽसि वन्द्योऽसि पूज्योऽसि नमस्ते भगवन् !
अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु वृद्धिं कुरु कुरु तुष्टिं कुरु कुरु पृष्टि कुरु कुरु जयं कुरु कुरु विजयं कुरुकुरु भद्रं कुरु कुरु प्रमोदं कुरु कुरु श्री शशाङ्काय नमः ।
ॐ अर्ह सर्वौषधिमिश्रमरीचिजालः, सर्वापदां संहरणप्रवीणः । करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशे, युष्माकमिन्दुः सततं प्रसन्न :
॥१॥
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२. सूर्य दर्शन :
ॐ अर्हं सूर्योऽसि दिनकरोऽसि सहस्त्रकिरणोऽसि विभावसुरसि तमोपहोऽसि प्रियंकरोऽसि शिवंकरोऽसि जगच्चक्षुरसि सुरवेष्टितोऽसि विततविमानोऽसि तेजोमयोऽसि अरुणसारथिरसि मार्तण्डोऽसि व्दादशात्मासि चक्रबान्धवोऽसि नमस्ते भगवन् प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं प्रमोदं कुरु कुरु सन्निहितो भव भव श्री सुर्याय नमः । ॐ अर्ह सर्वसुरासुरवन्द्यः, कारयिता सर्वधर्मकार्याणाम् । भूयात् त्रिजगच्चक्षु-र्मङ्गलदस्त सपुत्राया :
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* सोलमुं (तीर्थोदक) स्नात्र
गंगा आदि एकसो आठ तीर्थोनां पाणी नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - जलधि नदी द्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्र संस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ||१ || नाकनदी - नदविहितैः, पयोभि-रम्भोज - रेणुभिः सुभगैः । श्रीमज्जिनेन्द्रपादौ समर्चर्यत्सर्व- शान्त्यर्थम ॥२॥
"
“ॐ हाँ ह्रीँ हूँ हैँ ह्रौं ह्रः परम अर्हते तीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा”
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* सत्तरमुं (कपुर) स्नात्र * कपूर कलशमां नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - शशिकर तुषारधवला, उज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा। कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु जिनबिम्बे ॥१॥ कनक - क रक नाली- मुक्त धाराभिरद्भिः, मिलित निखिलगन्धैः केलि - कर्पूरभाभिः । अखिल - भुवन - शान्तिं शान्तिधारां जिनेन्द्र-क्रम सरसिज-पीठे स्नापयेद्वीतरागान्
॥२॥ "ॐ हाँ ही हूँ है * हौ * हः परम अर्हते कपूरण स्नापयामीति स्वाहा”
* अढारमुं (केशर-चंदन-पुष्प) स्नात्र * केशर, चंदन अने फुल पाणीमां नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - सौरभ्यं घनसार पङ्कज-रजो-नि:प्रीणितैः पुष्करैः, शीतैः शीतकरावदात-रुचिभि: काश्मीर-सन्मिश्रितैः । श्रीखण्ड-प्रसवाचलैश्य मधुरैः नित्यं लभेष्टैर्वरैः, सौरभ्योदक-संख्य सार्वचरण द्वन्द्वं यजे भावत: ॥१॥ “ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं हौं हः परम अर्हते केशरचन्दनाभ्यां स्नापयामीति स्वाहा”
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ए मंत्र बोली स्नात्र करी, तिलक आदिकथी पूजन करी, पुष्पांजली लइ नीचेनो श्लोक बोलवो - नानासुगन्धि-पुष्पौघ-रजिता चञ्जरीक कृतनादा | धूपामोद विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलि बिम्बे ॥१॥ पछी “ॐ हाँ ह्रीं हूँ पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा”
ए मंत्र बोली पुष्पांजलिथी पूजन करवू । नीचे नो श्लोक पांच वार बोली शुध्द जल थी पांच अभिषेक करवां । चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे, योऽभिषेकः पयोभि नृत्यन्तीभिः सुरीभि ललितपदनमं, तूर्यनादैः सुदीप्तः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं, मुन्त्रपूतैः सुकुम्भ, बिम्बं जैनं प्रतिष्ठा, (सुपूजा) विधिवचनपर: स्नापयाम्यत्र काले
||१|| पछी अष्टप्रकारी पूजा करी, चैत्यवंदन, आरती, मंगलदीवो, शांतिकलश करवो, छेल्ले अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं करवू ।
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श्री अढार अभिषेक मां जोइता सामान नी यादी औषधि
पाटलुछणा .. अढार अभिषेक नो पुडो
नेपकीन ६ नंग केशर ५ ग्राम
लीली साटीन १/२ मीटर बरास २० ग्राम
करियाणु वासक्षेप २०० ग्राम
मोली दडो १ कस्तुरी १ मी.ग्राम
चोखा ४ कीलो सुगंधी अगरबत्ती २ पुडा
बदाम २५० ग्राम दशांग धूप १०० ग्राम ।
सोपारी २५० ग्राम चांदी वरक ३ थोकडी
साकर ५०० ग्राम सोनेरी वरक १ पान
घी १ कीलो सोनेरी बादलो १० ग्राम
श्रीफल २१ नग तीर्थजल शीशी १
रोकडा रुपया ३१ कंद्रुप धूप १०० ग्राम
पावली ३१ अत्तर शिशी २
कुंकू २५ ग्राम गुलाब जल १ बोटल
चंदन तेल १० ग्राम कपूर २० ग्राम पंचरत्न पोटली २
इलायची ५० ग्राम लवंग ५० ग्राम
पीठी साखर १०० ग्राम कापड मलमल अंगलुछणा माटे
रुई बंडल १ (जेटला भगवान होय तेना
सोना रुपानां फूल १० ग्राम त्रण त्रण प्रमाणे)
सुकोमेवो ५०० ग्राम 16
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फूल गुलाब १०० नंग लाल जासुद मोगरो पचरंगी फुल हार मोटो १ (सिंहासन माटे) हार नाना १० आसोपालव तोरण
फल लीलो नारेल १ नंग सफरजन ६ नंग दाडम ६ नंग मोसंबी ६ नंग संतरा ६ नंग चीकु ६ नंग दांडीवाला पान ३१ नंग
मिठाई पेंडा १ कीलो बुंदीलाडु १ कीलो मोहनथाल १ कीलो बरफी १ कीलो घेवर ३ नंग
स्नात्र पूजानो सामान सिंहासन, आरती, मंगलदिवो चामर, कलश, कुंडी, पंखो, दर्पण, पुजाथाली, पुजावाटकी, मोटीथाली, थालीडंको,सूर्य चंद्रनां स्वप्नां
विगेरे
पक्षाल माटे दुध २ लीटर दही २५० ग्राम शेलडी रस १ ग्लास
विशेष अर्घ पात्र - २ सरसवनी पोटली - १ मीढल ना कंकण बलिबाकुला भींजवेला धोला अथवा पीला सरसव
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|| जैनं जयति शासनम् ॥ . श्री कल्याण कलिका आधारित श्री अढार अभिषेक विधि
जल, गन्ध, पुष्प आदि अभिषेकोपयोगी पदार्थो स्व स्व मंत्रोए । अभिमंत्रीत करीने सर्व अभिषेकोमा वापरवां, प्रत्येक स्नानने अन्ते जिनने मस्तके पुष्पारोपण करवू, ललाटे तिलक करवो अने प्रत्येक अभिषेकना अन्तराले धूप उखेववो ।
अभिषेकोआ प्रमाणे करवा-सुवर्णजलनो १ घञ्चरत्न जलनो, २ कषाय छालना जलनो, ३ तीर्थमृत्तिकाना जलनो, ४ पञ्चगव्यकुशोदकनो, ५ सदौषधि जलनो, ६ मूलिकाचूर्णना जलनो, ७ प्रथमाष्टकवर्ग जलनो, ८ अने दितीयष्टकवर्ग जलनो, ९ ए नव अभिषेको करीने जिनाह्वान करवू अने दश दिक्पालोनुं आह्वान करीने ते ते दिशामां पुष्पांजली क्षेपवी, पछी सौंषधिनो अभिषेक १० मो करवो।
ए पछी गुरुए पोताना जमणा हाथथी नव्य जिनबिंबने स्पर्शी मंत्रन्यास करवो अने दृष्टिदोष निवारणार्थ बिंबना हाथे सरसवोनी पोटली बांधीने ललाटमां तिलक करी विज्ञप्ति करवी, जिन आगे सुवर्णपात्रमां अर्घ मूकवो, तथा दिशापालोने पण ते ते दिशामा अर्घ आपवो।
ए पछी पुष्पजलनो ११ मो अभिषेक करवो, गन्धजलनो १२ मो, वासजलनो १३ मो, चन्दनजलनो १४ मो, अने केसर जलनो १५ मो अभिषेक करवो, तीर्थजलनो १६ मो, कर्पूरजलनो १७ मो, अने पुष्पाञ्जलि क्षेपनो १८ मो अभिषेक करवो ।
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घी, दुध, दही, शेरडीरस तथा सर्वोषधि, आ पांच अमृत गणाय छे, आ पंचामृतनो ते " पाञ्चामृत" नामनो एक अभिषेक करवो, सर्व स्नानो थई पछी वास कर्पूर-चूर्णादिक घसीने प्रतिमाना अंग उपरथी स्निग्धता (चिकास) दूर करवी अने छ निर्मल जलना कलशे करीने “ चक्रे देवेन्द्रराजै" आ काव्य उच्च स्वरे बोलतां आठ अभिषेको करवा |
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अभिषेको थई रह्या पछी अंगलूंछणां करी बिंबने चंदनादिनुं विलेपन करवु, पुष्प चढाववां अने मंगलदीपक तथा आरती आदि करवां ।
प्रथम स्नात्रकार श्रावके जिनमुद्राए उभा रही जल कलशादिकनी अधिवासना करी -
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ आगच्छ, जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।
आ मंत्रे करी जलभृत कलशांदिकनुं अभिमंत्रण करवुं
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु विपृथु गन्धान् गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।
आ मंत्रथी गंध, वास, अष्टकवर्ग, सदौषधि, सर्वोषधि, केसर, कर्पूरादिनुं अभिमंत्रण करवुं ।
ॐ नमो यः सर्वतो मेदिनी! पुष्पवति! पुष्पं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।
आ मंत्रथी प्रत्येक स्नात्रमां चढाववानां पुष्पो अभिमंत्रवां ।
ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह दह, महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।
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आ मंत्रथी प्रत्येक अभिषेकमां करातो धूप अभिमंत्रवो, पछी अभिषेक वखते तेमांथी कलशों भरवा, थोडो थोडो वास, घसेल चन्दन, पुष्पो, प्रत्येक अभिषेकना जलमां नाखवा, प्रत्येक स्नात्रने अन्ते प्रतिमाना मस्तके पुष्प चढाव, ललाटमां तिलक करवू, वासक्षेप करवो अने धूप उखेववो । ..
- अभिषेकना प्रारंभमां श्रावकोए प्रतिमाना जमणा हाथनी आंगलीमां पंचरत्ननी-गांठडी बांधवी, ते पछी तैयार करेल स्नात्रनी पुडियोमांथी अनुक्रमे एक एक पुडी मंत्रमुद्राधिवासित पवित्र तीर्थजलमां नाखी ते जल वडे. चार चार कलशो भरीने परमेष्ठीमंगलपूर्वक वाजिंत्रोना शब्दो साथे स्नात्रकारोए १८ स्नात्रो करवां । "नमोऽर्हत्.” कही मंत्रपाठ कहे त्यां सुधी वाजिंत्रो बंध रखाववां, दरेक अभिषेकना पाठy काव्य बोलतां पहेला "नमोऽर्हत्.” बोलवू अने काव्य बोल्या पछी “ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा” आ मंत्र बोलीने प्रतिमा उपर अभिषेक करवो।
प्रत्येक अभिषेकने अंते श्वेत अथवा पीत सरसमिश्रीत चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो। तिलक करतां नीचे नुं काव्य बोलवू । “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन्। प्राप्तलयो मलयोद्भव-सिद्धार्थगोरोचनातिलक:” ॥१॥ प्रत्येक अभिषेकने अन्ते तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq । "किं लोकनाथ ! भवतो ऽतिमहर्घतैषा, किंवा स्वकार्यकुशलत्वमिद जनानाम् । किं वांऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्यि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन" ॥१॥ प्रत्येक अभिषेकना अंते नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो
मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम्। तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥
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(अभिषेककाव्यादि)
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१. सुवर्णजल - 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं बिंबोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपूतम् ॥१॥
___ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। २. पंचरत्न जल - ‘नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्य:'
नानारत्नौघयुतं, सुगन्धपुष्पाधिवासितं नीरम्। पतताद् विचित्रवर्णं, मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ||२||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ३. कषायछाल जल - 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' प्लक्षाश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिक्ल्कसंमिश्रम्। बिंबे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ४. मंगलमृत्तिका जल- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
पर्वतसरोनदीसंग-मादिमृद्भिश्च मंत्रपूताभिः । उद्वत्ये जैनबिबं स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥
____ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा। ५. पंचगव्यदर्भोदक - 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' जिनबिम्बोपरि निपतद्, घृतदधिदुग्धादिद्रव्यपरिपूतम्। दर्भोदकसंमिश्र, पंचगवं हरतु दुरितानि ॥५॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा ।
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६. सदौषधिचूर्णजल - 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य । संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ||६|| ..
___ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । ७. मूलिकाचूर्ण जल - ‘नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' ' सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यनि निपतन्ती ॥७॥
___ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । ८. प्रथमाष्टकवर्ग जल-'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
नानाकुष्टाधौषधि-संमृष्टे तद्युतं पतन्नीरम् । बिंबे कृतसन्मन्त्रं, कमौघं हरतु भव्यानाम् ॥८॥
__ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । : ९. द्वितीयाष्टकवर्ग जल-'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्य:'
मेदाद्यौषधिभेदो-ऽपरोऽष्टवर्ग: सुमंत्रपरिपूतः। जिनबिम्बोपरि निघतत्, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ||९||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा ।
जिनाह्वानादि आन्तर विधि - नव अभिषेक थया पछी प्रतिष्ठाचार्ये उभा थई गरुड, मुक्ताशुक्ति अने परमेष्ठी नामक त्रण मुद्राओ पैकीनी कोई पण एक मुद्रा करीने प्रतिष्ठाप्य देवनुं आ प्रमाणे आह्वान करQ -
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ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिक् कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ, स्वाहा । जिनाह्वान पछी विधिकारे नाचे प्रमाणे दिक्पालोनुं आह्वा करवुं -
१. ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ
आगच्छ स्वाहा ।
२. ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ
आगच्छ स्वाहा ।
३. ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादश अभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
४. ॐ निरृतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ
आगच्छ स्वाहा ।
५. ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
६. ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह 'जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ
आगच्छ स्वाहा ।
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७. ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादश अभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
८. ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इंह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
९. ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
१०. ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ ( अष्टादशअभिषेकविधौ ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।
ए मंत्रोथी प्रत्येक दिक्पालनुं आह्वान तेनी. दिशा संमुख उभा रहीने कर 'स्वाहा' पछी तेनी तरफ वासक्षेप करवो अने श्रावके पुष्पाजंलि फेंकवी
जो अंजन शलाकांनु विधान होय तो 'प्रष्ठाविधौ बोल' । पण केवल बिंबस्थापनानो ज प्रसंग होय तो इह जिनेन्द्र स्थापने अथवा 'जिनेन्द्रस्थापनाविधौ' आमांथी कोई एक पाठ बोलवो । १०. सर्वोषधि जल - 'नमोऽर्हत्सिध्दाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः । ' सकलौषधिसंयुत्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्ब, मंत्रिततन्नीरनिवहेन ||१०|| ॐ नमोजिनाय हाँ अर्हते स्वाहा ।
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मंत्रन्यासादि अवान्तर विधि
दशमो अभिषेक थया पछी प्रतिष्ठाचार्ये दृष्टिदोष निवारण माटे प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाने पोतानो जमणो हाथ अडकावी नीचेना मंत्रनो न्यास करवो
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ॐ इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्त: स्वसमयेनेहानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा | अथवा | ॐ क्षाँ क्ष्वी ही झी भः स्वाहा । आ बे पैकीना मंत्रनो न्यास करवो, ते पछी श्रावके दृष्टिदोष विघातार्थ लोहाऽस्पृष्ट धोला सरसवोनी पोटली नीचे लखेल मंत्रे ७ वार मंत्रीने जिनबिम्बने हाथे बांधवी । पोटली मंत्रवानो मंत्र :- 'ॐ क्षाँ क्ष्वी झौ स्वाहा ।' सर्व बिम्बोने पोटली बांधी ललाटमां चन्दननी टीली देवी, ए पछी प्रतिष्ठाचार्य हाथ जोडीने आ प्रमाणे विज्ञप्ति करे - स्वागता जिना: सिद्धा: प्रसाददाः सन्तु, प्रसाद धिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ॥ ते पछी श्रावक सर्षप दहि घृत अक्षत डाभ आ पांच द्रव्यात्मक अर्घ सुवर्ण पात्रंमां लेईने हाथ जोडी - ॐ भ: अर्घ प्रतीच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा । आ मंत्र बोलवा पूर्वक अर्घपात्र जिन आगल मूकवू, एज रीते श्रावक सरसवादि पांच द्रव्यात्मक अर्घनुं बीजुं पात्र हाथमां लेईने तथा प्रतिष्ठाचार्य वास लईने दिक्पालोनुं नीचे प्रमाणे आह्वान् करी अर्घ प्रदान करे - ॐ इन्द्राय आगच्छ आगच्छ, अर्घ प्रतीच्छ प्रतीच्छ, पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा । उपर प्रमाणे पूर्वदिशा संमुख इन्द्रनुं आह्वान करी प्रतिष्ठाचार्य वासक्षेप करे, अने स्नात्रकारो अर्घ, चन्दन, अक्षत, पुष्प उछाले, दिपक देखाडे, धूप उखेवे। अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग, ब्रह्माने पण ते ते दिशा संमुख आह्वान पूर्वक अर्घप्रदान करवो । श्रावको अर्घ आपती वेलाए ‘दिक्पाला अर्घ प्रतीच्छनतु' आ शब्दो बोल्या करे पछी -
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११. कुसुम जल :- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
अधिवासितं सुमंत्रैः सुमन: किंजल्कराजिंत तोयम् । • तीर्थजलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥११॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । १२. गंध जल :- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
गन्धांगस्नानिकया, सम्मृष्ट तदुदकस्य धाराभिः। .. स्नपयामि जैनबिम्बं, कौघोच्छित्तये शिवदम् ||१२||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । १३. वास जल :- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
हघेराबादकरैः स्पृहणीयैर्मंत्रसंस्कृतैजैनम् स्नपयामि सुगतिहेतो-बिम्बं ह्यधिवासितं वासैः ||१३||
__ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । १४. चन्दन रस :- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
शीतलसरससुगंधी, मनोमतश्यन्दननुमसमुत्थः । चन्दनकल्क: सजलो, मन्त्रयुत: पततु जिनबिम्बे ||१४||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । १५. केसर जल :- 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः'
काश्मीरजसुविलिप्त, बिम्बं तन्नीरधारयाऽभिंनवम् । सन्मन्त्रयुक्तया शुचि, जैन स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ||१५||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । आन्तरविधि :- पंदरमा अभिषेक करी प्रतिमाने आरीसो देखाडवो,
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१६. तीर्थ जल :- 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' जलधिनदीह्रदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि | तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ।
____ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । १७. कर्पूर जल :- 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' शशिकरतुषारधवला, उज्जवलगंधा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमंत्रपूता पततु बिम्बे ||१७॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा ।
१८. बिम्बोपरि पुष्पांजलिक्षेप :'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' नानासुगन्धिपुष्पौघ-रञ्जिता चंचरीककृतनादा । धूपामोदविमिश्रा, पततात्पुष्पांजलिर्बिम्बे ||१८||
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । पञ्चामृतनो अभिषेक - अढार अभिषेक अन्ते घृत १, दुग्ध २, दहि ३, इक्षुरस ४, सौंषधि चूर्ण ५, आ पांच द्रव्यो, पंचामृत करीने नीचेनो श्लोक
बोली तेनो अभिषेक करवो । 'नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुम्यः' ।
घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनगात्रसंपर्कात् । : तद् भगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृतसमुद्रस्य ||१||
दुग्ध दुग्धांभोधे-रुपाहतं यत्पुरा सुरवरेन्द्रैः । तद् बंलपुष्टिनिमित्तं, भवतु सतां भगवदभिषेकात् ॥२॥ • दधि मंगलाय सततं, जिनाभिषेकोपयोगतोऽप्यधिकम् ।
भवतु भविनां शिवा-ध्वनि दधिजलधेराहतं त्रिदशैः ||३||
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इक्षुरसोदादुपह्त-इक्षुरस: सुरखरैस्त्वदभिषेके । भवदवसदवथु भविना, जनयतु नित्यं सदानन्दम् ||४||
सवौषधिषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेके । तत्सवौंषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्ध्यै ॥५॥
ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । पंचामृतनो अभिषेक कर्या पछी कर्पूरना चूर्ण वडे घसी प्रतिमानी स्निग्धता दुर करवी, चीकाश वधारे होय तो साधारण उष्ण जलनो उपयोग करवो, पछी ८ कलशिया शुद्धजले भरी अभिमंत्रित करीने नीचेनुं काव्य बोलतां
आठ अभिषेक करवा - चक्रे देवेंद्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-र्नृत्यन्तीभिः
सुरीभिललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपर: स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥
आ काव्य प्रत्येक अभिषेके उच्च स्वरे बोलवू, पछी अंग लूंछी चन्दनादि विलेपन करवू । प्रतिमा आगे पान, सोपारी, फलादि ढोक, ते पछी
स्नात्रकारोए आरती, मंगल दीवो करवो अने प्रतिष्ठाचार्ये संघ सहित मूलनायकनां चैत्यवन्दन-स्तृतिथी देववन्दन करवू, मूलनायक, चैत्यवंदन
स्तुतिओ याद न होय तो नीचेनुं चैत्यवंदन कहेवू । जय श्रीजिन! कल्याण-वल्लीकन्दलनाम्बुद! । मुनीन्द्रह्दयाम्भोज- विलासवरषट्पद ॥१॥
तव नाथ! पदद्वन्द्व-सपर्यारसिका जना:। सर्वसंपत्सुखश्रीभि- विलसन्ति सदोदया : ॥२॥
नृलौके चक्रिताद्या याः, स्वलॊके चेन्द्रतादय : । शिवेऽनन्तसुखाद्यास्ता-स्तव भक्तिवशा: श्रिय : ||३||
सर्वश्रेय: श्रियां मलं, ददध्धर्म समग्रवित् । योगक्षेमकरो नाथ-स्त्मेव जगतामसि ||४||
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त्वमेव शरणं बंन्ध स्त्वमेव मम देवता। तन्मां पाहि भवात्तात! कुरु श्रेयःसुरखास्पदम् ॥५॥ नमुत्थुणं, अरिहंत चेइयाणं., १ नो. का., नर्मोर्हत्. स्तृति, ‘अर्हस्तनोतु.'
लोगस्स., सव्वलोए अरिहंत., १ नो का., स्तुति 'ॐ मिति मन्ता.,' पुक्खरवरदी., सुअस्स भगवओ करेमि का., वंदणवत्तियाए., १ नो. का., स्तुति 'नवतत्त्वयुता.' सिद्धाणं बुद्धाणं., श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थ करेमि का., वंदणव., का. १ लोगस्स-सागरवर गंभीरा, नमोऽर्हत. स्तुति- '
श्रीशान्ति: श्रितशान्ति:, सुयदेवयाणकरेमि का., अन्नत्थ., १ नो., नमोऽर्हत स्तुति- ‘वद वदति न वाग्वादिनि', सासणदेवयाए करेमि का., अन्नत्थ. १ नो., नमोऽर्हत., स्तुति 'उपसर्गवलयविलयन.' अम्बिकायै
करेमि का., १ नो., नमोऽर्हत., स्तुति- 'अम्बा बालाङ्कितङ्कासौ.' अच्छुत्ताए करेमि का., १ नो., नमोऽर्हत., स्तुति 'चतुर्भुजा तडिद्वर्णा.', खित्तदेवयाए करेमि का., अन्नत्थ., १ नो. नमोऽर्हत., स्तुति- 'यस्या: क्षेत्रं
समाश्रित्य.' समस्तवेयावच्च., १ नो. का., नमोऽर्हत., स्तुति- 'संघेऽत्र ये.' १ नवकार., नमुत्थुणं., जावंति चे., जावंत केवि., नमोऽर्हत., स्तवन
'ॐ मिति नमो भगवओ.' जयवीयराय. । ए पछी मूलनायक बिंबुनुं नामस्थापन कर, कुंकमनां छांटणां करवां, पत्रदान आपq अने ते पछी नीचेनी विधिथी प्रतिमाने वस्त्राभूषणोथी अलंकृत करी नैवैद्य चढावq ।
चचच्चारुशुचिप्ररोहविसरप्रद्योतिताशामुखे, दिव्यश्रीकदिवाकरद्युतिभरादालुप्तदृग्गोचरे । निर्मूल्ये विशुचि शुचौ जिनमहे दिव्यैकदेवाङ्गना
नीतैराभरणैरलंकृतमहो देहे दधे वाससी ||१|| ॐ ह्रां ह्रीं परमअर्हते वस्राभरणैरर्चयामीति स्वाहा । ।
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आ काव्य तथा मंत्र भणीने प्रतिमाने आभूषण पहेराववां, वस्त्रयुगल चढावq
अने -
सज्जैः प्राज्याज्ययुक्तैः परिमलबहुलैर्मोदकैर्मिश्रिरखण्डै: . .
खाद्यायैलापनश्रीघृतवरपृथुलापूपसारैरुदारैः । स्निग्धौघोभिनितान्तंचरुभिरभिनवै. कर्मवल्लीकुठारान्, चापे (ये.)
निर्मायधुपान् सुरनरमहितानचयेदर्हम्यान् ||१||
ॐ हाँ ह्रीं परमअर्हते नैवेद्यनार्चयामीति स्वाहा । आम काव्य सहित मंत्र भणीने नैवद्य चढावq अने बलिबाकुला उछालवा
॥ इति अभिषेक विधि ॥
सौभाग्य मंत्र ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे, कुरु कुरु, वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु, सुमणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविल ॐ कः क्ष: स्वाहा ।
रक्षा पोटली मंत्र - ॐ हूँ सू फुट् किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविघ्नान् स्फेटय स्फेटय, सहस्त्रखण्डान् कुरु कुरु, परमुद्रां छिन्द छिन्द, परमान्त्रान् भिन्द भिन्द हूँ क्ष: फुट् स्वाहा ।
रक्षा पोटली बांधवानो मंत्र ॐ नमोऽर्हते रक्ष रक्ष हुँ फुट् स्वाहा ।
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चा
(श्री जिन मंदिरनी वर्षगांठ प्रसंगे ध्वजारोपण विधि)
चोत्रीशो यंत्र ध्वजारोपण माटे
५ १६| ३ |१०| शुभ नक्षत्र
| ४ | ९ | ६ |१५| त्रण उत्तरा, आद्रा-श्रावण-धनिष्टाशतभिषा-रोहिणी अने पुष्य नक्षत्र छे. |१४|७|१२| १ नक्षत्र न मळे तो शुभ चोघडीयुं लेवू. H
ध्वजानुं माप
११/२ १३/८ |
ध्वजा दंड जेटली लांबी अने दंडना आठमा भाग जेटली पहोळी (पाटलीनी पहोळाइ जेटली) बनाववी. परिकर साथे मूळनायक होय तो वच्चे सफेद पट्टो आजुबाजुलाल राखवो अने परिकर न होय तो वचेलाल पट्टो आजु बाजु सफेद राखवो जोइओ. तमाम ध्वजा उपर केशरथी सूर्य, चंद्र, ॐ ह्री श्री स्वाहा, उपर नीचे त्रण साथिया अने चोत्रीशी यंत्र आलेखवो (दोरवो).
विधि सवारे स्नात्र भणावq सत्तरभेदी पूजा भणावता नवमी ध्वजापूजा भणावी पूज्य गुरु भगवंत होय तो तेओश्रीना श्रीमुखे मंत्रोच्चार करावी ध्वजा उपर वासक्षेप कराववो. गुरुमहाराज न होय तो उत्तम व्रतधारी श्रावके सातवार मंत्रोच्चार करी ध्वजा उपर वासक्षेप करवो....
मंत्र : ॐ ह्री श्री ठः ठः ठः स्वाहा त्यारबाद सौभाग्यवती बहेने ध्वजा थाळीमां माथे लई थाळी डंका (वाजींत्र) ना नाद साथे जिनालयने त्रण प्रदक्षिणा आपवी. जिनालयने प्रदक्षिणा अशक्य होय तो सिंहासनने (त्रिगडाने) त्रण प्रदक्षिणा आपवी. पछी ध्वजा - पक्षाल - पाणी - अंगलूंछणा - केसरनी वाटकी - वासक्षेप - धूप - दीपक - कंकु - फूल - सोपारी - घंटडी - दर्पण - थाळीवेलण - बाकळा सवा किलो सात धानवाला अथवा पाच धान ( अडद - चणा - मग - घऊं - जुवार - डांगर - जव) - अबिल - गुलाल - कळीलाडु - मींढळ - मरडाशींग - डाभर्नु घास -नागरवेलनां पांच पान - फुलना बे हार -
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रुपानाj - चामर - बरास - त्रण तारवाळी लालरंगी नाणाछडी - माटीना कोडीयामां सळगावेल देवतामां दशांगधूप नाखी आ तमाम सामग्री लइ शिखर उपर जवू. त्यारबाद नीचे मुजब मंत्र बोली दशे दिशामां बाकळा उछाळवा.
पूर्वदिशा सन्मुख ॐ नमो इंद्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय... नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
अग्नि खूणा सन्मुख ॐ नमो अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकरांय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
दक्षिणादिशा सन्मुख ॐ नमो यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय... नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
नैऋत्य खूणा सन्मुख ॐ नमो नैऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
पश्चिमदिशा सन्मुख ॐ नमो वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
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'वायव्य खूणा सन्मुख ॐ नमो वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
उत्तरदिशा सन्मुख ॐ नमो धनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
ईशान खूणा सन्मुख ॐ नमो ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय..
नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि . महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
. उर्ध्वदिशा सन्मुख ॐ नमो ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
. अधोदिशा सन्मुख ॐ नमो नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय.. . नगरे श्री.. स्वामी प्रासादे ध्वजारोपण विधि
महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा.
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त्यारबाद जुनी ध्वजा उतारी दंड तेमज कळशनो अभिषेक करवो. पक्षाल पूजा करी अंग लंछणा करी केसरना छांटणा करवाः फूल चढावी धूप-दीप करी खामणा उपर चोखानो साथीओ करी फूलनैवेद्य-रुपानाणुं मुकवू, पछी ध्वजादंडना ओक पर्व पर मीढळमरडाशींग-डाभनुं घास तेमज नागरवेलनां पांच पान बांधवा. त्यारबाद ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रियंताम् प्रियंताम् बोलवा पूर्वक ९ नवकार गणी ध्वजा चढाववी, पछी ध्वजा उपर केशरना छांटणा करवा. कळश अने दंडने फुलहार चढाववा, अबिल-गुलालकंकुदशे दिशामां उडाडवा, नीचे उतरी मोटी (बृहत्) शांति बोलवी. पूर्व दिशा सन्मुख सौओ ऊभा रही हाथ जोडी नीचेना श्लोको बोलवा : जिनेन्द्र भक्त्या जिन भक्तिभाजं, येषां च पूजा बलिपुष्पधूपैः । ग्रहा गता ये प्रतिकुलतां च, ते सानुकूला वरदा भवंतु ॥ ...१
आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं । पूजाविधिं न जानामि, प्रसिद परमेश्वर! || ...२
आज्ञाहिनं क्रियाहिनं, मंत्रहिनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं कृपया देवाः, क्षमन्तु परमेश्वरा : ॥ ...३ खमासमण आपी अविधि आशातजा मिच्छामि दुक्कडं कहेवू.
त्यारवर नीचे आवी बाकीजी पुजाओ भणाववी. पछी आरती-मंगळ दीवो-शांतीकळश करी चैत्यवंदन कर. पछी खमासमण आपी अविधि आशातना मिच्छामि
दुक्कडं कही सौओ छुटा पडq. (उस दिन साधर्मिक वात्सल्य करना न हो सके तो संघ पूजा,
प्रभावना आदि करना)
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अढार अभिषेक अने ध्वजा रोपण प्रसंगे बोलवा लायके गीतो:
॥१॥
॥२॥
मेरु शिखर न्हवरावे हो सुरपति. मेरु शिखर न्हवरावे जन्म काल जिनावरजी को जाणी, पंचरुप करी आवे हो
सुरपति .... रतन प्रमुख अडजाती ना कलशा, औषधि चूरण मिलावे खीर समुद्र तीर्थोदक आणी, स्नात्र करी गुण गावे, हो
सुरपति .... ओणिपरे जिन प्रतिमा को न्हवण करी, बोधी बीज मानु वावे अनुक्रमे गुण रत्नाकर फरशी, जिन उत्तम पद पावे . हो
सुरपति .... लावे लावे मोतिशा शेठ, न्हवण जल लावे छे न्हवरावे मरुदेवा नंद. प्रभु पधरावे छे सहु संघ ने हरख न माय, न्हवण जल लावे छे म्हारी बेहनो ने हरख न माय, प्रभु पधरावे छे ।
॥३॥
रंगे रमे आनंदे रमे, आज देव देवीयो रंगे रमे प्रभजी ने देखी मोटा भूप नमे, आज देव ....... प्रभुजी नी पासे सोनीडो आवे मुगट चढावी प्रभु पाय नमे ......आज देव ...... प्रभुजी नी पासे माळीडो आवे हार चढावी प्रभु पाय नमे ....... आज देव
॥
वागे छे रे वागे छे देरासर वाजा वागे छे जेनो शब्द गगनमां गाजे छे ..... देरासर .... झीणी झीणी घुघरीओ घमके छे
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इंद्राणी ना पाउल ठमके छे .... देरासर प्रभु समवसरणमा बिराजे छे जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे गुण पात्रीश वाणीये गाजे छे ..... देरासर
देखी श्री पार्श्वतणी मुरती अलबेलडी उज्वल भयो अवतार रे, मोक्षगामी भवती उगारसो
शिवगामी भवथी उगारसो .... ॥ . . मस्तके मुगुट सोहे, काने कुंडलीयां, गले मोतन का हार रे, मोक्षगामी ...
॥१॥
झगमगता तारलानुं देरासर होजो अमां मारा प्रभुजी नी प्रतिमा होजो सुंदर सोहामनी आंगी होजो. अमां मारा प्रभुजी नी प्रतिमा होजो ...... झगमगता
अमे अमारा प्रभुजी ने फुलोथी सजावीशु फूलो ना मळे तो अमे कलियोथी सजावीशु कलीयो मा सुंदर मोगरा होजो ... झगमगता
कोण भरे, कोण भरे, कोण भरे रे शेव्रुजी नदीनां पाणी कोण भरे रे हुरे भरू ने मारी सैयर भरे
मारी सैयर भरे ..... शेजूंजी .... उंचा उंचा डुंगरा ने दादा बेठा उंचा पाणी लइ जातां मारी केड नमे
मारी केड नमे ..... शेजी .....
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आणी तीरे हस्तगीरी, पेली तीरे कदमगीरी वचमां शत्रुजयंगीरी रास रमे रे
गीरी रास रमे रे ...... शेजूंजी
ओकवार अकवार पार्श्व प्रभुजी, मारे मंदिरीये आवोने
मारे मंदिरीये आवो मारा व्हाला आवो मारा व्हाला हुं तो करु कालावाला
__मारा आंगणीया शोभावोने .... अकवार .... नानीशी झोपडी ने मन मारा मोटा,
अमां हं तमने समावू रे .... अकवार ....
॥१॥
॥२॥
आज मारा देरासरमां, मोतिडे मेह वरस्यां रे मुखडू देखी प्रभुजी तमारू, हैया सहुनां हररव्या रे .... आज .... झगमग झगमग ज्योती झलके, वरसे अमीरस धारा रे.. रुप अनुपम नीरखी विकसे, अंतरभाव अमारा रे ..... आज .....
... १०) सावरे सोनानां तारां मंदिरियां बनावु
रतननी पडीमा भरावु रे ......... सावरे शिखरे शिखरे कलश चढायूँ रुडा रुडा ध्वजदंड मुकावूरे
सुंदर ध्वजाओ फरकाउ रे ........ सावरे बारणे बारणे तोरणीयां बंधावू झीणी झीणी कोतरणी करावं रे
नानी नानी घुघरीओ मुकावू रे ....... सावरे ११) उग्यो उग्यो सुरज आज सोनानो
आव्यो आव्यो अवसर आज आंनदनो
- रुडी वर्ष गांठ उजवाय ......... सुरज आज
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तारी मरती तो मोहनगारी रे सहु ने लागे छे ते प्यारी रे
__मारा अंतरमा आवो ने नाथ ........ सुरज आज तारु मंदिर सुंदर शोभे छे जाणे देव विमान ओ तो लागे छे
पेली ध्वजाओ फरके फर फर ....... सुरज आज १२) वर्षगांठना अवसर आव्या मारा वाला
वर्षगांठना अवसर आव्या रे लोल पार्श्वप्रभूना द्वारे मारा वाला
पार्श्वप्रभूना द्वारे रे लोल ढोल वाजिंत्र वगडावो मारा वाला
ढोल वाजिंत्र वगडावो रे लोल ....... हळीमळी ने सह आवे प्रभु द्वारे
. हळीमळी ने सहु आवे रे लोल ...... रुडी रुडी ध्वजाओ फरकावो शिखर पर
रुडी रुडी ध्वजाओ फरकावो रे लोल ......
१३) वर्षगांठना पावन प्रंसगे, आव्या तुम्हारे द्वार
____ आव्या रे आव्या भक्ति करवा, आव्या प्रभुना द्वार ....... वर्षगांठना प्रभू भक्तिनो महिमा छे भारी, कहेता ना आवे पार ऐना प्रभावे मंगल थाये, वर्ते जयजयकार ...
....... वर्षगांठना
१४) ककुं छांटी कंकोतरी मोकली, माय लखजो शुभ संदेश
ओच्छवमां पधारजो मारा प्रभुजीनी वर्षगांठ आवी रे
दशम दिन ध्वजा चढाय, ओच्छवमां पधारजो
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* द्रव्य सहाय्यक *
* श्रृत प्रेमी
• डॉ. सी. आर. शाह
M.B.B.S.
डॉ. सौ. आशा सी. शाह
M.B.B.S.
बेडक्याळकर
वॉर्ड नं. ५ घर नं. ४९८, सिटी पोस्ट के पास, इचलकरंजी फोन : २४२११०५
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________________ उपकारी पू. पिताश्री एवं पू. मातुश्री स्व. रामचंद्र सिरचंद्र शाह स्व. माणिकबेन रामचंद्र शाह मिठी मधुर स्मृतियाँ आपकी कभी नही मिट पायेगी... आपका व्यवहार आपकी बातें सदैव हमें याद आयेगी.. आपका उत्कृष्ट धर्मप्रेम प्रेरित सदा करता रहेगा... आपका आत्म विश्वास हम में हौंसला भरता रहेगा... * श्रध्दानवत* डॉ. सी. आर. शाह डॉ. सौ. आशा सी. शाह मुद्रक : गुरुगौतम ग्राफिक्स,सुरत मो. 09898563024 ducation n ational For Personal Private Use Only