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________________ * पांचमु (सदौषधि) स्नात्र औषधिओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखयुं नमोऽर्हत् कहीसहदेवी शतमूली, शतावरी शंख पुष्पिका । कुमारी लक्ष्मणा चैव, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥१॥ सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्त्तितस्य बिम्बस्य | गन्धतन्मिश्रं बिम्बो - परिपतज्जलं हरतु दुरितानि ॥२॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम पर्हते सहदेव्यादिसदौषधिना सह स्नापयामीति स्वाहा " * छठु (प्रथमाष्टकवर्ग) स्नात्र उपलोट वि. आठ वस्तुओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवं 'नमोऽर्हत्' कही - सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥ १ ॥ उपलोट - व्रचालोद्र - हीरवर्णी देवदारवः | ज्येष्ठीमधु - ऋद्धिदूर्वा, स्नापयमि जिनेश्वरम् ॥२॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते उपलोटद्यष्टकवर्गेण स्नापयामीति स्वाहा” Jain Education International 6 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004230
Book TitleAdhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArvind K Mehta
PublisherArvind K Mehta
Publication Year2005
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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