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________________ * दशमु (सुगंधौषधि) स्नात्र * अंबर वि. सुगंधी वस्तुओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवू. 'नमोऽर्हत्' कही - सर्वविघ्न-प्रशमनं, जिनस्नात्र-समुद्भवम् । वन्दे सम्पूर्णपुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेजिनम् ॥१॥ सकलौषधि-संयुक्त्या, सुगन्ध्या घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैन बिम्बं मन्त्रित तन्नीरनिवेहन ॥२॥ "ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते अम्बरउशीरादि सुगन्धद्रव्यै : स्नापयामीति स्वाहा” | * अगीयारमुं (पुष्प) स्नात्र * सेवंत्रा चमेली मोगरा गुलाब जुई ए जातनां फुलो कलश भरवाना पाणीमां नाखवां 'नमोऽर्हत्' कही - अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमन: किजल्कराजितं तोयम्। तीर्थजलादि-सुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ||१|| सुगन्ध-परिपुष्पौधे-स्तीर्थोदकेन संयुतै : । भावना -भव्यसन्दोहै:, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ • "ॐ हाँ ह्रीं. परम अर्हते पुष्पौघैः स्नापयामीति स्वाहा” . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004230
Book TitleAdhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArvind K Mehta
PublisherArvind K Mehta
Publication Year2005
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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