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अढार अभिषेक अने ध्वजा रोपण प्रसंगे बोलवा लायके गीतो:
॥१॥
॥२॥
मेरु शिखर न्हवरावे हो सुरपति. मेरु शिखर न्हवरावे जन्म काल जिनावरजी को जाणी, पंचरुप करी आवे हो
सुरपति .... रतन प्रमुख अडजाती ना कलशा, औषधि चूरण मिलावे खीर समुद्र तीर्थोदक आणी, स्नात्र करी गुण गावे, हो
सुरपति .... ओणिपरे जिन प्रतिमा को न्हवण करी, बोधी बीज मानु वावे अनुक्रमे गुण रत्नाकर फरशी, जिन उत्तम पद पावे . हो
सुरपति .... लावे लावे मोतिशा शेठ, न्हवण जल लावे छे न्हवरावे मरुदेवा नंद. प्रभु पधरावे छे सहु संघ ने हरख न माय, न्हवण जल लावे छे म्हारी बेहनो ने हरख न माय, प्रभु पधरावे छे ।
॥३॥
रंगे रमे आनंदे रमे, आज देव देवीयो रंगे रमे प्रभजी ने देखी मोटा भूप नमे, आज देव ....... प्रभुजी नी पासे सोनीडो आवे मुगट चढावी प्रभु पाय नमे ......आज देव ...... प्रभुजी नी पासे माळीडो आवे हार चढावी प्रभु पाय नमे ....... आज देव
॥
वागे छे रे वागे छे देरासर वाजा वागे छे जेनो शब्द गगनमां गाजे छे ..... देरासर .... झीणी झीणी घुघरीओ घमके छे
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