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________________ | * बीजु (पंच रत्न चूर्ण) स्नात्र * | १. मोती, २. सोनु, ३. रु', ४. प्रवाल अने, ५ तांबु ‘ए पंचरत्ननु चूर्ण करी उपरनी जेमज कुंडिमां वास चंदन पुष्प वाला पाणीमां नाखी चार कलशो भर 'नमोऽर्हत्' नो पाठ कही नीचेना श्लोको अने मंत्र बोली न्हवण करवु । यन्नामस्मरणादपि श्रुतवशाद प्यक्षरोच्चारतो, यत्पुर्ण प्रतिमा प्रमाण करणात्संदर्शनात्स्पर्शनात् । भव्यानां भवपङ्क-हानिरसकृत्स्यात्तस्य किंसत्पयः, स्नात्रेणापि तथा स्वभक्तिवशतो रत्नोत्सवे तत्पुनः ||१|| नानारत्नौघसंयुतं, सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रचुर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥२|| “ॐ ह्रां ह्रीं परम अर्हते मुक्तास्वर्णरौप्य - प्रवालत्र्यम्बलपञ्चरत्नैः स्नापयामीति स्वाहा” आम दरेक स्नात्र काव्यो अने मंत्र बोलवापूर्वक ते ते स्नात्र करी तलक, पुष्प, वास, धूप विगेरेथी पूजन करवू । OEMO GC Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004230
Book TitleAdhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArvind K Mehta
PublisherArvind K Mehta
Publication Year2005
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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