________________
* सत्तरमुं (कपुर) स्नात्र * कपूर कलशमां नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - शशिकर तुषारधवला, उज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा। कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु जिनबिम्बे ॥१॥ कनक - क रक नाली- मुक्त धाराभिरद्भिः, मिलित निखिलगन्धैः केलि - कर्पूरभाभिः । अखिल - भुवन - शान्तिं शान्तिधारां जिनेन्द्र-क्रम सरसिज-पीठे स्नापयेद्वीतरागान्
॥२॥ "ॐ हाँ ही हूँ है * हौ * हः परम अर्हते कपूरण स्नापयामीति स्वाहा”
* अढारमुं (केशर-चंदन-पुष्प) स्नात्र * केशर, चंदन अने फुल पाणीमां नाखी 'नमोऽर्हत्' कही - सौरभ्यं घनसार पङ्कज-रजो-नि:प्रीणितैः पुष्करैः, शीतैः शीतकरावदात-रुचिभि: काश्मीर-सन्मिश्रितैः । श्रीखण्ड-प्रसवाचलैश्य मधुरैः नित्यं लभेष्टैर्वरैः, सौरभ्योदक-संख्य सार्वचरण द्वन्द्वं यजे भावत: ॥१॥ “ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं हौं हः परम अर्हते केशरचन्दनाभ्यां स्नापयामीति स्वाहा”
-
_14
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org