Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi Author(s): Arvind K Mehta Publisher: Arvind K MehtaPage 12
________________ मेदाद्यौषधि-भेदोऽपरोऽष्टकवर्ग-सुमन्त्रपरिपूतः । निपतबिम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥४॥ “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पियङ्गवादिभिः सवौषधैः स्नापयामीति स्वाहा” त्यारपछी गुरु उभा थइ - परमेष्ठिमुद्रा, गरुडमुद्रा अने मुक्ताशुक्तिमुद्रा ए त्रण मुद्राथी जिनेश्वरनुं आह्वान करे । आह्वान करवानो मंत्र - "30% नमोऽर्हत्परमेश्वराय त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवेन्द्रमहिताय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।” * नवमु (पंचगव्य अथवा पंचामृत) स्नात्र पंचामृतनो कलश भरी 'नमोऽर्हत्' कही - जिनबिम्बोपरि निपतत्, घृतदधि- दुग्धदि-द्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदक - सन्मिश्रं, पंचगव्यं हरतु दुरितानि 119 || वरपुष्प - चन्दनैश्च, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधिदुग्ध - घृतमिश्रः, स्नापयामि जिनेश्वरम् “ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पञ्चामृतेन स्नापयामीति ॥२॥ स्वाहा " Jain Education International 8 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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