Book Title: Adhar Abhishek evam Dhwajaropan Vidhi
Author(s): Arvind K Mehta
Publisher: Arvind K Mehta

Previous | Next

Page 11
________________ * सातमु (द्वितीयाष्टकवर्ग) स्नात् * पतंजारी वि. आठ वस्तुओनुं चूर्ण करी कलश भरवाना पाणीमां नाखवु 'नमोऽर्हत्' कही - नानाकुष्ठाद्योषधि-सन्मिश्रे तद्युतं पतन्नीरम् । बिम्बे कृतसन्मिश्र, कर्मोघं हन्तु भव्यानाम् ॥१॥ पतञ्जारी विदारी च, कर्नूर: कच्चुरी नखः । कङ्कोडी क्षीरकन्दश्च, मुसलैः स्नापयाम्यहम् ॥२॥ "ॐ हाँ ही परम अर्हते पतजार्यष्टकवर्गेण स्नापयामीति स्वाहा” (* आठमु (सर्वौषधि) स्नात् *) प्रियंगु वि.३३ औषधिओनुं चूर्ण करी कलश भरवाना जलमां नाखवु. 'नमोऽर्हत्' कहीं - प्रियगुवच्छ-कंकेली, रसालादि-तरुद्भवैः। पल्लवैः पत्रभल्लात, एलची-तजसत्फलैः ॥१॥ विष्णुकान्ता हिमवाल-लवङ्गादिभि-रष्टभिः । मूलाष्टकस्तथाद्रव्यैः, सदौषधि-विमिश्रितैः ॥२॥ • सुगन्धद्रव्य-सन्दोहा,-मोदमत्तालि-संकुलैः। विदधेऽर्हन्महास्नात्रं, शुभ-सन्तति सूचकम् ||३|| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44