Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur View full book textPage 6
________________ (xii) विपुल साहित्य की प्रागम के अनुरूप रचना की है, फलस्वरूप इसमें शुभ, सत्य और सुखद सम्भावनामों का समीकरण प्रारम्भ से ही परिलक्षित है। जैन साहित्य जिन' वाणी संग्रहों में सुरक्षित रहा जिसके स्वाध्याय की नियमित परम्परा जैन समुदाय में विद्यमान रही। देश में अनेक 'स्वाध्याय संलियाँ' स्थिर हुयौं जिनके द्वारा शास्त्र. प्रवचन, शंका समाधान, तत्त्व चर्चा आदि दृष्टियों से साहित्य का अध्ययन-अनुशीलन चलता रहा। कालान्तर में जब साहित्यिक इतिहास रचे गये तब हिन्दी भाषा में रची गई कुतियों की खोजखबर ली गई । शक्ति और सामर्यानुसार जिन-जिन साहित्याचार्यों न काम किये वे अनुशंसित हुए परन्तु जैन हिन्दी साहित्य को प्रकाश में लाने और उसे हिन्दी साहित्य के सिंहासन पर प्रतिष्ठित करने-कराने का श्रेय महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, नायूराम प्रेमी, बाबू कामताप्रसाद अन, मुनियर जि. विजय को महाज भाचार्य हजारोप्रसाद द्विवेदी, पंडित अगरचन्द नाहदा तथा डॉ० रामसिंह तोमर प्राधि अनेक अनुसंधिमुनो और साहित्य साधको को रहा है परिणामस्वरूप प्राज साहित्यिक इतिहास नये सिरे से रचे जाने लगे हैं। जैन कवियों ने हिन्दी में प्रारम्भ से ही लिखना प्रारम्भ कर दिया और बड़ी विशेषता यह है कि अभिव्यक्ति के अनेक कापों को स्थिर करने में इन कवियों ने अगुवा बनकर जिस मृजनात्मक भूमिका का निर्वाह किया वह विद्वत् समाज में प्राज भी समारत है। भाव-सम्पदा, भाषा अलंकार छन्द, व्याकरण, काव्य रूप तथा शैली शिल्प प्रादि मनेक काब्य गास्त्रीय दृष्टि से यदि जैन हिन्दी साहित्य को अन्वित मौर और समन्वित नहीं किया गया तो हिन्दी साहित्य कमी पूर्ण नहीं कहा जा सकता, यह वस्तुत: गवेषरा स्मिक सत्य है । अनेक अब्धियों और दशाब्दियों पूर्व जब मेरी पहले-पहल अनुसन्धान की दृष्टि से राजस्थानी यात्रा प्रारम्भ हुई थी उस समय हिन्दी जैन साहित्य को उजागर करने का प्रश्न सामने प्राया था । अनेक शोधार्थियों की समस्या और उसके समाधान पर मादरणीय प्रियवर डॉ० कस्तूरचन्द जी कासलीवाल, पं. अनपचन्द्र जी शास्त्री प्रादि जयपुरिया साहित्यिक स्रोजियों से विचार-विमर्श हुए और तय हुमा कि लुप्त विलुप्त भांडारों में भरी पड़ी सामत्री को प्रकाशित कराया जाय । दशान्दियों बाद यह सौभाग्य बन पाया कि श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के माध्यम से हिन्दी साहित्य को इस रूप में व्यवस्थित प्रौर प्रकाशित किया जा रहा है। हर्ष का विषय है कि मझ जैसे अनेक भाइयों के निर्देशन में अनेक विश्वविद्यालयों के अधीन, पी-एचडी. उपाधि के लिए हिन्दी जैन कवियों पर अध्ययन हुआ है और कार्य चल रहा है। इस कार्य सम्पादन में भाई कासलीवान जी को कितने पापड़ बेलने पड़े हैं, इसकी प्रतीति मुझे है, वस्तुतः विचारणीय बात है । के इस भागीरथ काम को पार जगा रहे हैं वस्तुतः बहुत बड़ी बात है।Page Navigation
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