Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय वैदिक, बौद्ध और जैन साहित्य मिलकर भारतीय साहित्य के रूप को स्वरूप प्रदान करते हैं । 4दि साहित्य क लिए वेद, बौद्ध-बार मय के लिए पिटक और जैन साहित्य के लिये मागम शब्द का व्यवहार प्रारम्भ से ही होता रहा है । सम्पूर्ण प्रागम को (१) प्रथमानुयोग, (२) कररणानुयोग, (३) परणानुयोग, तथा (४) द्रव्यायोग उन चार भागों में विभाजित किया गया है। प्रपनामो के , जान नौर मोन अथवा जिनेन्द्र देवों पर मात अनेक ज्ञानपूर्श कथाएँ तथा पुराणों का समावेश है। करगानुयोग के शास्त्रों में कर्म सिद्धान्त और लोक व्यवहार का विशद व्याख्यान है । चरणानुयोग के शास्त्रों मे श्रावक तथा यति अर्थात् साधु-संगठन और आचारसंहिता का विशद विधान परिणत है । द्रव्यानुयोग के शास्त्रों में घेनन-प्रवेतन, घट्दयों तथा तत्य लक्षणों का विस्तार पूर्वक विश्लेषण किया गया है। प्राकृत भाषा अपने अनेक प्रांतीय रूपों को समेटती भारतीय संस्कृति को शब्दायित करती रही है। मागधी, प्रमागधी, पालि प्रादि रूपों को ग्रहण करती हुई उसका जो रूप घिस-पिस कर स्थिर हुअा बन्द प्रयभ्रषा के नाम से समाहत हुमा । अपभ्रश के वत्स से पुरानी हिन्दी ब्रजभाषा का प्रातिम रूप उना-प्रफुरित और पल्लवित हुआ । इस प्रकार उकार बहुल ब्रजभाया हिन्दी या आदिम रूप प्रपन्नश के कोड से उत्पन्न हुआ। संस्कृत हिन्दी की जननी है, यह शारामा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से चिरञ्जीवी नहीं रह सकी। राजस्थानी डिंगल और पिगल स्वरूपा हिन्दी विविध कानों में अपने-अपने समुदाय और ममाज के स्वरूप को अभिव्यक्ति देती रही है। राज्याथित कवियों द्वारा राज-सत्ता और महत्ता का सातिमय वर्णन शब्दायित हुनत । कहीं कहीं अमुक अमुक काव्य-धागनों से अनुप्रेरित व.पियों ने तत्सम्बन्धी संकीर्ग विचारणामों को व्यक्त किया है। इस प्रकार काल-क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए हिन्दी साहित्य का कलेवर वृद्धगत होता गया। पदयात्री संतों की अपनी एक परम्परा रही है : जन सन्त इस परम्परा के नायक प्रोर उन्नायक रहे हैं । जैन मुनियों, माचार्यो तथा सिद्ध-साधकों, मनीषियों ने देश के प्रधान-उपप्रधान तथा क्षेत्रीय भाषा और उपभाषामों में जनमल्याणकारीPage Navigation
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