Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 8
________________ लेखक की कलम से राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा की पाण्डुलिपियों के लिये राजस्थान के जैन ग्रन्यागार विशाल भण्डार है जिनमें संकड़ों महत्त्वपूर्ग, प्रज्ञात एवं अल्प-ज्ञात कृतियों का संग्रह मिलता है । इस दृष्टि से जैनाचार्यो, भट्टारक गण एवं विद्वानों की साहित्यिक सेवाएं अत्यधिक उल्लेखनीय है । जिन्होंने विगत ६००-७०० वषों से अपनी सैकड़ों कृतियां साहित्यिक जगत को मेंट करके अपने हिन्दी प्रेम को प्रदर्शित किया है और आज भी कर रहे हैं। प्रस्तुत पञ्चम भाग में १६ वीं शताब्दि के पांच ऐसे ही कवियों को लिया गया है जो राजस्थानी हिन्दी के लिये समर्पित रहें है तथा जिनका व्यक्तित्व एवं कृतित्य दोनों ही विद्वानों के लिए अज्ञात अथवा अल्पज्ञात रहा है। सोमकीति १६ वीं शताब्दि के प्रथम चरण के कवि थे । राजस्थानी उनकी प्रिय भाषा थी जिसमें उन्होंने दो बड़ी एवं पांच छोटी रचनायें निबद्ध की थी। 'गुरु नामावली' में उन्होंने राजस्थानी गद्य का प्रयोग करके गद्य साहित्य की लेखन परम्परा को बहुत पीछे ला पटका है। राजस्थानी हिन्दी साहित्य के इतिहास के लिये गुरु नामावली एक महत्वपूर्ण कृति है । संवत् १५१८ (सन् १४६१) में निर्मित यह कृति गश्य पद्य मिश्रित है । यह संस्कृत को चम्मु कृति के समान है । कवि ने अपने गद्य भाग को बोली लिया है जिसमें यह स्पष्ट है ऐसी ही भाषा उस समय बोलचाल की भाषा की ओर उले बोली कहा जाता था। बोलचाल की भाषा के लोकप्रिय शब्द कुण, मापणा, बोलता, ढीली, नयर, पालखी, इसी, इणी, का खूब प्रयोग हुमा है । सोमकीत्ति अपने युग के प्रभावशाली भट्टारक थे । काष्टासंघ की भट्टारक गादी के सर्वोपरि नाचू थे । साथ में वे भाषा शास्त्री भी थे । संस्कृत कृतियों के साथ ही राजस्थानी में कृतियों का लेखन उनकी राजस्थानी के प्रति गहरी रुचि का सफल है । सांगु इस काल के दूसरे कवि थे । अभी तक इनकी एक ही कृति 'सुकोसल राय चुपई' उपलब्ध हो सकी है लेकिन यह एक ही कृति कवि की काव्य प्रतिभा परिचय के लिये पर्याप्त है । यह एक लघु प्रबन्ध काव्य है जिसमें काव्य-गत सभी लक्षण विधमान है काव्य पूरा रोमाञ्चक है जिसमें कभी विवाह, कमी युद, कभी

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