Book Title: Acharanga Sutra Satikam Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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बीआचाराजवृत्तिः (शोलाका.)
श्रुतस्क. २ चूलिका ३ भावनाध्य.
पाउसिए पारियाविए पाणाइवाइए भूओवघाइए, तहप्पगारं मणं नो पारिज्जा गमणाए, मणं परिजाणइ से निग्गंथे, जे य मणे अपावएत्ति दुच्चा मावणा २। अहावरा तच्चा भावणा-वई परिवाणइ से निग्गंथे, जा य बई पाविया सावज्जा सकिरिया जाव भूओवघाइया तहप्पगारं वई नो उच्चारिजा, जे वइं परिजाणइ से निग्गंथे, जाव वइ अपावियत्ति तच्चा भावणा ३ । अहावरा चउत्था भावणाआयाणभंड मत्तनिक्खेवणासमिए से निग्गंथे, नो अणायाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए, केवली बृयाआयाणभंडमत्तनिक्खेवणाअसमिए से निग्गंथे पाणाई भ्याई जीवाई सत्ताई अभिहणिज्जा वा जाव उद्दविज्ज वा, तम्हा आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए से निग्गंथे, नो आयाणभंडमत्तनिक्खेवणाअसमिएत्ति चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणमोइ से निग्गंथे, नो अणालोइयपाणभोयणभोई. केवली बूया-अणालोईयपाण भोयणभोई से निगंथे पाणाणि वा ४ अभिहणिज्ज वा जाव उद्दविज्ज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयण मोई से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोयणभोइत्ति पंचमा भावणा ५। एयावता महव्वए सम्मं कारण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पढमे भंते ! महव्वर पाणाइवायाओ वेरमणं २३ ॥ अहावरं दुच्चं महव्वयं पच्चक्खामि, सव्वं मुसावार्य वइदोसं, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं मासिज्जा नेवन्नेणं मुसं भासाविज्जा अन्नपि मुसं मासंतं न समणुमनिज्जा तिविहं तिविहेणं
|| ८६.॥

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