Book Title: Acharanga Sutra Satikam Part 02
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 452
________________ श्रीआचा राङ्गवृत्तिः (शीलाङ्का.) ॥ ८६४ ॥ बराच उत्था भावणा - नाइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे न पणीयरसभोयणभोई से निरगंथे, केवली बूया - अइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे पणियरसमोयण भोई संतिमेया जाव भंसिज्जा, नाहमत्तपाणभोयण भोई से निग्गंथे नो पणीयरसभोयणभोइत्ति चउत्था भावणा ४। अहावरा पंचमा भावणानो निम्गंथे इत्थी सुपंडगसंसत्ता सयणासणाई सेवित्तए सिया, केवली बूया-निम्गंथे णं इत्थीपसुपंड संसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे संतिभेया जाव भंसिज्जा, नो निग्गंथे इत्थीपसुपंड गसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा ५ । एतावया चउत्थे महव्वए सम्मं कारण फासिए जाव आराहिए यावि भवइ, चउत्थं भंते ! महव्वयं २८ । अहावरं पंचमं भंते ! महव्वयं सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि से अप्पं वा बहु वा अणु वा धूलं वा चित्तमंतमचित्तं वा नेव सयं परिग्गहं गिहिज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं गिण्हाविज्जा अन्नंपि परिग्गहं गिण्हतं न समगुजाणिज्जा जाव वोसिरामि २६ । तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवति, तत्थिमा पदमा भावणा-सोयओ णं जीवे [मन] मणुन्नाई साईं सुणेइ मणुन्नामगुन्नेर्हि सद्देहिं नो सज्जिज्जा नो रज्जिज्जा नो गिज्भेज्जा नो मुज्झि (च्छे ) ज्जानो अज्झोववज्जिज्जा नो विणिषाय मावज्जेज्जा, केवली बूया - निग्गंथे णं मन्नान्नेहिं सहिं सज्जमाणे रज्जमाणे जाव विणिघायमावज्जमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा, -न सक्का न सोउ सद्दा, सोतविसयमागया । रागदोसा उ जे श्रुतकं० २ चूलिका • ३ भावनाध्य० ॥ ८६४ ॥

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