Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० A १६१६॥ ___www.kcbatirth.org ५०-शुं साधुने पण शंका थाय छे के, तमे आम कहो छो ? उ०-संसारनी अंदर रहेला जीवोने मोहना उदयथी शुं न थाय ? ते प्रमाणे आगमां कहेलं छे. गौतमनो प्र०-हे भगवन् ! साधुनिग्रन्थो कांक्षामोहनीयकर्म वेदे छे ? सासूत्रम " अस्थि गं भंते ! समणावि निग्गंथा कंखामोहणिजे कम्मं वेदेति ? हंता अस्थि, कहन्नं ॥६१६॥ समणावि जिग्गंथा कखामोहणिज कम्म वेयंति ? गोयमा! तेसु तेसु नाणन्तरेसु चरित्त तरेसु संकिया कंखिया विइगिच्छासमावन्ना भेयसमोवन्ना कलुससमावन्ना, एवं खल्लु गोयमा! समणावि निग्गंथा कखामोहणिजे कम्मं वेदंति तत्थालंबण 'तमेव सच्च णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं' से णूगं भंते एवं मण धारेमाणे आणाए आरोहए भवति? हंता गोयमा! एवं मणं धारेमाणे आणाए आराहए भति,” उ०-हा. प्र०-केवी रीते ते वेदे छे ? उ.-तेवा तेवा ज्ञानना के, चारित्रना विषयमा न समजातां शङ्का, कांक्षा, विचिकित्सावाला बनी भेदोने पामेला न सम-1 जातां हृदयमां झंखवाणा बने छे तेथी हे गौतम ! ते ठीकछे के, साधुने पण शङ्का विगेरे थाय. For Private and Personal Use Only

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