Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम् ॥१॥ ॥६१५॥ www.kebatirth.org अने संयमनो निर्वेद न होय; अने अनिर्वेदी होय; तो आवीपण भावना भावे. जेमके-जो, हुं भव्य नही होउं तो, मने संयमभाव ४ पण नथी. के, प्रकट-(खुल्लु करीने) गुरु कहे छे तोपण, हुं समजतो नथी. आ प्रमाणे खेद पामताने आचार्य समाधिनां वचन कहे। छे के:--हे साध! खेद न कर ! तूं भव्य छे. कारण केतुं सम्यक्त्व पाम्यो छे, अने ते ग्रन्थीभेद विना न होय, अने ग्रन्थीभेद भव्यत्व विना न होय, कारण के, अभव्यने भव्य, के अभव्यपणानी शंका पण न थाय. वळी, अविरतिनो परिणाम बार कषायनो क्षय उपशम उपशम के क्षय थतांज होय छे, अने ते विरति तुं पाम्यो छे. तेथी, - दर्शनचारित्र-मोहनीयनो तारे क्षयोपशम थयो छे, नहीतो, सम्यग्दर्शन-चारित्रनी प्राप्ति न होय पण, तने कह्या छतां जो, वधा पदार्थो न समजाय; तो, ज्ञानावरणीयकर्मना उदयनुं लक्षग जाणवू त्यां तो, तारे श्रद्वारुप-पम्यक्त्व स्वीकार. ते कहे छे तमेव सच्चं नीसंकं जं जिण हिं पवेइयं (सू० १६२) ज्यां आगळ स्वसमय, परसमयना जाण आचार्य न होय; तथा, झीणी गूढ बावतोमां, अने अतींद्रिय पदार्थामा बन्ने पक्षने मान्य दृष्टांत तथा, सम्यग्हेतुना अभावथी ज्ञानावरणीयना उदयथी सम्यग्ज्ञान न होय; त्यां पण आ प्रमाणे चिंतव, के, तेज एक सत्य छे अने तेज निःशंक छे के, जिनेश्वरे कहेला अत्यंत मूक्ष्म-अतींद्रिय पदार्थो जे फक्त आगमथी मानवायोग्य छे ( ते मारे प्रमाण छे.) तथा मानवामा शंका न होय; ते निःशक्ति कहेवाय. के धर्म-अधर्म, आकाश, पुद्गळ विगेरे जे तीर्थकरे कहेलं छे, ते ४.रागद्वेषने जीतेला जिनो छे, माटे तेमनुं क हेलु सत्यज छे. आq श्रद्धान करवू. बरोबर रीते पदार्थ न समजाय; तोपण, शंका न करवी. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 186