Book Title: Abhaykumar Chopai Author(s): Dharmkirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ मार्च २००९ चौहटा माहे मोलवें सूआवडिरौ साज । पुरप्रवेश करतां थकां दीठौ श्रेणिक राज ॥३॥ अंबाडीथी उतरी पोतैं लागौ पाय । हवैं जिनशासन हेलणा एकांत रहौ आय ॥४॥ जिऊं तुहारें जोइजैं हुं सहु पूरुं हुंस । कोई जोए न कर्मसुं राजा कहैं इण हंस ||५|| हिव ते सुर परतिख हूऔ कहैं एम करजोडि । धन धन तुं सुध समकिती हवैं कुण ताहरी होड ||६|| मैं तुझ परीक्षा कारण इतरी कोध उपाधि । मोटा नरपति माहरौ ए खमजे अपराध ||७|| दीठौ दरसण देवनौ निःफल न हुवैं नेट । दुइ गोला नैं हार इक भूप भणी कीय भेट ॥८॥ ए हार जब त्रूटिस्यै मरिस्यै सांधणहार । इम कहि सुर हूऔ अदृश्य नृप आयौ गृह सार ||९|| ढाल- बीजी( सीता तौ रूपै जाणे आंबा डालें सूडीही सीता अति सौहें एहनी) अंतेवरमैं आयौ राजा धरि हरख सवायौ हो सुणिज्य सुखकारी । चेलणानैं दीयौ हार पूरौ धरि तिणसु प्यार हो Jain Education International - सुणिज्यो सुखकारी ॥१॥ दोइ गोला माटीना नंदाराणीनें दीना हो सुणि० । रीस भरी कहैं राणी मुझनैं पिउ ओछी जाणी हो सुणि० ||२|| भांड्या बिहुं भडकाई उणमाहि हूई अधिकाई हो सुणि० । एक मैं कुंडल पामैं दोइ वस्त्र भला बीजामैं हो सुणि० ॥३॥ नयणे अदभुत निरखी हलफलनैं लीधा हरखी हो सुणि० । चेलणा देखी तेह मांगें नृपसुं धरि नेह हो सुणि० ||४|| नृप कहें दीधौ किम लीजैं अधिकौ तौ लोभ न कीजैं हो सुणि० । करण नही अतिक्रोध राणी रही मन प्रतिबोध हो सुणि० ॥५॥ For Private & Personal Use Only ३१ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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