Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान ४७
मांस तली बेहुं मिली जीव० षांतिसुं बेहुं खाय करम० । पू, मा पुत्री भणी जीव० अचरिज अधिकै आय करम० ॥१८॥ बीजा दिन हूंती बहू जीव० मीठौ ला- मंस करम० । ताहरै जम्माई तणौ जीव० पग जाणे परसंस करम० ॥१९॥ वातां सुणिनैं विमासीयौ जीव० तेतौ माहरी नारि करम० । अहो चरित असती तण जीव० पामैं कोइ न पार करम० ॥२०॥ आणानै आयौ हुतौ जीव० जीवितसम हुं जाणि करम० । तिण कुसती लज्जा तजी जीव० पाड्या माहरा प्राण करम० ॥२१॥ कालौ मुंह कुनारिनौ जीव० तिहांथी पाछौ भागि करम० । सुस्थितजीरौ शिष्य हूऔ जीव० आणी मन वैराग करम० ॥२२॥ अतिभय वातां सांभरी जीव० अतिभय कह्यौ वचन्न करम० । अभय कहैं अणगारजी जीव० धन्नाजी थे धन्न करम० ॥२३॥
इति धन्ना-ऋषीश्वरसम्बन्धस्तृतीयः । दोहा
चौथौ शिष चौथें पहुर सदगुरुनी करि सेव । कहतौ मुखि भयातिभय आयौ थानक हेव ॥१॥ कर जोडी मुह तौ कहैं जोनकजी तुम्हे जाण । केही अम्ह भयातिभय इण निरभय अवसाण ॥२॥ चीता आयौ घरचरित साधु कहैं मुझ तेह ।
कहैं मुहतौ किरपा करी मुझ संभलावौ एह ॥३॥ ढाल-आठमी
(नेमिप्रभु माहरी वीनतीजी- एहनी-) वीतग एहवी वारताजी सांभलौ अभयकुमार । नयरि उज्जेणि माहे वसैंजी धनदत्तनाम विवहार ॥१॥
वीतग एहवी वारताजी-आंकणी । भामिनी तासु भद्रा भलीजी तेहनौ पुत्र हूं तेम । श्रीमती माहरी सुंदरीजी परम धरती मुझ प्रेम वीतग० ॥२॥
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