Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान ४७
उसरावण हुं हूऔ उण थकी रे ए करिनैं उपगार । तौ पिण माहरा मनमैं युं रही रे आणुं माहरी नारि मौहैं० ॥१६।। तिहांथी चाल्यौ पल्लीपति घरे रे आधी राति अंधार । मैं जाइनैं पल्लीपति मारीयौ रे पूरौ दीध प्रहार मौहैं। ॥१७॥ नारी लेनैं तिहांथी नीकल्यौ रे आयौ आपण गाम ।। माहरा कुटुंब हुती आवी मिल्यौ रे करिनैं आयौ काम मौहैं. ॥१८॥ नारि आचार इसा हुं निरखिनैं रे जाणी अथिर संसार । छता कनक नैं कामिनि छोडिनैं रे लीधौ संजमभार मौहैं० ॥१९॥ चीता आई ते मुझ वातडी रे महाभयं कह्यौ वचन्न । अभयकुमार कहैं अणगारजी रे धरमी गुरु थे धन्न मौहैं० ॥२०॥ ___ इति सुव्रतसाधुसम्बन्धः समाप्तः ।
दोहातीनैं पहुरै राति चेलौ धन्नौ नाम । गुरु सेवा करते थक हार देखि गलैं ताम ॥१॥ उपासरामैं आवतां अतिभय कहीयौ तेम । अभयकुमार कहैं तुहे कह्यौ वचन ए केम ||२|| धन्नौ कहैं धुरवारता चितमैं आई चीत ।
अभय कहैं मुझ वारता संभलावौ शुभरीति ॥३॥ ढाल-सातमी
(आज आणंदा रे- एहनी-) उज्जेणीनगरीतणे जीव जोवौ रे हुं वसुं एकण गाम करमगति जोवौ रे । जांणी तल क्षत्रियकुलैं जीव जोवो रे धन्नौ माहरौ नाम करमगति जोवौ रे ॥१॥ परण्यौ हुं धारापुरै जीव० एकदिन मनऊमाह करम० । स्त्री लेवानैं चालीयौ जीव० एकाकी असि साहि करम० ॥२॥ पुर% पास मसाणमैं जीव० सूली दीधौ चोर पाप करम० । तिण पासैं तिय रोवती जीव० रातें करें विलाप करम० ॥३॥
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