Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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मार्च २००९
आ% माहरौ पति जो पुरै रे तौ थे स्युं करौ जास । कहैं पल्लीपति अति संतोषिनैं रे तुं परही युं तास मौहैं। ॥२॥ नखरा मांड्या सांभलि नारीय रे थाहरौ एह सनेह । माह तौ थेहिज आधार छौ रे दी. थां करि देह मौहैं। ॥३॥ शय्या नीचें हुं सगलौ सुणुं रे कहैं पल्लीपति तास । इतरा वचन कह्या जे एहवा रे हुं करतौ थौ हास मौहैं० ॥४॥ ताहरौ परण्यौ पति आचैं इहां रे सही तसु करुं रे संहार । नयन संज्ञायें नारि दिखावीयौ रे मुझनै दीधी रे मार मौहैं. ||५|| नोलैं वाध्रहुती मुझ बांधिनैं रे गलीमैं दीधौ गुडाय । से0 पल्लीपति सूई रह्यौ रे नारी कंठ लगाय मौहैं० ॥६॥ सबलै वाध्र घडीकै सूकीयौ रे भाजण लागा मौर । वाध्रनी वासैं कुतरौ आवीयौ रे माहरा वखतनैं जोर मौहैं० ॥७॥ कुतरै मुखसुं बंधण कापीया रे सहु अंग हूआ सरास । अमरस तौ पिण हुं धरि अंगमैं रे पहुतौ पलीपति पास मौहैं० ॥८॥ खड्ग पलीपतिनौ कर झालिनै रे तुरत जगाई नारि । मो साथै अणबोली चलि परी रे नहीतर जाइस मारि मौहैं। ॥९॥ महिला मन विण डरती मरणसुं रे आई माह लार ।। चीरखंड नांखंती ते चलें रे अहिनाण काज विचारि मौहैं० ॥१०॥ जब पल्लीपति प्रहसम जागीयो रे नवि देखें ते नारि । वाहर चढीयो परिवारसुं रे सबल रीसैं सिरदार मौहैं। ॥११॥ सालू टुकडारा स(अ)हिनाणसुं रे वाहर पहुती आइ । मुझ घाइल करि नारी ले गयौ रे हुं करतौ हायहाय मौहैं. ॥१२॥ रीवां करतौ मोर्ने देखिनै रे आयौ वानर एक। घसि लेपी घाव ऊपरि जडी रे संरोहणी सुविवेक मौहैं. ॥१३॥ घाव समाधि हूआ माहरा सहू रे दूर हूऔ सह दुख । पूरव पुण्यतण परसादसुं रे सरी% हूऔ सुख मौहैं। ॥१४॥ टोलीसुं वानर टाल्यौ हुतौ रे वडौ हूऔ थौ औ (और) । तिणनैं मारी वानरयूथमैं रे थाप्पी मूलगी ठौर मौहैं. ॥१५॥
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