Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अनुसन्धान ४७ श्रीकीर्तिसुन्दरगणिकृत अभयकुमार चौपाई सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय खरतरगच्छीय श्रीजिनभद्रसूरिजीनी शाखामां आवता, कान्हजीना उपनामथी प्रसिद्ध एवा श्रीकीर्तिसुन्दरगणिए संवत १७५९मां जयतारणिपुर नामना गाममां श्रीजिनचन्द्रसूरिजीनी निश्रामां आ चौपाईनी रचना करी छे. आ चौपाई अद्यावधि अप्रकाशित' छे. खरतरगच्छमां आजे जे साहित्य उपलब्ध छे, तेना कर्ताओमां महाकवि जिनहर्षगणि, समयसुन्दर उपाध्याय, गुणविनय उपाध्याय, धर्मवर्द्धन उपाध्याय- आ नामो मुख्य छे. तेमांना धर्मवर्द्धन उपाध्यायजीना शिष्य कीर्तिसुन्दरगणिए आ रचना करी छे, आ ग्रन्थना कर्ता जिनभद्रसूरिजीनी परम्परामां आवता विमलकीर्तिगणि - विजयहर्षगणि - धर्मवर्द्धन उपाध्यायजीना शिष्य छे. तेओ द्वारा रचित साहित्यनी ढूंकी नोंध खरतरगच्छ साहित्यकोशना आधारे आ प्रमाणे छ : विमलकीर्तिगणि-दशवैकालिकसूत्र स्तबक, उपदेशमाला स्तबक, कल्पसूत्र टीका सामाचारी, चन्द्रदूत (मेघदूतनी पादपूर्ति), जय तिहुअण स्तोत्र बालावबोध, पदव्यवस्था बालावबोध, बारव्रत रास, यशोधर रास, श्रेणिक चौपाई, इत्यादि. विजयहर्षगणि- अढी द्वीप स्तवन, गोडी लोद्रवा पार्श्वजिन स्तवन. धर्मवर्द्धन उपाध्याय- अमरकोश टीका, जिनस्तवन चोवीशी, अमरसेन वयरसेन चौपाई, भिन्न भिन्न स्तोत्र, दृष्टान्त छत्रीसी, विशेष छत्रीसी, दम्भ क्रिया चौपाई, दशार्णभद्र चौपाई, प्रश्नमय काव्य, व्याकरणसंज्ञा स्तोत्र, समस्यामय स्तोत्र, अनेक पार्श्वनाथ स्तोत्र - इत्यादि. ___कीर्तिसुन्दर गणि- अवन्ती सुकुमाल चौढालिया, कल्पसूत्र टीका - कल्प सुबोधिका, मांकडरास, ज्ञानछत्रीसी, कौतुक पच्चीसी, वाग्विलासकथा संग्रह, फलोधी पार्श्वनाथस्तवन - इत्यादि. १. महो० विनयसागरजी सम्पादित - खरतरगच्छ साहित्यकोश. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ २७ ___ आ चौपाईना अन्ते प्रशस्ति छे. तेमां साधुकीर्ति अने साधुसुन्दर एम बे नाम आवे छे. तेओ श्रीजिनभद्रसूरिनी शाखामां पद्ममेरु-मतिवर्द्धन-मेरुतिलकदयाकलश-अमरमाणिक्य- तेमना शिष्य साधुकीर्तिगणि छे. तेमना शिष्य साधुसुन्दर छे. तेमां साधुकीर्तिगणिए संघपट्टक उपर अवचूरि (प्राकृत शब्दोना समसंस्कृत शब्दोना संग्रहस्वरूप) तेमज सत्तरभेदी पूजा रची छे. ज्यारे साधु सुन्दर गणिए उक्तिरत्नाकर, धातुपाठ उपर धातुरलाकर, जेसलमेर दुर्गस्थ पार्श्वनाथ स्तुति इत्यादिनी रचना करी छे. __आ चौपाई राजस्थानी भाषामां छे. चौपाईमां १२ ढालो छे. तत्र १ ढाल-२२ गाथा, २-२५, ३-१७, ४-३२, ५-२९, ६-२०, ७-२६, ८-२१, ९१९, १०-२०, ११-१६, १२-१५ - एम २६६ गाथा छे. आ ढाल केवी रीते गाई शकाय तेनी जाण माटे ग्रन्थकर्ताए जूनीप्रचलित देशी ढालनी प्रथम पंक्ति मूकी छे. आना उपरथी ग्रन्थकर्ता संगीतशास्त्रना जाणकार तेमज साहित्यरसिक हशे एवं अनुमान करी शकाय छे. आ चौपाईमां शिवमुनि, सुव्रतमुनि, धनमुनि, जोनकमुनि तेमज अभयकुमारर्नु संक्षिप्त जीवन दर्शन करवामां आव्युं छे. तत्र प्रथम ढाल- श्रेणिकमहाराजा भगवंतने पोतानी गति विषयक प्रश्न पूछे छे. तेना जवाबमां वीरप्रभु श्रेणिकराजाने नरकगति, तेना निवारणरूप कपिलादासी दान आपे, कालसौकरिक पाडानो वध न करे - एम जणावे छे. त्यारबाद भावि प्रथम तीर्थंकर थशे- इत्यादि वर्णन करायुं छे. द्वितीय ढाल- श्रेणिक महाराजाना समकितनी परीक्षा माटे देव गर्भवती साध्वीजी- रूप धारण करे छे, छतां पण श्रेणिकराजा वन्दन करे छे. देव प्रत्यक्ष थई २ गोला अने एक हार भेट रूपे आपे छे. श्रेणिकराजा चेलणादेवीने हार अने सुनन्दादेवीने २ गोला भेट आपे छे - इत्यादि वर्णन छे. त्रीजी ढाल- राजा अभयकुमारने आदेश करे छे- चेलणादेवीना खोवायेला हारने सात दिवसमां शोधी लाव अन्यथा सजा थशे. तपास करवा छतां हार मळतो नथी. अन्ते सातमा दिवसे आठम होवाथी पौषध करे छे. ध्यानस्थ सुस्थितसूरिजीना कंठे हार देखी शिवमुनिना मुखमांथी 'भय' एवं वचन नीकले छे. - इत्यादि. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अनुसन्धान ४७ चोथी ढाल - अभयकुमारना आग्रहथी शिवमुनि 'भय' वचन बोलवाना सन्दर्भमां पोताना जीवनवृत्तान्त रूप शिव अने शिवदत्त नामना बे बन्धुओनुं कथानक जणावे छे. धनधी थता अनर्थो देखाडी संवेगपूर्वक दीक्षा अंगीकार करी इत्यादि. पांचमी - छठ्ठी ढाल - बीजा प्रहरमां सेवा करवा आवेल सुव्रतमुनि पण गुरुजीना कंठे हार देखी भयभीत बने छे. तेमना मुखमांथी सहसा 'महाभय' एवं वचन सरी पडे छे. अभयकुमारना पूछ्वाथी सुव्रतमुनि पोतानी कथा वर्णवे छे. आमां विशेषतः स्त्रीना कुटिल चरित्रनी वात छे. सातमी ढाल - सूरिजीना कंठे हार देखी धनमुनिना मुखेथी 'अतिभय' शब्द बोलाय छे. तेना सम्बन्धमां स्वजीवनकथा कहे छे. अन्ते अविश्वसनीय अने निन्दनीय स्त्रीव्यवहार जाणी संयम ग्रहण करे छे. आठमी-नवमी ढाल - चतुर्थप्रहरे सेवा करवा आवेल जोनकमुनि सूरिजीना कंठे हार देखी व्याकुल बनी जाय छे। अने 'भयातिभय' एम बोले छे. तेना अनुसन्धानमां श्रीमती नामनी पोतानी स्त्रीनं दुश्चरित जणावे छे. दशमी ढाल - अभयकुमार प्रभाते पौषध पारी सुस्थितसूरिजीने वन्दन करवा जाय छे. हार देखी विचारे छे के पौषधना प्रतापे ज हार मळ्यो. खुश थता थता श्रेणिकराजाने ते हार सोंपे छे. अग्यारमी ढाल - श्रेणिकराजा अभयकुमारने दीक्षानी रजा नथी आपता. अभयकुमारना आग्रहथी राजा कहे छे- जे दिवसे हुं कहुं के जा, जा तारुं मोढुं न बतावीश, त्यारे मारी अनुमति समजी लेजे. एक दिवस भयानक ठंडीना दिवसोमां कायोत्सर्गध्याने रहेला मुनि याद आवतां मध्यरात्रिए चेलणादेवीना मुखेथी 'तेमनुं शुं धतुं हशे' एवं वचन बोलायुं श्रेणिकराजाने शंका थई, क्रोधना आवेशमां अभयकुमारने आदेश कर्यो- हमणां ज अन्तेपुर बाळी नाख, इत्यादि वर्णन छे. बारमी ढाल - अभयकुमार दीक्षा ग्रहण करे छे. सुनन्दा पण संयम ले छे. इत्यादि चर्चा साथै अन्ते प्रशस्ति छे. वि.सं. १००५मां 'जम्बू' मुनि थया हता. तेओए रचेल 'मणिपति राजर्षि' नामनो ग्रन्थ आजे पण उपलब्ध छे. तेमां Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ आ पांच मुनिओना कथानक प्राप्त थाय छे. आ प्रति प.पू.आ.श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजीनी संगृहीत हस्तप्रतोमाथी प्राप्त थई छे. ॥०॥ उपाध्यायश्रीधर्मवर्द्धनगुरुभ्यो नमः ॥ जगगुरु प्रणमुं वीरजिन अधिक भाव मन आणि । सुपसाय जिणरै सहू वंछित चढ़े प्रमाण ॥१॥ गुण साधांरा गावतां कर्मनिर्जरा होइ । सुणतां समकित सुध हुवै कहुं कथानक सोइ ॥२॥ सह सुबुधी-सिरसेहरौ अधिक कीया उपगार । कीरति अभयकुमाररी सह जाणे संसार |॥३॥ तसु संबंध संखेपसुं अवर च्यार अणगार । शिव १ सुव्रत २ धन ३ जोनक ४जु एहना कहुं अधिकार ॥४॥ ढाल-१ मगधदेश श्रेणिकभूपाल एहनीएणहिजे जंबूदीपैं जाण भरतखेत परसिद्ध प्रमाण । मगधदेश तिणमाहे मुर्दै अधिकौ अधिकौ दिन दिन उदै ॥१॥ तिहां कुशाग्रपुर पाटण नाम श्रेणिकराजा बहुगुणधाम । तसु सुत मंत्री अभयकुमार न्यायवंत सहुजन सुखकार ॥२॥ इण अवसर रहतां आणंद समवसर्या श्रीवीरजिणंद । आडंबरसुं श्रेणिकराय वांदण चाल्यौ प्रभुना पाह्य ||३|| समवसरण जाणे ऊगा सूर प्रातीहारिज आठ पहूर । साचवें पंचाभिगमन सार तीन प्रदक्षिण 3 तिणवार ॥४॥ बैंठौ भूप यथायोग्य देखि जिनवर 3 उपदेश विशेष । गति आगतिना चल्या अधिकार श्रेणिक पूछ निज भवपार ।।५।। स्वामी मूझ वीनति सरदहौ किण गति हुँ जास्युं ते कहौ । भाखें उत्तर श्रीभगवान पामिसि प्रथम नरक दुःखखानि ॥६॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अनुसन्धान ४७ राजा कहैं हुं सेवक सुद्ध नरक पर्दू नही सौ कहौ विद्ध । कहैं भगवंत निकाचितकर्म न हुवै किणही भारौं नर्म ॥७॥ आउबंध को मेटैं नही प्रथम नरक तिण जाइस सही । श्रेणिक वलि कहैं वीनति धरौ नरक न जाउं सो विद्ध करौ ।।८।। कहैं जिन, राजा सुणहु निदान दासी कपिला जो 3 दान । कालकसूकरीयौ मनरसैं भैंसा मारै नही पांचवें ॥९॥ ए , नरकनिषेधउपाय वांदीनें घरि आयौ राय । कपिलानैं कह दे तु दान माह छै बहुला धनधान ॥१०॥ ते बोलें मरणौ ही सही मैं निज हाथे देवौ नही । कर चाटू बंधायौ तीर्थं कहैं हुं न दीयुं चाटू दीयें ॥११।। नृप कहैं सुणि कालकसूरीया पापैं पेट घणुं पूरीया । भैंसौ हिव मत मारे कोय ते कहैं ए वातां किम होय ॥१२॥ वास्यौ न रहैं सीच्यौ कूप मनसुं मारे धरै सरूप । श्रेणिक वीर वले वांदीया कह्या तुहारा दोउं कीया ॥१३॥ दानदयाविध सगली लही केवलीए सहु वातां कही । सुणि श्रेणिक हूऔ दिलगीर वलि तेह. संतोषै वीर ॥१४॥ पहिली नरक थकी नीकली मो सरिखौ जिन थाइस रली । पदमनाभ पहिलौ जिन हुसी श्रेणिक सांभलि हूऔ खुसी ॥१५॥ जिन वांदी पुर आचैं जिसैं दीठौ सरवर पासैं तिसैं । साधुवेस. हाथे जाल का माछलीयां तिण काल ॥१६॥ कहैं तेहनें नृप प्रणमी पाय जिनशासन इण कर्म लजाय । साधु कहैं तडकीनैं वली जोई0 मुझ इक कांबली ॥१७॥ जाण्या तो सरिखा जजमान निंद घणीनैं थोडौ दान । नृप मीठे वचने सतकार कांबलि दीधी समकितधार |॥१८॥ दोहादेव विमासँ दिल्लमैं कोध परीक्षा कर्म । डिग्गायौ पिण ना डिग्यौ धन राजा दृढधर्म ॥१॥ एक परीक्षा वलि करुं नृपति चुकावं नेट । साधु संघारौं साधवी पूरे मासे पेट ।।२।। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ चौहटा माहे मोलवें सूआवडिरौ साज । पुरप्रवेश करतां थकां दीठौ श्रेणिक राज ॥३॥ अंबाडीथी उतरी पोतैं लागौ पाय । हवैं जिनशासन हेलणा एकांत रहौ आय ॥४॥ जिऊं तुहारें जोइजैं हुं सहु पूरुं हुंस । कोई जोए न कर्मसुं राजा कहैं इण हंस ||५|| हिव ते सुर परतिख हूऔ कहैं एम करजोडि । धन धन तुं सुध समकिती हवैं कुण ताहरी होड ||६|| मैं तुझ परीक्षा कारण इतरी कोध उपाधि । मोटा नरपति माहरौ ए खमजे अपराध ||७|| दीठौ दरसण देवनौ निःफल न हुवैं नेट । दुइ गोला नैं हार इक भूप भणी कीय भेट ॥८॥ ए हार जब त्रूटिस्यै मरिस्यै सांधणहार । इम कहि सुर हूऔ अदृश्य नृप आयौ गृह सार ||९|| ढाल- बीजी( सीता तौ रूपै जाणे आंबा डालें सूडीही सीता अति सौहें एहनी) अंतेवरमैं आयौ राजा धरि हरख सवायौ हो सुणिज्य सुखकारी । चेलणानैं दीयौ हार पूरौ धरि तिणसु प्यार हो - सुणिज्यो सुखकारी ॥१॥ दोइ गोला माटीना नंदाराणीनें दीना हो सुणि० । रीस भरी कहैं राणी मुझनैं पिउ ओछी जाणी हो सुणि० ||२|| भांड्या बिहुं भडकाई उणमाहि हूई अधिकाई हो सुणि० । एक मैं कुंडल पामैं दोइ वस्त्र भला बीजामैं हो सुणि० ॥३॥ नयणे अदभुत निरखी हलफलनैं लीधा हरखी हो सुणि० । चेलणा देखी तेह मांगें नृपसुं धरि नेह हो सुणि० ||४|| नृप कहें दीधौ किम लीजैं अधिकौ तौ लोभ न कीजैं हो सुणि० । करण नही अतिक्रोध राणी रही मन प्रतिबोध हो सुणि० ॥५॥ ३१ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ४७ हरखें पहिरै हार सुंदर सजनी सिणगार हो सुणि० । राजानौ मन रं0 गुण अधिकी. कुण गंजें हो सुणि० ॥६|| इक दिन तूटौ हार मृत पामैं सांधणहार हो सुणि० । राजा पहड दिरावैं सां) ते लख धन पावें हो सुणि० ॥७॥ वात सुणी मणिहारै मन माहे एम विचारै हो सुणि० । हुँ निरधन वृद्ध देह परिवारनैं भूख अछेह हो सुणि० ॥८॥ लाख दर बक्षौ होई तौ मूंआं दुख नही कोई हो सुणि० । जीवित माहरौ जासी पिण पाछला सोहरा थासी हो सुणि० ॥९॥ अधलख पहिली लीधौ ते हार सांधी. लीधौ हो सुणि० । तिण वेला ते मूऔ तिणहिज पुर वानर हूऔ हो सुणि० ॥१०॥ फिरतौ निज घर आयौ तिहां जातीस्मरण पायौ हो सुणि० ।। बेटा आगलि आर्दै लिखि अक्षर वात जणाऐं हो सुणि० ॥११॥ बाकी मुझ अधलाख नृप दीधौ के नही दाख हो सुणि० । सुत कहैं तुं मूऔ तात अम्ह. कुण पूछ वात हो सणि० ॥१२॥ अम्हनैं न दीयें राय करि तुहि ज कोई उपाय हो सुणि० । रूठौ वानर तेह जो₹ छलछिद्र अछेह हो सुणि० ॥१३॥ किणही विधि ल्युं हार इम चिौ लैंण प्रकार हो सुणि० । एक दिन चेलणा राणी जलक्रीडा कारण जाणी हो सुणि० ॥१४॥ खू” मूंक्यौ हार ले नाठो कपि तिण वार हो सुणि० । आणी सुतनैं दीधौ कपि आपणौ कारिज कीधौ हो सुणि० ॥१५॥ हार न ला| राणी अधिकी दिलगीरी आणी हो सुणि० । राजा खबर करावें पिण किहां ही हार न पावें हो सुणि० ॥१६॥ दोहातेडी अभयकुमार. हुकम करें नरनाह । किंहांहिक हार करौं प्रगट सात दिवसां माहि ॥१॥ नहीतौ तुं पामिसि सजा करि तुं हुकम प्रमाण । खबर करंतां नगरमैं दिन षट हूआ जाण ||२|| हार किहां लाधौ नही चिरौं अभयकुमार । आठमिरौ दिन आज , ल्युं पोसौ सुविचार ॥३॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ राज आचारिज तिहां नामैं सुस्थितसूर । च्यार शिष्य तिण रै चतुर सेवा करें सनूर ॥४॥ शिव १ सुव्रत २ धन ३ तीन ए जोनक ४ चोथौ जाण । जिनतुलना करणी करें आराधैं जिन आण ॥५॥ अठ पहुरी पोसौ अडिग कीधौ अभयकुमार । तिण अवसर तिण प्रहारनौ एह हूऔ अधिकार ॥६॥ ढाल-तीजी(चतुर सनेही मोहनां एहनी-) हिव मणिहारै जाणीयौ हार अछे मो पासो रे । अभयकुमार जौ जाणसी तौ करसी कुलनासो रे अरथसुं अनरथ ऊपजै ॥१॥ बाप वानरनैं कहैं ए ले जा हारो रे । डोकरडीरा घरमांहे सीह न माय सारो रे अरथसुं ॥२॥ भीख मांगिनै खावसां पिण हारसुं नही कामो रे । अभयकुमार जो अटकलें तौ माहरी पा. मामो रे अरथसुं० ॥३॥ वानर हार लेई चल्यौ आयौ षोषधशालो रे ।। आप आचारिज बाहिरै काउसग छै तिण कालो रे अरथसुं० ॥४॥ हार सूरिकंठें ठवी कपि पहुतौ निज ठामो रे ।। अभयकुमार पोसामाहे ध्या₹ ध्रम गुणग्रामो रे अरथसुं० ||५|| रातिसमै ससि ऊगीयौ शुभध्यानै चित राखें रे । हाररतन वलि चांदणे झिगमिग झिगमिग झाखें रे अरथसुं० ॥६॥ एक पहुर रजनी गई पहिलो शिष शिवरायो रे । करि सज्झाय गुरां कनैं वेयावचनैं आयौ रे अरथसुं० ॥७॥ गुरु काउसगमाहे रह्या कंठें निरखें हारो रे । चितमाहे अतिचमकीयौ ए विधि केण प्रकारो रे अरथसुं० ॥८॥ उपासरा मैं आवतां निसही वीसर भोलैं रे । मुनि शिवराज मुझे करी भयं वचन इम बोलै रे अरथसुं० ॥९॥ अभयकुमार सुणी कहैं क्युं गुरुजी भय केहौ रे । मो पासैं बैंठां थकां उपजैं किम भय एहो रे अरथसुं० ॥१०|| Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ४७ मुनिवर कहैं मुझ मूलगी चीता आई वातो रे । अभय कहैं मुह कनैं कहौ सो संबंध सुहातो रे अरथसुं० ॥११॥ दोहाउज्जेणीपुरमें वसां बे भाई इक चित्त । क्षत्रिय कुल निरधन घणुं नामैं सिव १ सिवदत्त २ ॥१॥ दरव-उपावण दुहुँ गया सोरठ देस मझार । हाटे विणजां गाममैं भोला जिहां नरनारि ||२|| अधिकौ ले ओछौ दीयौ वंचया सगला लोक । करि थांपणमोसा कपट रुपीया कीधा रोक ॥३॥ माहोमाहि कीयो मतो दुई भाई इकदिल्ल । कुशले घर पहुचां हि न करौ काई ढिल्ल ॥४॥ चुंप धरी. चालीया जोखौ मारग जाण । कडि बांधी नौली व. चिरौं इण अवसाण ॥५॥ आधौ तौ लेसी उरौ लघुभाई करि लाग । घात देखिनैं घाउ करि मारूं इणहिज माग ॥६॥ किणहिक गामैं आइनै वासौ वसीया रात । बीजैं दिन चाल्या बिहुं प्रगट हूआं परभात ॥७॥ वडौ कहैं लघुभ्रातर्फे सहु धन बेहुं सीर । कडीयां बांधि तुं वासणी हुइ मनमाहि सधीर ॥८॥ बांधंतां लघुभ्रात ” मनमैं उपनौ पाप । मोटौभाई मारिनैं ए सहु धन ल्युं आप ।।९।। ढाल-चौथी (बाहूबलि चारित लीयौ रे- एहनी-) इम चीतवतां आवीयौ रे आण सरवर एक । स्नान करण बेहुं सही रे वस्त्र उतार्या विवेक सुगुण नर धन अनरथनी खाणि सुगुण नर होवें जिणथी हितहाणि सुगुण नर ए कहीया इग्यारमा प्राण Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ३५ सुगुण नर जे छोडइ तेह सुजाण चतुर नर धन अनरथनी खाणि ॥१॥ आंचली । नौली ऊंची मुंकिनँ रे सरवर तट बिहुं साथ । वडौ स्नान पहिली करै रे लघु चैं पू हाथ सगुण० धन० ॥२।। वृद्ध जाणै मैं लघु भणी रे आणी मारण बुद्धि । लघुभाई तौ माहरी रे सेव करै छै शुद्ध सुगुण० धन० ॥३।। बोल्यौ सरल मनैं करी रे सुणि माहरा लघुभ्रात । काल्हे मुझ उपजी हुती रे तुझ मारणरी वात सुगुण० धन० ॥४॥ साजन वालंभ तुं सही रे पूरव पुण्य लाध । मैं मन अनरथ आणीयौ रे तुं खमिजे अपराध सुगुण० धन० ॥५॥ मोनें पिण लहडौ कहैं रे उपनीथी मति आज । नौली कडि बांध्यां पर्छ रे कहतां आवै लाज सुगुण० धन० ॥६॥ बेहुं कहैं ए पापनौ रे मेल्यौ आंपे माल । जौ ए घरि ले जावसां रे तो होसी केई जंजालसुगुण० धन० ॥७॥ नौली नांखौ झालिने रे परही पांणी मांहि । केई दरव कमावसां रे जौ ठां कुशल उछाह सुगुण० धन० ॥८॥ कहौ ते धन किण कामरौ रे अनरथ हवैं जिण नेट । हेम छुरी हैं हाथमैं रे कोई न मारे पेट सुगुण० धन० ॥९॥ बेहुं भाई संबाहिनै रे नौली नांखी नीर ।। बाको फाडि बैंगै हुतौ रे मगरमच्छ तिहां तीर सगुण० धन० ॥१०॥ उदरमैं तिण” ऊतरी रे ते नौली तिण वार । चित चौखै बेहुं चालिनैं रे आया निज घरबार सगुण० धन० ॥११॥ माता बहिन हुती मिल्या रे हूआ हरखित प्रधान । खांड घिरत आणि खांतिसं रे प्रघल कीया पकवान सगुण० धन० ॥१२॥ हिव तिण सरवर जाय. रे धीवर नांख्यौ जाल । नौलीवालौ माछलौ रे माहि आयौ तिण काल सगुण धन० ॥१३॥ चौहाटामाहे मांडीयौ रे वेचण. तिणवार । माता तिणवेला कह रे पुत्री. धरि प्यार सगुण० धन० ॥१४॥ बेहुं बेटा कारण रे कीधा पकवान । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ४७ तुं बाजार जाइनैं रे तरकारी काई आण सगुण० धन० ॥१५| बेटी बाजारै जई रे मोल लीयौ ते मच्छ । । घरि आणी थाली विचै रे चीरणौ मांड्यो अच्छ सगुण० धन० ॥१६॥ मच्छ वनारतां वासणी रे थालीमैं पडी आय ।। हेम देखी मन हरखीयौ रे छांनी लीधी छिपाय सगुण० धन० ॥१७॥ भीति तौँहि ज आंतरै रे मा बैंठीथी माहि । सोवन खणको सांभली रे चित लेवा हूई चाहि सगुण० धन० ॥१८॥ मच्छ विदारतां माहिसु रे स्युं निकल्यौ कहि साच । पुत्रीसुं अति भडकिनैं रे बोलैं माता वाच सगुण० धन० ॥१९॥ सुता कहैं माहरै सिरै रे क्युं चैं झूठ कलंक । तब मायें बेटी तणे रे दीधौ धाव निसंक सगुण० धन० ॥२०॥ भयसुं नौली खिर पड़ी रे माताइ लीधी तेह । दोइ भाई म्हे ओलखी रे तेहज नौली एह सगुण० धन० ॥२१॥ दुख कारण धन देखिनैं रे छोडी सहु घरबार । चोखें चित चारित लीयौ रे संवेग मैं धरि सार सगुण धन० ॥२२॥ सिव मुनि अभयकुमार सुं रे कहैं इम मी साद । भयकारण धनवारता रे आई मोनें याद सुगुण० धन० ॥२३॥ इति वा० कान्हजीकृतायां चतुष्पदिकायां शिवराजमुनीश्वरकथानकं प्रथम समाप्तम् ॥ अथ सुव्रतसाधुरभयकुमारस्य पुरतः स्वप्रवृत्तिं ब्रवीति । दोहा बीज पहुर गुरां कनैं सुव्रत आयौ सीस । हार देखिनैं हलफल्यौ ए स्युं कारण ईस ||१|| पूठौ थानक पैंसतां महाभयं कहैं वाणि । अभय कहैं अणगारजी किसौ महाभय जाण ॥२॥ साधु कहैं मुझ घरतणी चीता आई वात । व्रत लीधौ जिण वास ते सुणिज्यो अवदात ॥३॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ३७ अंग देशमैं गाम इक वसुं तळं हुं वास । जाति कलंबी जर घणी नारी रूप निवास ||४|| रंगै उम्मंगै रहां हिय पूरंतां हाम 1 पल्लीपति मैं पांचसुं आयौ लुंटण गाम ॥५॥ लुंटीनै सगलौ लीयौ माहरा घररौ सार । तिण खिण चोरांनैं विटल बोली म्हारी नारि ॥६॥ जौ थे मोनें आदरौ राखौ रुडी रुस । तौ थाहरे साथै हुर्बु पूरौ म्हारी हंस ॥७॥ हुं मुझ घर . हणे छिपि बैंठो तिणवार । कामिणि जाणे किहांइकै नाठौ मुझ भरतार |८|| चोर लुंटीनैं चालीया सुंदरि लीधी साथ । लाज लगाम तड्यां पछै नारी किणरैं हाथ ॥९॥ चोरे जाण्यौ नही फवामा ए शुभ वेस । तरै जाइ कीधी तुरत पल्लीपतिनैं पेस ॥१०॥ ढाल-पांचमी (प्रीतम सुणि मोरा-एहनी-) गाम अम्हारौ फिरि वस्यौ स्त्री विण रहुं तिण ठौर रे सुणिज्यो सुखकारी। एक दुख नैं हासौ घरे लोक संता( जोर रे सुणिज्यो सुखकारी, आंकणी ॥१॥ संतावै परिजन सहू फिट फिट करें मुझ कोर रे सुणि० । नारि ही राखि सक्यो नही माणस नही तुं ढोर रे सुणि० ॥२॥ विविध वचन श्रवणे सुणी मुझ जाग्यौ अहंकार रे सुणि० । चालिनैं गाम चोरांतणे पहुतौ हुं तिणवार रे सुणि० ॥३॥ इक डोकरडीरे घरै दिन रहीयौ दुइ च्यार रे सुणि० । एक दिन मैं बूढी भणी कहीयौ घर-अधिकार रे सुणि० ॥४॥ पल्लीपति इण पुरधणी मुझ नारी तसु गेह रे सुणि० । कहि संदेसौ जाइनैं इक दीनार लैं एह रे सुणि० ॥५॥ कहिजे तुझ पति आवीयौ वात कहे तुं वणाइ रे सुणि० । बूढी पल्लीपतितणी नारीनैं कहे आइ रे सुणि० ॥६॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्थान ४७ एह वचन कहीया उठे सुंदरि थारौ सामि रे सुणि० । माह घरि आयौ अW सुव्रत जेहनौ नाम रे सुणि० ॥७॥ नीसासा नांखें अछै दुख थारै दिलगीर रे सुणि० । सगलांसुं विरतौ थको नयणे वरसैं नीर रे सुणि० ।।८।। कांइक पघली कामिणी बूढीनैं कहैं आम रे सुणि० । आज पल्लीपति चालि. जासी अलगैं गाम रे सुणि० ॥९॥ तुं पतिनैं कहि जायनैं सांझैं आज्यो अवश्य रे सुणि० । आवी न सकुं हुं उठे पडीय अर्छ परवश्य रे सुणि० ॥१०॥ मुझनैं बूढी आय. वात कही समझाय रे सुणि० । पल्लीपति चाल्यौ परौ मुह अंधारौ थाय रे सुणि० ॥११॥ नारी पार्टी हुं गयौ खरी हुई खुस्याल रे सुणिः । मोसुं प्रेम धरे मिली नजरसुं कीधी निहाल रे सुणि० ॥१२॥ दीवा कीधा दुहं दिसी मुझ बैंसाण्यौ पलिंग रे सुणि० । आU बैंठी आय चरण धोनै मुझ चंग रे सुणि० ॥१३॥ लाग जोग आयौ भलां प्रीतम जीवन प्राण रे सुणि० । हुं तुम्ह पगरी पानही बोलैं एहवी वाणि रे सुणि० ॥१४॥ केई वात इसी कही पाथरही पथलाय रे सुणि० । पल्लीपतिनैं चालतां शकुन मुंडा तिहां थाय रे सुणि० ॥१५।। पल्लीपति पूठौ वल्यौ आयौ निज घरबार रे सुणि० । खोलि किमाड कहैं खडौ पडीयौ करें पुकार रे सुणि० ॥१६॥ पल्लीपति फिरि आवीयौ कामिणि कहैं मुझ आय रे सुणिः । हुं बोल्यौ मुझनें परौ छानी ठाम छिपाय रे सुणि० ॥१७॥ पलिंग नीचें घालीयौ खाट पछेडौ संबाहि रे सुणि० । अंगना बार ऊघाडीयौ आयौ पलीपति माहि रे सुणि० ॥१८॥ ढाल- छठी(करम परीक्षाकरण कुमर चल्यौ रे- एहनी-) पल्लीपतिनैं कहैं माहरी पिया रे वारू नेहरी वाहत (वात) थां आयां विण क्युं करि जावती रे खट मासां सम राति मौहैं मातौ युं करें मानवी रे ॥१॥ आंकणी Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ आ% माहरौ पति जो पुरै रे तौ थे स्युं करौ जास । कहैं पल्लीपति अति संतोषिनैं रे तुं परही युं तास मौहैं। ॥२॥ नखरा मांड्या सांभलि नारीय रे थाहरौ एह सनेह । माह तौ थेहिज आधार छौ रे दी. थां करि देह मौहैं। ॥३॥ शय्या नीचें हुं सगलौ सुणुं रे कहैं पल्लीपति तास । इतरा वचन कह्या जे एहवा रे हुं करतौ थौ हास मौहैं० ॥४॥ ताहरौ परण्यौ पति आचैं इहां रे सही तसु करुं रे संहार । नयन संज्ञायें नारि दिखावीयौ रे मुझनै दीधी रे मार मौहैं. ||५|| नोलैं वाध्रहुती मुझ बांधिनैं रे गलीमैं दीधौ गुडाय । से0 पल्लीपति सूई रह्यौ रे नारी कंठ लगाय मौहैं० ॥६॥ सबलै वाध्र घडीकै सूकीयौ रे भाजण लागा मौर । वाध्रनी वासैं कुतरौ आवीयौ रे माहरा वखतनैं जोर मौहैं० ॥७॥ कुतरै मुखसुं बंधण कापीया रे सहु अंग हूआ सरास । अमरस तौ पिण हुं धरि अंगमैं रे पहुतौ पलीपति पास मौहैं० ॥८॥ खड्ग पलीपतिनौ कर झालिनै रे तुरत जगाई नारि । मो साथै अणबोली चलि परी रे नहीतर जाइस मारि मौहैं। ॥९॥ महिला मन विण डरती मरणसुं रे आई माह लार ।। चीरखंड नांखंती ते चलें रे अहिनाण काज विचारि मौहैं० ॥१०॥ जब पल्लीपति प्रहसम जागीयो रे नवि देखें ते नारि । वाहर चढीयो परिवारसुं रे सबल रीसैं सिरदार मौहैं। ॥११॥ सालू टुकडारा स(अ)हिनाणसुं रे वाहर पहुती आइ । मुझ घाइल करि नारी ले गयौ रे हुं करतौ हायहाय मौहैं. ॥१२॥ रीवां करतौ मोर्ने देखिनै रे आयौ वानर एक। घसि लेपी घाव ऊपरि जडी रे संरोहणी सुविवेक मौहैं. ॥१३॥ घाव समाधि हूआ माहरा सहू रे दूर हूऔ सह दुख । पूरव पुण्यतण परसादसुं रे सरी% हूऔ सुख मौहैं। ॥१४॥ टोलीसुं वानर टाल्यौ हुतौ रे वडौ हूऔ थौ औ (और) । तिणनैं मारी वानरयूथमैं रे थाप्पी मूलगी ठौर मौहैं. ॥१५॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० अनुसन्धान ४७ उसरावण हुं हूऔ उण थकी रे ए करिनैं उपगार । तौ पिण माहरा मनमैं युं रही रे आणुं माहरी नारि मौहैं० ॥१६।। तिहांथी चाल्यौ पल्लीपति घरे रे आधी राति अंधार । मैं जाइनैं पल्लीपति मारीयौ रे पूरौ दीध प्रहार मौहैं। ॥१७॥ नारी लेनैं तिहांथी नीकल्यौ रे आयौ आपण गाम ।। माहरा कुटुंब हुती आवी मिल्यौ रे करिनैं आयौ काम मौहैं. ॥१८॥ नारि आचार इसा हुं निरखिनैं रे जाणी अथिर संसार । छता कनक नैं कामिनि छोडिनैं रे लीधौ संजमभार मौहैं० ॥१९॥ चीता आई ते मुझ वातडी रे महाभयं कह्यौ वचन्न । अभयकुमार कहैं अणगारजी रे धरमी गुरु थे धन्न मौहैं० ॥२०॥ ___ इति सुव्रतसाधुसम्बन्धः समाप्तः । दोहातीनैं पहुरै राति चेलौ धन्नौ नाम । गुरु सेवा करते थक हार देखि गलैं ताम ॥१॥ उपासरामैं आवतां अतिभय कहीयौ तेम । अभयकुमार कहैं तुहे कह्यौ वचन ए केम ||२|| धन्नौ कहैं धुरवारता चितमैं आई चीत । अभय कहैं मुझ वारता संभलावौ शुभरीति ॥३॥ ढाल-सातमी (आज आणंदा रे- एहनी-) उज्जेणीनगरीतणे जीव जोवौ रे हुं वसुं एकण गाम करमगति जोवौ रे । जांणी तल क्षत्रियकुलैं जीव जोवो रे धन्नौ माहरौ नाम करमगति जोवौ रे ॥१॥ परण्यौ हुं धारापुरै जीव० एकदिन मनऊमाह करम० । स्त्री लेवानैं चालीयौ जीव० एकाकी असि साहि करम० ॥२॥ पुर% पास मसाणमैं जीव० सूली दीधौ चोर पाप करम० । तिण पासैं तिय रोवती जीव० रातें करें विलाप करम० ॥३॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ मैं पूछ्यौ तुं मानिनी जीव० रोवैं क्युं ढांकी मुख करम० । ते कहैं कहीयै तिण कन्हें जीव० जे वंटावैं दुख करम० ॥४॥ मैं कह्यौ हुं तुझ दुख हरुं जीव० दिल सुध धीरज दीध करम० । नारि कहें पति माहरें जीव० काइक चोरी कीध करम० ||५|| कोटवालेँ पकडी करी जीव० दीधौ सूली एह करम० । भोजन ल्याई हुं इण भणी जीव० नारी धरिनैं नेह करम० ||६|| अति ऊंचौ मुख एहनौ जीव० आपड न सकुं आप करम० । दे न सकुं मुखि कौलीयौ जीव० तिण हुं करूं विलाप करम० ॥७॥ कंध चढाव कृपा करी जीव० कवल देवानें काज करम० । तुम ऊंचा मत ताकिज्यो जीव० मोनैं आवैं लाज करम० ॥८॥ तजी खड्ग मैं तेहनैं जीव० मैं ऊपाडी कंध करम० । तिण वेला हूऔ तिहां जीव० सुणिज्यो ते संबंध करम० ||९|| मो ऊपरि टछकौ पडयौ जीव० ताक्यौ ऊपरि ताम करम० । काटि काटि तसु कालिजौ जीव० खाती दीठी वाम करम० ॥ १० ॥ पटकी मैं तेहनैं परी जीव० नाठौ तिहांथी नीठ करम० । ते असि ले उतावली जीव० पडीज माहरें पीठ करम० ||११|| नगर दिसी आयौ निसें जीव० जीव सबल जंजाल करम० । दरवाजा आडा दीया जीव० पैंठौ हुं पुरनैं पाल करम० ॥ १२॥ उण वेला ते आपडी जीव० कीधौ मुझनैं घाव करम० क्रोधणि तिण काटी लीयौ जीव० पूठा सेती पाव करम० ||१३|| गृह पोता ते गई जीव० टली मरण मुझ घात करम० । साचोवायें देहरें जीव० रहीयौ हुं तिहां रात करम० ||१४|| इकतारी हुं आणि जीव० रहीयौ ध्यान विलग्गि करम० । देवें परतख होइनैं जीव० साजौ कीधौ पग्ग करम० ||१५|| तिहांथी ऊठी सासरें जीव० आयौ पाछिली राति करम० । बैंठी जाडिनैं बारणौ जीव० करें माहि केई वात करम० ॥१६॥ ताकी जोयौ में तिहां जीव० दीसैं दीपक जोति करम० । माहे मुझ सासू वहू जीव० हरखें वातां होत करम० ||१७|| ४१ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 अनुसन्धान ४७ मांस तली बेहुं मिली जीव० षांतिसुं बेहुं खाय करम० । पू, मा पुत्री भणी जीव० अचरिज अधिकै आय करम० ॥१८॥ बीजा दिन हूंती बहू जीव० मीठौ ला- मंस करम० । ताहरै जम्माई तणौ जीव० पग जाणे परसंस करम० ॥१९॥ वातां सुणिनैं विमासीयौ जीव० तेतौ माहरी नारि करम० । अहो चरित असती तण जीव० पामैं कोइ न पार करम० ॥२०॥ आणानै आयौ हुतौ जीव० जीवितसम हुं जाणि करम० । तिण कुसती लज्जा तजी जीव० पाड्या माहरा प्राण करम० ॥२१॥ कालौ मुंह कुनारिनौ जीव० तिहांथी पाछौ भागि करम० । सुस्थितजीरौ शिष्य हूऔ जीव० आणी मन वैराग करम० ॥२२॥ अतिभय वातां सांभरी जीव० अतिभय कह्यौ वचन्न करम० । अभय कहैं अणगारजी जीव० धन्नाजी थे धन्न करम० ॥२३॥ इति धन्ना-ऋषीश्वरसम्बन्धस्तृतीयः । दोहा चौथौ शिष चौथें पहुर सदगुरुनी करि सेव । कहतौ मुखि भयातिभय आयौ थानक हेव ॥१॥ कर जोडी मुह तौ कहैं जोनकजी तुम्हे जाण । केही अम्ह भयातिभय इण निरभय अवसाण ॥२॥ चीता आयौ घरचरित साधु कहैं मुझ तेह । कहैं मुहतौ किरपा करी मुझ संभलावौ एह ॥३॥ ढाल-आठमी (नेमिप्रभु माहरी वीनतीजी- एहनी-) वीतग एहवी वारताजी सांभलौ अभयकुमार । नयरि उज्जेणि माहे वसैंजी धनदत्तनाम विवहार ॥१॥ वीतग एहवी वारताजी-आंकणी । भामिनी तासु भद्रा भलीजी तेहनौ पुत्र हूं तेम । श्रीमती माहरी सुंदरीजी परम धरती मुझ प्रेम वीतग० ॥२॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ पाउ मुझ धोई पाणी पीयेंजी निपट कपट धरै नेह । मानिनी ते कहैं माहरैंजी अधिक मन हुंस एह वीतग० ॥३॥ चमरजातीय मृगपुंछनाजी मांस खावा मुझ हंस ।। मैं कह्यौ ते किहां पामी3जी हाथ आ3 किण रुंस वीतग० ॥४॥ नारि कहैं राजगृह नगरी3जी श्रेणिकरायनैं गेह । जाइ आणौ तुम्हे जुगतिसुंजी अरज मानौ मुझ एह वीतग० ||५|| आवीयौ हुई उतावलौजी राजगृहनगर आराम । रंगसुं वेसीया तिहां रमैंजी मगधसेना तसु नाम वीतग० ॥६॥ एक विद्याधर आइनैंजी अपहरी ले गयौ वेस । करें तब परिजन कुंकवाजी ऊपनौ एह कलेस वीतग० ॥७।। तांणि सर वीधीयौ मैं तिकोजी मगधसेना तजी तेण । आइनैं ल्यै मझ वारणाजी हं तुझ पगतणी रेणु वीतग० ॥८॥ गिणि उपगार गणिका तिर्णैजी ले गई मुझ भणी गेह । मुझ भणी पूछीयौ पूठलौजी सरव संबंध ससनेह वीतग० ॥९॥ मैं कह्यौ सरल चित्रौं सहूजी अटकल्या तेण आचार । कपट केलवि करि काढियौजी सील विण ताहरी नारि वीतग० ॥१०॥ मैं कह्यौ माहरी मानिनीजी पतिभगती बहु प्रेम । ते कहैं जो सती हैं हि त जी काढीयौ पति भणी केम वीतग० ॥१॥ इक दिनैं तिहां रहतां थकांजी नगर कोलाहल होइ । मस्तमातंग छूटौ तिकोजी झालि सकें नही कोइ वीतग० ॥१२॥ तुरत मैं कबज कीधौ तिकोजी जस हूऔ माहरौ जोर । हुँ रहुं हरखि गणिका घरेजी नित करें भगति निहोर वीतग० ॥१३।। वेस कहैं आज नृप आगलैंजी नाटक करिस मनरंग । तुम्ह पिण बैंसि देखौ तिहांजी आय. राय. संग वीतग० ॥१४॥ मैं कह्यौ हुं नही आवसुंजी ते गई नाटक काज | मैं जाण्यौ माह कांमरौजी एह अवसाण छै आज वीतग० ॥१५॥ नाटक देखिया सह गयाजी भूपनैं गृह नही कोइ । हरिणनौ पुच्छ हरतां थकांजी देखता था जणा दोइ वीतग० ॥१६।। तिण पुरुषे मुझ झालिनँजी आणीयौ राज हजूर । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अनुसन्धान ४७ नाटकरस रखे भंग हैं जी मुझ बैसाणीयौ दूर वीतग० ||१७|| वेसीया तुरत मुझ अटकल्यौजी एह तौ माहरौ मीत । रायमन कहि विधि रीझवीजी छोडवुं तौ मुझ प्रीति वीतग० ॥ १७॥ दोहा - वेस विविध करि वेसीया हावभाव करि हित्त । राजादिक सहु रंजीया चंपकलो हैं चित्त ||१|| नृपति कहैं पुरनायिका हुं रंज्यौ लयलीन । जिके ताहरैं जोई मांगि वसत तुं तीन ॥२॥ मांगें गणिका प्रीतिमन इक पहिलौ वर एह । मांस लीयौ मृगपुच्छनौ तुरत छुडावौ तेह ||३|| वर बीर्जे मुझ एह वर नही बीजासुं काम । त्रीजी वर इण चालतां सार्थं जास्युं साम ||४|| वर दीधा तीने नृपति नाटक परौ निवेडि । वेश्या आई निज घरे मुझर्ने साथै तेडि ॥५॥ ढाल- नवमी ( नायक मोह नचावीयौ- एहनी-) कपटवती ते कामिनी चितमैं आई चीतो रे । गणिका कहैं तुझ नारिनी चालि दिखावुं रीतो रे ||१|| कपटवती ते कामिनी- आंकणी | आवी उतरीया अम्हे उज्जेणी आरामो रे । रातैं हाथे खड्ग ले हुं आयौ निज धामो रे कपट० ॥२॥ ऊपरवार्डे ऊतरी पैंठौ मंदिर माहे रे । मुझ नारी परपुरुषसुं सूती दीठी बेहु रे कपट० ॥३॥ नही य खबरि का नीदमें मैं हणीयौ ते जारो रे । छानौ तिहांथी नीकली आयै बाग मझारो रे कपट० ||४|| जागी पापिणि जोईयौ मार्यौ किण मुझ मीतो रे । काम नही कुंक्यांतणौ निंदा हुवें अनीतो रे कपट० ॥५॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ खाड खाणीनैं गाडीयौ रंधाणी. पासो रे । ऊपर कीधौ ओटलौ नांखें पडी नीसासो रे कपट० ॥६॥ मैं आवी गणिका भणी कह्यौ सगलौ अधिकारो रे । वेश्या कहैं माहरौ कह्यौ साच हूऔ सुविचारो रे कपट० ।।७।। पूठौ आयौ प्रेमसुं राजगृही पुर ठामो रे । रंगैं वेश्याएँ रहुं करूं कुतूहल कामो रे कपट० ॥८॥ मातपिता मोहसु आयौ वलि उज्जेणो रे । मन सूधैं सगला मिल्या हुआ अति हरखेणो रे कपट० ॥९॥ रातें सूणहरै आयौ निपटज हरखी नारो रे । अति मौडा क्युं आवीया हुं बोल्यौ तिण वारो रे कपट० ॥१०॥ कारण मैं जोईयो मांस किहांई न लद्धो रे । काम सर्या विण तुझ कनैं आयौ नेह विलुद्धो रे कपट० ॥११॥ मन ऊपर लैं माहरी सरव करें , सेवो रे । चूल्हा पासैं चौतरौ दिल सुध तेहिज देवौ रे कपट० ॥१२।। वस्त जिकाई वापरै घरमाहे फलफलो रे । पहिली तिणनैं चाढिनैं खांणी पळे कछूलो रे कपट० ॥१३॥ चरित देखि में चीतव्यौ देखें इण रौष्यालो रे । वसत भली वपरांबता पहिली राखं पालो रे कपट० ||१४|| दोहा मैं कहीयौ सुणि मानिनी हुई घेवर हंस । मुझथी पहिली किणहिनैं देइस तौ तुझ सुंस ॥१॥ कर जोडी मोसुं कहैं नेह ऊपरि लैं नारि । मोहरै तौ मन सुद्धसुं भलौ तिको भरतार ॥२॥ घेवर छांटें ते घरणि हुं पिण बैंठौ पास । थाली लेइ घडा कनैं ताकुं घेवर तास ॥३॥ ऊंन्ही घेवर उतर्या मैं कहीयौ मुझ मेलि । बोलैं हाथ बली बली घडा ऊपरि ठेलि ॥४|| Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ अनुसन्धान ४७ मान्यौ बैंण न माहरौ केही हठ कुनारि । चाढ्यौ पहिली चौतरै गाड्यौ छै कोई जार ॥५॥ चंडी सुणि रीसैं चढी हुं पिण नाठौ ऊठि । ऊकलतौ घृत लेहरौ नांख्यौ माह पूठि ॥६॥ मातपिता घरि हुँ गयौ दाधी माहरी देह । अधिकै हेत उपाय करि सज्ज कीयौ ससनेह ॥७॥ मैं दीठा महिलातणा एहा चरित अनेक । वैरागैं मन वालिनै व्रत लीधौ सुविवेक ॥८॥ चीता आई ते दशा मांने तुं मंत्रीस । भणीयौ तेण भयातिभय कारण विसवावीस ॥९॥ ढाल-दशमी (मनगमतौ साहिब मिल्यौ- एहनी-) संबंध च्यारांरा सुण्या धरतां इम ध्रमध्यानो रे । परभातें हिव पारीयो पोसौ अभयप्रधानो रे ॥१॥ उपासरासुं ऊठिनैं आयौ अभयकुमारो रे । आचारिजनैं वंदतां कंठें दीठौ हारो रे पुण्य० ॥२॥ धन आचारिज शिष्य धन लोभ न धरै लिगारो रे । तृणमणि सिरखा तेव? एहनौ धन अवतारो रे पुण्य० ॥३॥ पोसाना परतापथी मैं पिण लाधौ हारो रे ।। सहु. धरम फलैं सही आण जो इकतारो रे पुण्य० ॥४॥ दिल सुध सांभलि देसना ते दिन सत्तम जाणी रे । हार दीयौ श्रेणिक भणी अभयकुमार आणी रे पुण्य० ॥५॥ चित हरखी अति चेलणा हाथे आयौ हारो रे । बुद्धिई अभयकुमार री सोभा कहैं संसारो रे पुण्य० ॥६॥ इक दिन अभयकुमारनें कहैं श्रेणिक महाराजो रे । सहु पुत्रोमैं सकज(?) तुं लैं हिव माहरौ राजो रे पुण्य० ॥७॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ४७ हिव श्रेणिक राजा भणी बोलैं अभयकुमारो रे । मो आज श्रीवीरजी युं कहीऔ निरधारो रे पुण्य० ॥८॥ चरम उदायन राजऋषि दीक्षा लोधी सारो रे । आज पछै नृप को नही लेस्य संजमभारो रे पुण्य० ॥९॥ राज न ल्यु तिण वास” तुझ वैराण मन्नो रे । आपौ मौनै आगन्या ज्युं चारित ल्युं तन्नो रे पुण्य० ॥१०॥ राजा कहैं जीवां अम्हे वसि तां लगि घरवासो रे । नयणे तुझ निहालतां अम्ह अति होइ उलासो रे पुण्य० ॥१॥ दोहाकुमर कहैं सुणि तातजी ए माहरी अरदास । दीक्षा हुम्कम किणे दिनै देख्यै ते परकास ॥१॥ राजा कहैं हुँ जिण दिनैं जा जा कहि द्यु सीष । ते अनुमति जाणी करी तिण दिन लेजे दीख ॥२॥ अभय विचारै एहवौ देखें कोई दाव । हिव जोड्यौ ते किणविधैं पामैं व्रत प्रस्ताव ॥३|| ढाल-इग्यारमी(गोठलस (सोरठ?) देसे सेव॒मैं हाली घरथी इक छकडन घाली रे गोठ० एहनी-) चित चौखें चेलणा राणी जिनधरमिणि जग सहु जाणी रे चित० तिण समय अनैं तिण कालैं सबलौ पडै शीत सीयालै रे चित० ॥१॥ पडतें अतिसबलैं पालैं बह नीला वनखंड बालै रे चित० । मुनि ऊभौ इक काउसग्गै थिर थंभ ज्युं ध्यान अथगौरे चित ॥२॥ वीर वांदि नइ वलतां राणी वंद्यौ ते आदर आणी रे चित० । वांदी अपणे घरि आवै धन धन ते मनमैं ध्यावे रे चित० ॥३॥ उणहिज दिन महलांमाहे सूती नृपसहित उठा हे रे चित० । रहीय इक हाथ उघाडै जो रै ठाठरीयौ जाडै रे चित० ॥४॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ अनुसन्थान ४७ प? आज तिको सबलौसी हिव ते किम करतौ होसी रे चित० । राणी कही वात सभा भूपतिरै मन भ्रम आ3 रे चित० ॥५॥ इण कुलटा कुण चीत स्यौ धरि हेत नवौहि ज धार्यों रे चित० । मन राखी रीस प्रभातें जिनवरनैं वांदण जातें रे चित० ॥६॥ कह्यौ अभयकुमार. तेडी फूंकि देज्यो अंतेवर मैंडी रे चित० । कहि नृप जिनवंदण पहुतौ मनमांहि विमासे मुहतौ रे चित० ॥७॥ राजा कह्यौ किणहिक रीसैं पिण वात अघटती दीसै रे चित० । जूनौ सूनौ घर जालैं नृपनी आज्ञा पिण पालै रे चित० ॥८॥ वीरजी कहैं उपदेशवाते चेडानी सतीयां साते रे चित० । राजा जाण्यौ सुणि वाणी मैं भ्रांति अणहुँती आणी रे चित० ॥९॥ ऊठ्यौ राजा ततकालैं जाण्यौ रखे अंतेउर जालैं रे चित० । धुखतौ दीगै तिण धूऔ नृप जाणे अनरथ हूऔ रे चित० ॥१०॥ आवंतौ अभयनै दीठौ कह्यौ जा जा परहौ अदीठौ रे चित० । अंतेउर कुशले राख्यौ भलौ वचन तुम्हे मुझ भाख्यौ रे चित० ॥११॥ मुझनैं कह्यौ थौ महाराजा जिण वेला कहां तुं जा जा रे चित० । तिण वेला दीक्षा लेजे ते लाधौ वचन सहेजे रे चित० ॥१२॥ धन धन ते चेलणा राणी जिण. श्रीवीर वखाणी रे चित० । शुभ जिन ध्रमशील अमोलैं कीरतिसुंदर सहु बोलैं रे चित० ॥१३।। दोहाकुमरतणें अति आग्रहैं अनुमति दीधी राय । आडंबर करि अति घणा मनमैं हरख न माय ॥१॥ वीर जिणेसर हाथसुं व्रत ल्य अभयकुमार । नंदामा पिण तेहसुं संयम लीधौ सार ॥२॥ पांच वरस दूषणरहित पाली संयम भार । करि संलेखन ऊपनौ अनुत्तर इक अवतार ॥३॥ सुरना अतिसुख भोगवी चवि. नरभव पामि । चारित पाली मुगतिपुर लहसि उत्तम ठाम ॥४॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ४२ ढाल-१२(आज निहे जौ दीसै नाहलौ - एहनी-) धन्यासिरी रागे विधिसुं पांचे मुनिवर वंदीय सिव सुव्रत सुखकार । धन धन धन्नौ में जोनकजती अभयकुमार अणगार विधिसुं० ॥१॥ संबंध छोड्यौ जिण संसारनौ वैरागैं मन वालि । सुमति-गुपतिधर संवेगी सदा पंचमहाव्रत पाल विधिसुं० ॥२॥ जीता जिण बावीस परीसहा दयावंत सुखदाय । दसविध साधुधरम दीपावता तप करि सोखी काय विधिसुं० ॥३॥ अंग इग्यार अरथ अवगाहीया निरमल मन जिम नीर । चाल्यौ पिण ध्रमथी चूको नही मेरु तणी परि धीर विधिसुं० ॥४॥ चार कषाय निवार्या चित्तसुं सागर ज्युं गंभीर । सोमनिजर परमादर हित सही ताक्यौ भवनौ तीर विधिसुं० ॥५॥ श्री श्रेणिक मैं अभयकुमारनौ चरित वडौ विस्तार । तिहाथी चिहुं साधांनी चौपई कहीं वैराग विचार विधिसुं० ॥६॥ मन मांन्या मेवा पकवानना अधिक भर्या अंबार । सहुको रुचि सारु जीमी सकै ए तिणविध अधिकार विधिसुं० ॥७॥ संवत सतरै गुणस समैं जयतारणिपुर जाण । चौमासै श्रीजिनचंद्रसूरिजी भट्टारक कुल भाण विधिसु० ॥८॥ भट्टारकीया खरतर जस भला शाखा जिनभद्रसूरि । साधुकीरति साधुसुंदर सारिखा पाठक विद्यापूर विधिसु० ॥९॥ विमलकीरति जगि विम्मलचंद ज्युं विजयहरख सुखदान । श्रीधर्मावर्द्धन राजै सद्गुरू पाठक सुगुणप्रधान विधिसु० ॥१०॥ गुण साधांरा मन सुध गावतां सहु सुख लहीयें सार । कीरतिसुंदर हूँ कान्हजी संधउदय सुखकार विधिसु० ॥११।। इति श्री अभयकुमारादिप साधूनां चतुःपदी समासा ।। लिखिता वा० कीर्तिसुन्दरगणिना श्रीरतलाममध्ये ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ४७ به :: : له به w केटलाक कठिन शब्दोना अर्थ शब्द अर्थ गाथा क्रमाज साधारा साधुओना प्रथम ढाल-दुहा - २ कर्मनिर्जरा कर्मनो नाश समकित देव-गुरु-धर्म प्रत्ये श्रद्धा सुध समवसर्या पधार्या प्र. ढाल - ३ पाय पाये-पगे पंचाभिगमन जिनभगवान के गुरु पासे जतां आदरवाना ५ नियमो : सचित द्रव्यनो त्याग, अचित्त द्रव्यनो अत्याग, एकाग्रता, एकशाटिक उत्तरासंग, प्रभु दर्शन थतां बे हाथ जोडवा. निकाचित कर्म जे कर्म अवश्य भोगव ज पडे. केवली केवलज्ञानी, त्रणे कालना भावने जोनारा, जाणनारा, तडकीनें गुस्से थईने हुंस इच्छा-होश भांड्या बीजी ढाल- ३ भडकाई भटकाया सोहरा सुखी जातीसमरण पूर्वभवनुं ज्ञान अठ पहुरी पोसौ श्रावक जीवननी क्रिया (२४ कलाक त्रीजी ढाल दुहा-६ माटे सावध क्रिया त्यागी साधु जेवू जीवन) (आठ प्रहरनो पौषध) डोकरडी खावसां जमीशुं पोषधशालो श्रावकने धर्म आराधना करवान स्थान " " ४ (पोषाल) उपासस जैन साधुने धर्म आराधना करवानुं 22 m m फेंक्या Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ निसही दरव उपावण थापणमोसा बाकौ फाडि घिरत खांतिसुं प्रघल वनारतां संवेग हलफल्यौ थानक तड्यां हासौ थारौ सांझैं आज्यो बैसाण्यौ पगरी पानही पाथरही पथलाय छानीठाम संबाहि थेहिज गुडाय वखतनें जोर सरास अमरस वाहर सालू स्थान (उपाश्रय) सावद्य क्रिया निषेध (जिनमन्दिर - उपाश्रयमां प्रवेश करता आ शब्द बोलाय छे.) धन उपार्जन गिरवे मूकेली वस्तु पडावी लेवी मदु फाडने घृत (घी) खतथी सुन्दर कापता मोक्षनी इच्छा व्याकुल थवुं उपाश्रय छोड्या पछी उपहास तारो सांजे आवजे बेसाड्यो पगनी मोजडी पथारी पाथरवी एकान्त स्थान फेलावीने तुं ज नाख्यो भाग्यवशे शिथिल ( ? ) अमर्ष क्रोध सेना, टुकडी साडी चोथी ढाल दुहा ?? " ३ चोथी ढाल "1 " $1 11 "1 १२ १२ १२ १७ २२ पांचमी ढाल दुहा - १ 11 २ ९ 19 " 19 " 19 19 ?? 71 पांचमी ढाल - १ " " " #1 +1 "" 21 :: " 17 "1 "1 21 +1 „ : .. 11 11 32 1 + 12 "? 13 "1 " 7? 2 #1 ७ 21 १० १० १३ no no no no n १४ 21 ६ १५ १७ १० १८ mr us 9 v "T ८ 67 ८ ५१ ११ १२ २ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान 47 " " 10 मुहतौं स्थान वंटावै भाग पडाववो सातमी ढाल-४ आपड आंबवू टछको टुकडो साचोवायें इकतारी एकाग्रता पाउ पग आठमी ढाल-३ महेता-मन्त्री ,, , 3 (दुहो) कूकवाजी बमाबूम, चीसाचीस तिकोजी तेनो " " 8 निहोर बहु, घणी कूक्यांतणौ चीसाचीस करवानो नवमी ढाल-५ खाड खणीनें खाडो करीने दाट्यो गाडीयौ शून्यघर चाढिनैं चढावीने रौष्यालो गुस्सावालो // // 14 सुंस सोगंद दशमी ढाल-दुहा-१ दाधी दाझी-बळेली विसवावीस विश्वमां श्रेष्ठ दीक्षा संसारत्याग दशमी ढाल-९ आगन्या आज्ञा, अनुमति आज्ञा, अनुमति अग्यारमी ढाल-दुहा-१ ठाठरीयौ ठों अग्यारमी ढाल-४ उठतो-धखतो गुपतिधर मन,वचन अने काया ए त्रण गुप्तिने बारमी ढाल-२ धरनारा बावीस परीसह सहन करवा योग्य क्षुधा-पिपासा आदि " " 3 दसविध साधुधरम क्षान्ति मृदुता आदि यति धर्म सूणहरै // // 10 धुखतौ