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मार्च २००९
आ पांच मुनिओना कथानक प्राप्त थाय छे.
आ प्रति प.पू.आ.श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजीनी संगृहीत हस्तप्रतोमाथी प्राप्त थई छे.
॥०॥ उपाध्यायश्रीधर्मवर्द्धनगुरुभ्यो नमः ॥
जगगुरु प्रणमुं वीरजिन अधिक भाव मन आणि । सुपसाय जिणरै सहू वंछित चढ़े प्रमाण ॥१॥ गुण साधांरा गावतां कर्मनिर्जरा होइ । सुणतां समकित सुध हुवै कहुं कथानक सोइ ॥२॥ सह सुबुधी-सिरसेहरौ अधिक कीया उपगार । कीरति अभयकुमाररी सह जाणे संसार |॥३॥ तसु संबंध संखेपसुं अवर च्यार अणगार । शिव १ सुव्रत २ धन ३ जोनक ४जु एहना कहुं अधिकार ॥४॥
ढाल-१ मगधदेश श्रेणिकभूपाल एहनीएणहिजे जंबूदीपैं जाण भरतखेत परसिद्ध प्रमाण । मगधदेश तिणमाहे मुर्दै अधिकौ अधिकौ दिन दिन उदै ॥१॥ तिहां कुशाग्रपुर पाटण नाम श्रेणिकराजा बहुगुणधाम । तसु सुत मंत्री अभयकुमार न्यायवंत सहुजन सुखकार ॥२॥ इण अवसर रहतां आणंद समवसर्या श्रीवीरजिणंद । आडंबरसुं श्रेणिकराय वांदण चाल्यौ प्रभुना पाह्य ||३|| समवसरण जाणे ऊगा सूर प्रातीहारिज आठ पहूर । साचवें पंचाभिगमन सार तीन प्रदक्षिण 3 तिणवार ॥४॥ बैंठौ भूप यथायोग्य देखि जिनवर 3 उपदेश विशेष । गति आगतिना चल्या अधिकार श्रेणिक पूछ निज भवपार ।।५।। स्वामी मूझ वीनति सरदहौ किण गति हुँ जास्युं ते कहौ । भाखें उत्तर श्रीभगवान पामिसि प्रथम नरक दुःखखानि ॥६॥
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