Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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मार्च २००९
४२
ढाल-१२(आज निहे जौ दीसै नाहलौ - एहनी-) धन्यासिरी रागे
विधिसुं पांचे मुनिवर वंदीय सिव सुव्रत सुखकार । धन धन धन्नौ में जोनकजती अभयकुमार अणगार विधिसुं० ॥१॥ संबंध छोड्यौ जिण संसारनौ वैरागैं मन वालि । सुमति-गुपतिधर संवेगी सदा पंचमहाव्रत पाल विधिसुं० ॥२॥ जीता जिण बावीस परीसहा दयावंत सुखदाय । दसविध साधुधरम दीपावता तप करि सोखी काय विधिसुं० ॥३॥ अंग इग्यार अरथ अवगाहीया निरमल मन जिम नीर । चाल्यौ पिण ध्रमथी चूको नही मेरु तणी परि धीर विधिसुं० ॥४॥ चार कषाय निवार्या चित्तसुं सागर ज्युं गंभीर । सोमनिजर परमादर हित सही ताक्यौ भवनौ तीर विधिसुं० ॥५॥ श्री श्रेणिक मैं अभयकुमारनौ चरित वडौ विस्तार । तिहाथी चिहुं साधांनी चौपई कहीं वैराग विचार विधिसुं० ॥६॥ मन मांन्या मेवा पकवानना अधिक भर्या अंबार । सहुको रुचि सारु जीमी सकै ए तिणविध अधिकार विधिसुं० ॥७॥ संवत सतरै गुणस समैं जयतारणिपुर जाण । चौमासै श्रीजिनचंद्रसूरिजी भट्टारक कुल भाण विधिसु० ॥८॥ भट्टारकीया खरतर जस भला शाखा जिनभद्रसूरि । साधुकीरति साधुसुंदर सारिखा पाठक विद्यापूर विधिसु० ॥९॥ विमलकीरति जगि विम्मलचंद ज्युं विजयहरख सुखदान । श्रीधर्मावर्द्धन राजै सद्गुरू पाठक सुगुणप्रधान विधिसु० ॥१०॥ गुण साधांरा मन सुध गावतां सहु सुख लहीयें सार । कीरतिसुंदर हूँ कान्हजी संधउदय सुखकार विधिसु० ॥११।।
इति श्री अभयकुमारादिप साधूनां चतुःपदी समासा ।। लिखिता वा० कीर्तिसुन्दरगणिना श्रीरतलाममध्ये ॥
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