Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ मार्च २००९ राज आचारिज तिहां नामैं सुस्थितसूर । च्यार शिष्य तिण रै चतुर सेवा करें सनूर ॥४॥ शिव १ सुव्रत २ धन ३ तीन ए जोनक ४ चोथौ जाण । जिनतुलना करणी करें आराधैं जिन आण ॥५॥ अठ पहुरी पोसौ अडिग कीधौ अभयकुमार । तिण अवसर तिण प्रहारनौ एह हूऔ अधिकार ॥६॥ ढाल-तीजी(चतुर सनेही मोहनां एहनी-) हिव मणिहारै जाणीयौ हार अछे मो पासो रे । अभयकुमार जौ जाणसी तौ करसी कुलनासो रे अरथसुं अनरथ ऊपजै ॥१॥ बाप वानरनैं कहैं ए ले जा हारो रे । डोकरडीरा घरमांहे सीह न माय सारो रे अरथसुं ॥२॥ भीख मांगिनै खावसां पिण हारसुं नही कामो रे । अभयकुमार जो अटकलें तौ माहरी पा. मामो रे अरथसुं० ॥३॥ वानर हार लेई चल्यौ आयौ षोषधशालो रे ।। आप आचारिज बाहिरै काउसग छै तिण कालो रे अरथसुं० ॥४॥ हार सूरिकंठें ठवी कपि पहुतौ निज ठामो रे ।। अभयकुमार पोसामाहे ध्या₹ ध्रम गुणग्रामो रे अरथसुं० ||५|| रातिसमै ससि ऊगीयौ शुभध्यानै चित राखें रे । हाररतन वलि चांदणे झिगमिग झिगमिग झाखें रे अरथसुं० ॥६॥ एक पहुर रजनी गई पहिलो शिष शिवरायो रे । करि सज्झाय गुरां कनैं वेयावचनैं आयौ रे अरथसुं० ॥७॥ गुरु काउसगमाहे रह्या कंठें निरखें हारो रे । चितमाहे अतिचमकीयौ ए विधि केण प्रकारो रे अरथसुं० ॥८॥ उपासरा मैं आवतां निसही वीसर भोलैं रे । मुनि शिवराज मुझे करी भयं वचन इम बोलै रे अरथसुं० ॥९॥ अभयकुमार सुणी कहैं क्युं गुरुजी भय केहौ रे । मो पासैं बैंठां थकां उपजैं किम भय एहो रे अरथसुं० ॥१०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27