Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ अनुसन्धान ४७ मुनिवर कहैं मुझ मूलगी चीता आई वातो रे । अभय कहैं मुह कनैं कहौ सो संबंध सुहातो रे अरथसुं० ॥११॥ दोहाउज्जेणीपुरमें वसां बे भाई इक चित्त । क्षत्रिय कुल निरधन घणुं नामैं सिव १ सिवदत्त २ ॥१॥ दरव-उपावण दुहुँ गया सोरठ देस मझार । हाटे विणजां गाममैं भोला जिहां नरनारि ||२|| अधिकौ ले ओछौ दीयौ वंचया सगला लोक । करि थांपणमोसा कपट रुपीया कीधा रोक ॥३॥ माहोमाहि कीयो मतो दुई भाई इकदिल्ल । कुशले घर पहुचां हि न करौ काई ढिल्ल ॥४॥ चुंप धरी. चालीया जोखौ मारग जाण । कडि बांधी नौली व. चिरौं इण अवसाण ॥५॥ आधौ तौ लेसी उरौ लघुभाई करि लाग । घात देखिनैं घाउ करि मारूं इणहिज माग ॥६॥ किणहिक गामैं आइनै वासौ वसीया रात । बीजैं दिन चाल्या बिहुं प्रगट हूआं परभात ॥७॥ वडौ कहैं लघुभ्रातर्फे सहु धन बेहुं सीर । कडीयां बांधि तुं वासणी हुइ मनमाहि सधीर ॥८॥ बांधंतां लघुभ्रात ” मनमैं उपनौ पाप । मोटौभाई मारिनैं ए सहु धन ल्युं आप ।।९।। ढाल-चौथी (बाहूबलि चारित लीयौ रे- एहनी-) इम चीतवतां आवीयौ रे आण सरवर एक । स्नान करण बेहुं सही रे वस्त्र उतार्या विवेक सुगुण नर धन अनरथनी खाणि सुगुण नर होवें जिणथी हितहाणि सुगुण नर ए कहीया इग्यारमा प्राण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27