Book Title: Abhaykumar Chopai
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
अनुसन्धान ४७
तुं बाजार जाइनैं रे तरकारी काई आण सगुण० धन० ॥१५| बेटी बाजारै जई रे मोल लीयौ ते मच्छ । । घरि आणी थाली विचै रे चीरणौ मांड्यो अच्छ सगुण० धन० ॥१६॥ मच्छ वनारतां वासणी रे थालीमैं पडी आय ।। हेम देखी मन हरखीयौ रे छांनी लीधी छिपाय सगुण० धन० ॥१७॥ भीति तौँहि ज आंतरै रे मा बैंठीथी माहि । सोवन खणको सांभली रे चित लेवा हूई चाहि सगुण० धन० ॥१८॥ मच्छ विदारतां माहिसु रे स्युं निकल्यौ कहि साच । पुत्रीसुं अति भडकिनैं रे बोलैं माता वाच सगुण० धन० ॥१९॥ सुता कहैं माहरै सिरै रे क्युं चैं झूठ कलंक । तब मायें बेटी तणे रे दीधौ धाव निसंक सगुण० धन० ॥२०॥ भयसुं नौली खिर पड़ी रे माताइ लीधी तेह । दोइ भाई म्हे ओलखी रे तेहज नौली एह सगुण० धन० ॥२१॥ दुख कारण धन देखिनैं रे छोडी सहु घरबार । चोखें चित चारित लीयौ रे संवेग मैं धरि सार सगुण धन० ॥२२॥ सिव मुनि अभयकुमार सुं रे कहैं इम मी साद । भयकारण धनवारता रे आई मोनें याद सुगुण० धन० ॥२३॥
इति वा० कान्हजीकृतायां चतुष्पदिकायां शिवराजमुनीश्वरकथानकं प्रथम समाप्तम् ॥
अथ सुव्रतसाधुरभयकुमारस्य पुरतः स्वप्रवृत्तिं ब्रवीति ।
दोहा
बीज पहुर गुरां कनैं सुव्रत आयौ सीस । हार देखिनैं हलफल्यौ ए स्युं कारण ईस ||१|| पूठौ थानक पैंसतां महाभयं कहैं वाणि । अभय कहैं अणगारजी किसौ महाभय जाण ॥२॥ साधु कहैं मुझ घरतणी चीता आई वात । व्रत लीधौ जिण वास ते सुणिज्यो अवदात ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27